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हिमाँशु

क्या करोगे जान के....

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हिमाँशु

मैंने उसकी यादों को नहीं,
उसकी यादों ने मुझे काम पे रखा है,

आज बरसो बाद सुना है कि,
उसने अपने बेटे का नाम मेरे नाम पे रखा है।

                   अल्फाज़







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©हिमाँशु

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हिमाँशु

आज चाय मीठी तो थी पर उसमें मिठास नहीं थी,

शायद वो मिठास शक्कर की नहीं तुम्हारे स्पर्श की थी।

          अल्फाज़





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©हिमाँशु #touchthesky
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हिमाँशु

मैं किनारा तुम किसी लहर की तरह,
मैं गाँव हूँ तुम किसी शहर की तरह,
तुमने शब्दों से मेरी सोच का मुखौटा बना दिया,
जो मैं कभी था ही नहीं मुझे उतना छोटा बना दिया।


                 -अल्फाज़

©हिमाँशु

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हिमाँशु

इस ह्रदय में तो रहती है वो आज भी,
मुझसे चुपके से कहती है वो आज भी,
दूर मुझसे नहीं, है वो मुझमें कहीं,
मेरी आँखों से बहती है वो आज भी।


                                    अल्फाज़ #touchthesky
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हिमाँशु

#MyPoetry
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हिमाँशु

उतनी भी ना हसीन होती है ये बारिश जितना लोग उसे ठहराते हैं,

इस बारिश के पानी में कुछ लोग अपने आंसूओ को भी छुपाते हैं।

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हिमाँशु

प्रेम नाम के दरिया मा उतर गया जो कोई...
कुछ पावे ना पावे पर है खुद को वो खोई...
कमतर आँका राधे को बंसी अधिक थी मोही...
सर्वस्व गवाकर मोहन पर राधे भी पल पल रोयी...

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हिमाँशु

हौसले इतने बुलन्द थे उसके..
कि ये आसमाँ उसके परों में आ गया..
विषय चुना था हिंदी उसने..
पर वो इतिहास की धरोहरोँ में समा गया..
जब उसने समझी थी धरती और सूरज की बेचैनी..
तब वो नवयुवक हर युवा ह्रदय को भा गया..
कभी कबिरा तो कभी मीरा को दीवाना बता के..
वो भीड़ के हर शख्स को अपना दीवाना बना गया..
हिंदी है अब किन्ही सुरक्षित हाथों में..
ये बात वो उन तमाम उर्दू के दिग्गजो को बता गया..
दो मुल्को की भाषाओँ को बहनें बता के..
वो कुमार एकता का एक अटूट विश्वास जगा गया..
पढ़ा के पाठ हिंदी का सम्पूर्ण विश्व को..
वो कुमार विश्वास बनके हिंदी जगत पे छा गया ।।

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हिमाँशु

क्या संभव है इस युग में फिर से एक राम का बन पाना...
वो मर्यादा कैसे लाओगे जिसका ये जग है दीवाना...
वो राजतिलक के निकट खड़ा है इस बात से ना था अनजाना...
आदेश मिला जब पिता से तो निश्चित था उसका वन को जाना...
केवट को ह्रदय में बसाना वो जूठे बेरो को खा जाना...
मकसद उसका भी एक था ऊँच नीच के भेद को मिटाना...
तू क्या देगा घर उसको पत्थर का...
जिसके नाम से संभव था एक पत्थर को भी तैराना...
क्या संभव है इस युग में फिर से एक राम का बन पाना।
🤔

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हिमाँशु

जीवन में ना धूप रहती है ना छाया बहुत देर तक...
ना दुःख टिकता है ना सुख टिक पाया बहुत देर तक...
हाँ गरीबी टिक भी जाए पर नहीं टिकती है माया बहुत देर तक...
ना कुरुपता टिकी है ना सुन्दर काया बहुत देर तक...
रास्ते तो वहीँ टिके हैं पर इन रास्तो पर ना कोई टिक पाया बहुत देर तक...
उसने तो इंसान ही भेजे थे पर यहाँ ना इंसान रह पाया कोई बहुत देर तक...
जीवन में ना धूप रहती है ना छाया बहुत देर तक।
😊😊

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