अमृतसर आकर रेल रूकी लाशों का ढ़ेर लग गया छेदी सिंह का दिल दहल गया जल आंखों में भर आया किसने छूट इतनी दे दी किस के इशारे पर यह तांडव हुआ कानों कान ना खबर हुई कोई गंजा नंगा पाखंडी खेल गया कुछ कह ना सके अनगिनत बेगुनाह निहत्थो की लाशों पर अपना राष्ट्र दो टुकड़ों में बंट कर आजाद हुआ हम साफ नियत और दिलवाले आगे और आगे बढ़ चले वो खोट नियत में पाले हुए आज भी खेल वही खेल रहे चले मिटाने औरों को अपने कर्मो की जरा भी फिक्र नहीं सबको गैर समझने वाले अपनी करतूतों का करते जिक्र नहीं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla KK क्षत्राणी