Bharat Ratna संशय का दमघोटू धुआँ छाया हैँ वातायन पर तुम स्वछ स्वस्थ साँसे लोगे कैसे? और जब आँखे तुम्हरी जलने लगेगी धुए से तुम अस्तित्व का ये अघोर विस्तार देखोगे कैसे? तनिक देखो तो उस अजनबी को अपने दर्पण मे जो तुम्हारी बखिया उघाड़ने मे निरंतर व्यस्त हैं तुम उससे आँख अपनी मिलोगे कैसे? क्या होगा तुम्हारे उन अनुरागी सपनो का जो तुम्हे और आगे धकाने को ततपर हैँ किन्तु आचरण तुम्हारे उन्हें तुमसे दूर ले जाते हैँ खंड खंड चेहरे से तुम उस यथार्थ का सामना करोगे कैसे? यथार्थ का सामना?