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nakulkumar3703
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nakul Kumar

शायर, कवि, लेखक

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nakul Kumar

White सात समंदर बावन बस्ती नौ सय्यारे तेरे हैं
उजड़ी दुनिया, सूखा दरिया टूटे तारे मेरे हैं

तेरे हैं ये संत मौलवी सब रजवाड़े तेरे हैं 
ये बेचारे दर दर मारे इश्क़ में हारे मेरे हैं

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nakul Kumar

White  लड़खड़ाती है क़लम रंगीनियाँ ही क्यों लिखूँ
लू से जलता है बदन पुर्वाइयाँ ही क्यों लिखूँ

दिख रही हों जब मुझे हैवानियत की बस्तियाँ
तो इन्हें महबूब की शैतानियाँ ही क्यों लिखूँ

देख लूँ मैं जब कभी बूढ़ी भिखारन को कहीं
क्यों लिखूँ ग़ज़लों में परियाँ रानियाँ ही क्यों लिखूँ

फूल से बच्चों के चेहरे भूख से बेरंग हों
तो बता ऐ दिल मिरे फिर तितलियाँ ही क्यों लिखूँ

माँ तिरे चेहरे पे जब से झुर्रियाँ दिखने लगीं
और भी लिखना है कुछ रानाइयाँ ही क्यों लिखूँ

क्यों लिखूँ ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़सार पे नग्मे बहुत
प्यार की पहली नज़र रुस्वाइयाँ ही क्यों लिखूँ

लिख तो सकता हूँ बहुत सी ख़ुशनुमा ऊँचाइयाँ
फिर ग़मों की ही बहुत गहराइयाँ ही क्यों लिखूँ

क्यों लिखूँ दोनों तरफ़ दोनों तरफ़ की क्यों लिखूँ
रौशनी लिख दूँ मगर परछाइयाँ ही क्यों लिखूँ

जंग के मैदान में ये ख़ून या सिन्दूर है
शोर जब भरपूर है शहनाइयाँ ही क्यों लिखूँ

पेट की ख़ातिर जो हरदम तोड़ता हो तन बदन
चैन से बैठा नहीं अँगड़ाइयाँ ही क्यों लिखूँ

मैं लिखूँ दुनिया के हर इक आदमी की ज़िंदगी
मौत की आमद या फिर बीमारियाँ ही क्यों लिखूँ

ये नए लड़के जो सोलह साल के ही हैं अभी
इनकी ये मदमस्तियाँ-नादानियाँ ही क्यों लिखूँ

ज़िंदगी अपनी अभी तो ज़िंदगी से है जुदा
अब मगर वीरानियाँ-बर्बादियाँ ही क्यों लिखूँ

हाँ मिरे बेटे लिखूँगा मैं तुझे मेले बहुत
मैं अकेला ही जिया तन्हाइयाँ ही क्यों लिखूँ

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nakul Kumar

White जिन्हें गिरना था वो सब गिर गये मेरी निगाह में 
जिन्हें जाना था वो सब जा चुके कीचड़ की थाह में 

मिरे सारे बदन पे ज़ख़्म जो कुछ देखते हो तुम
कई ख़ंजर बसाये थे कभी अपनी पनाह में

इन्हीं मौका परस्तों को कभी घर तक बुलाया था
लगा कर घात बैठे हैं कई गीदड़ जो राह में

ख़्वाहिश यही इनकी मैं दर्द-ओ-ग़म ही अब झेलूँ 
कहीं आराम दिखता है इन्हें मेरी ही आह में

©nakul Kumar #sad_quotes  शायरी हिंदी में गम भरी शायरी 'दर्द भरी शायरी' शायरी शायरी attitude

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nakul Kumar

White मैं कि जो कुछ भी नहीं हूँ आप मेरे ख़ास हैं
दूरियाँ दुनिया से हैं दो चार ही जो पास हैं 

