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"लोकतंत्र" में अपना - अपनी कि जगह नहीं समानान्तर,


"लोकतंत्र" में अपना - अपनी कि जगह नहीं
समानान्तर, सद्भावना, सर्वाधिक, सर्वोपरि है 

ना रहे तन - मन - धन से जन -जन में अंतर
जहाँ "कद्र" ' बे-दाग़दार रसे- बसे समानान्तर 

जनमानस के जनमत में कोई 'मदभेद' ना हो
जहाँ किसी को कभी करना पड़े "खेद" न हो

"लोकतंत्र" में अपना - अपनी कि जगह नहीं
समानान्तर, सद्भावना, सर्वाधिक, सर्वोपरि है 

है वह "पावन मातृभूमि" "लोकतंत्र" की धरा
जिसपर "विश्वास" "अडिग" हो कर रहे खड़ा

जहाँ धीर नहीं बीर नहीं 'अधीर' ही बसता हो
सोचो उस देश में लहू बहता कितना सस्ता हो 

"लोकतंत्र" में अपना - अपनी कि जगह नहीं
समानान्तर, सद्भावना, सर्वाधिक, सर्वोपरि है

©अनुषी का पिटारा..
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