तुम बोलो, कुछ बोलूँ क्या ? राज हृदय का खोलूं क्या ? मन तुझको रब मान चुका है, मैं भी तेरा हो - लूँ क्या ? है, संदेह अगर तो कह दो, प्रीत तुला में तोलूँ क्या ? वर्षों बाद मिला है मौका, लिपट-लिपट कर रो-लूँ क्या ? स्वयं , सरोवर मीठा हो तुम, मैं नीरस, रस घोलूँ क्या ? जो जीवन तुझपर हारा हूँ, उस जीवन से मोलूँ क्या ? विनय 'बाली' सिंह बोलूँ क्या?