त्रिपुरा सुर का जब बढ़ा , जग में आत्याचार। आकर भोलेनाथ ने , स्वयं किया संहार ।।१ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा , कार्तिक का वो मास । दीप जलाकर देव सब , करें धरा उल्लास ।।२ करतें है गुरु पे सदा , हम सब अपने गर्व । कार्तिक के इस मास में , आता है गुरु पर्व ।।३ देखो गंगा घाट पे , अब करें सभी स्नान । छोड़े जग का मोह सब , करते प्रभु का ध्यान ।।४ दीप जलाकर आज सब , करते तम का नाश । जग-मग जग-मग हो रहा , धरती से आकाश ।।५ कुण्डलिया बढ़ता जब-जब पाप है , लेते प्रभु अवतार । कर दुष्टों का नाश वे , होते पालन हार ।। होते पालन हार , यही है प्रभु की माया । दें गीता का ज्ञान , कहें नश्वर है काया ।। करो धर्म के काम , पाप घटता ही रहता । भव से होता पार , पुन्य जिसका भी बढ़ता ।। ०९/११/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR त्रिपुरा सुर का जब बढ़ा , जग में आत्याचार। आकर भोलेनाथ ने , स्वयं किया संहार ।।१ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा , कार्तिक का वो मास । दीप जलाकर देव सब , करें धरा उल्लास ।।२ करतें है गुरु पे सदा , हम सब अपने गर्व । कार्तिक के इस मास में , आता है गुरु पर्व ।।३