ख़ुद ही ख़ुद से कट गया है ये बिचारा आदमी
चल रही है लाश लेकिन मर चुके एहसास हैं

कल तलक जो आदमी को आदमी कहते न थे
वक़्त की करवट में देखो आज वो इतिहास हैं

दौलतें हों, शोहरतें हों, क़ामयाबी चार-सू
आदमी दर आदमी अब सौ तरह की प्यास हैं

मुफ़्लिसी है, भूख है, मैं खा न जाऊँ यार को
प्यार की बातें अभी मेरे लिए बकवास हैं

©nakul Kumar #love_shayari  गम भरी शायरी शायरी हिंदी में शायरी दर्द शेरो शायरी

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nakul Kumar

White रख लिया हथियार इक तैयार कर के
मार देंगे पर मुझे बीमार कर के

कश्तियों की बस्तियों में क्या रुके हम
डूबने वाले हैं दरिया पार कर के

मौत के सामान को पूजा करूँगा
ज़िंदगी दे दूँगा ख़ुद को मार कर के

आदमी की ज़ात से डरने लगा हूँ
ये मुझे जो खा रहे हैं प्यार कर के

हम कि जो नुक़्सान झेले जा रहे हैं
क्या करेंगे इश्क़ का व्यौपार कर के

पर्वतों को ज़ख़्म गहरे दे दिये हैं
पानियों से पत्थरों पर वार कर के

मौत की चाहत को ज़िंदा कर लिया क्या
एक इस मरघट को यूँ घर-बार कर के

अब ज़मीं पे आ गया पागल परिंदा
ख़्वाब जो देखे थे वो दो चार कर के

©nakul Kumar  शायरी हिंदी में गम भरी शायरी शायरी लव शायरी शायरी दर्द

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nakul Kumar

White कई किस्से अधूरे रह गये अपनी कहानी में
चले आये हैं बचपन को गँवा के नौजवानी में

हवायें जो बग़ावत पर उतर आई हैं आख़िर में
किसी तूफ़ान की दस्तक है मेरी ज़िंदगानी में

नई फ़स्लों को ये कुछ और से कुछ और करते हैं
गुलाबों की जो ख़ुशबू ढूंढ़ते है रातरानी में

हमें आकर बताते हैं उजालों की सभी फ़ितरत
शमा रौशन न कर पाये थे जो अपनी जवानी में

तू हर इक बात पे जो रूठ के जाने को कहता है
तिरा किरदार है बेहद अहम मेरी कहानी में

ये मेरा वक़्त है इस वक़्त की अपनी रवानी है
जगा सकता हूँ अपनी प्यास भी मैं आग-पानी में

©nakul Kumar #Sad_Status  शायरी हिंदी में शायरी लव गम भरी शायरी 'दर्द भरी शायरी' शेरो शायरी

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nakul Kumar

दर्द यूँ रहता है मुझमें जैसे आँखों मे जलन
रोज मर कर सह रहा हूँ जिंदगी की ये तपन
इस कदर बैठी हुई हैं तेरी सब यादें अभी
मेरा जेहन हो कि जैसे तेरी यादों का वतन
तू गया तो संग तेरे रूह तक मेरी गयी
रह गया है मेरे घर में मेरा तो बस तन बदन
ये मोहब्बत की किताबें कौन यूँ कब तक पढ़े
कौन मारे रोज ही इक बात पे अपना ही मन
क्यों करूँ कैसे करूँ कबतक करूँ ऐ दिल तेरी
कौन तेरे दर्द को कैसे करे कब तक सहन?
मेरा सीना टूटकर दूभर हुआ जाता है अब
अब मेरे वश का नहीं है तेरी यादों का वजन

©nakul Kumar
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nakul Kumar

अनाज घर में है नहीं कि जिस ग़रीब के
ऐसे किसी "कुमार" को मुमताज़ चाहिए
शाहे-जहाँ की चाह में ठुकरा दिया ग़रीब
ऐसी किसी मुमताज़ को भी ताज चाहिए

©nakul Kumar
  #gazal #ghazal #shayari #Shayar  #love #romance
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nakul Kumar

दिल में तेरे घर कर जाऊँ फर्क नहीं पड़ता
मरने से पहले मर जाऊँ फर्क नहीं पड़ता
आधी रात को छत से उतरूँ तुझसे मिलने
फिर तेरी छत पे चढ़ जाऊँ फर्क नहीं पड़ता
आसमान से चाँद बुलाकर तुझको देखूँ
फिर तेरे होठों तक जाऊँ फर्क नहीं पड़ता

©nakul Kumar
  #shayari #gazal
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nakul Kumar

क्यों तू इस रात सपने में आयी है
नयी लकीरें क्यों माथे पे लायी है
फिर रंगे हैं होंठ मुलाक़ात के बाद
किसके वास्ते मेरी जूठन छुपाई है
कान क्या दीवार की आँख भी हुई अगर
बिस्तर के साथ में क्या कोई रजाई है

©nakul Kumar
  #Shayari #gazal
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