बागों में अब पेड़ नहीं मिलते फरिश्ते अब रोज़ नहीं मिलते मौसम का अब कौन पता बताए बहारों में अब फूल नहीं खिलते लोगों में अब ऐसी खामोशी है हवाओं में पत्ते तक नहीं हिलते जख्मों का हिसाब तू खुद ही रख अपनों के पास मरहम नहीं मिलते हार को सब हंसकर ले लेते हैं पता है इनमें शूल नहीं मिलते बहारें