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6. क्षण भर मलीन हुआ भी तो, औरों के मैल धुलाने

6. क्षण भर मलीन हुआ भी तो,
    औरों के मैल धुलाने में,
    प्रकृति अपनी तजता नहीं,
    हलचल आने जाने में।

7. करता है स्वयं को स्थिर,
    पारदर्शी पुनः हो जाता है,
    संचय लिए चलता संग नहीं,
    तल में छोड़ आगे बढ़ जाता है।

8. हो दुर्गम वन या दुष्कर गिरिवर,
    पथ में कहीं कोई पड़ाव नहीं,
    अवरोधों को मार्ग बनाकर,
    अनवरत ही बढ़ता जाता है। #क्षणिकाएँ #जल #
6. क्षण भर मलीन हुआ भी तो,
    औरों के मैल धुलाने में,
    प्रकृति अपनी तजता नहीं,
    हलचल आने जाने में।

7. करता है स्वयं को स्थिर,
    पारदर्शी पुनः हो जाता है,
    संचय लिए चलता संग नहीं,
    तल में छोड़ आगे बढ़ जाता है।

8. हो दुर्गम वन या दुष्कर गिरिवर,
    पथ में कहीं कोई पड़ाव नहीं,
    अवरोधों को मार्ग बनाकर,
    अनवरत ही बढ़ता जाता है। #क्षणिकाएँ #जल #