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गज़ल:– रात की अँगुली रात की अँगुली पकड़ जब मैं चल

गज़ल:– रात की अँगुली 

रात की अँगुली पकड़ जब मैं चला था।
धुंध का इक  कारवाँ अड़कर खड़ा था॥

जिंदगी की कसमकश में जिंदगी को।
जिंदगी  से  दूर  मैंने  कर  दिया  था॥

ठोकरों  में उम्र बीती  जा  रही  पर।
झेल कर कठिनाइयाँ आगे बढ़ा था॥

कौन  जाने  कब कहाँ  किससे  मिलूँगा।
हर कदम तो मौत का ही सिलसिला था॥

मौत की आहट अचानक आ गयी तो।
जिंदगी  से  मोह  भारी  हो   गया था॥

वक्त ने ऐसा चलाया क्रूर चक्कर।
सामने मंजिल मगर मैं गिर पड़ा था॥

बन भुलक्कड़ भूल अपने दर्द सारे।
खुश रहे सारा  जमाना  मैं हँसा था॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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