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Vijay parjapti Vijay parjapti
जीत ने से पहले जीत और हार ने से पहले हर कभी नहीं माननी चाहिए ? ©Vijay parjapti Vijay parjapti #Motimvatinal #बेस्ट #मोतीचूर #मोतीयाबिन्द
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कुछ चीज पेसो से नही मिलती और मुझे उस का ही सोग है ©Vijay parjapti Vijay parjapti #Ma #मोती #मोतीमेट#मोटिमसल #Thoughts
RAJA RAM
ज़िंदगी में कभी भी किसी चीज को बेकार नहीं समझना चाहिए क्योंकि बंद पड़ी घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है। ©RAJA RAM #मोतीबेट
Radheshyam
देखो इस कुसुम को भी, ये भी मुस्कराए, सुनके तेरा आना, ये भी शर्माए, ओ साँवरिया तुम घर आए.... हर जगह तुम ही, तुम सब दिखने लगे हो, तू ही अब सब जग में समाए, ओ साँवरिया तुम घर आए.... मोती, मोती, मोती सा हैं, तेरा सब कहना, मैंने उन सब को मन में पिरोए, ओ साँवरिया तुम घर आए.... ©दिव्यांशी त्रिगुणा "राधिका" #Flower #NojotoHindi #मोतीसा
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read moreRahim Singh
किसी को खाना देके उसकी ज़िंदगी छीनना कान्हा तक समझदारी है ©Rahim Singh #fisherman #मोतीजैसेशब्द
#fisherman #मोतीजैसेशब्द #मोटिवेशनल
read moreमेरेअंतर्मनसे
सवाल यह नहीं है कि मेरे नयनों में मोतीझरा था ! अगर मेरी किस्मत अच्छी थी तो रास्ते में गड्ढा क्यूँ पड़ा था ? #mereantarmanse मोतियाबिंद = मोतीझरा = cataract
#mereantarmanse मोतियाबिंद = मोतीझरा = cataract
read moreJankavi
जनकवि विनोद यादव किताबों में उलझे प्रतियोगी और गुजरते इलाहाबाद के वनवास ____________________ प्रतियोगी छात्र छात्रों का वह अनूठा शहर इलाहाबाद अर्थात पूर्व के ऑक्सफोर्ड के नाम से जाना जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय अर्थात ज्ञान की नगरी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात अलौकिक सोंधी खुशबू से ओत-प्रोत जो छात्र एक बार चख लेता है एक दो साल नहीं वरन पंचवर्षीय योजना तो लग ही जाती है शायद इसलिए पांच से दस साल लगते हैं कहीं ना कहीं उसकी प्रारंभिक शिक्षा का माहौल उस स्तर का नहीं था उसे अपने आप को धीरे धीरे सुधारने में समय लग रहा था और वह आठ बाई दस के कमरे में प्रतियोगी छात्र अपने गांव से निकलकर इलाहाबाद दिल्ली, मुखर्जी नगर, कानपुर ,कोटा जब पहुंचता है अपने जीवन का वह बहुमूल्य छड़ से गुजरता है जब तपिश धूप में लोग एसी कूलर और पानी पीने के लिए फ्रिज का सहारा लेते हैं तो तीसरे माले चौथे माले के आठ बाई दस के कमरे में अपने जीवन के बहुमूल्य क्षण से जूझता रहता है औसतन जब छात्र अच्छे-अच्छे मोबाइल ,अच्छी गाड़ियां ,बालों का डिजाइन, जींस का डिजाइन, कपड़े की शौक, घूमने का शौक पालता हैं तो उन्हीं छात्रों और युवाओं में से कुछ ऐसे छात्र अपने जीवन के भविष्य के लिए इलाहाबाद का रास्ता चुनते हैं लेकिन कहीं ना कहीं मकान मालिकों का वह अड़ियल रवैया सुनकर शायद ही कोई भी आगबबूला ना हो फिर भी छात्र अपने अंदर उस आग को दबाएं रहते हैं प्रतियोगी छात्र होने का रुख अख्तियार करते हैं वही दाल भात और चोखा तथा शाम को रोटी सब्जी का स्वाद कुकर में दाल व बीच में लौटे में चावल डालने की कला शायद अनूठी दिखती है कमरे में मानों लाइब्रेरी खुली हो कोई ऐसी परीक्षा नहीं होगी जिसका सिलेबस और किताब ना मिले तथा अलमारियों की शोभा बढ़ाती हुई किताबों की मकड़जाल देखकर मन बाग बाग हो जाता है कौन कितने दिनों से तैयारी करता है शायद इसका आकलन उन किताबों से भले लगाया जा सकता है लेकिन उसके दर्द को समझ पाना बड़ा मुश्किल होता है उसके कमरे में मानो तो चौदह वर्ष का वनवास हुआ हो घर की मोह माया से कोसों दूर माता-पिता भाई-बहन रिश्तेदार के सपनों को साकार करने के लिए ओ कठोर तपस्या अहिल्या की तपस्या की भांति लगती है मकान मालिकों की गीदड़ धमकियां सुबह टाइम से मोटर खुलेगा ,पानी टाइम से मिलेगा, कोई कमरे में नहीं आएगा, कोई शोरगुल नहीं होगा, जहां खाना बनाते हो वहां पोस्टर लगाकर खाना बनाना, ताकि दीवाल साफ रहे बिजली का मीटर यूनिट के हिसाब से चलेगा, बिल देना होगा, शाम को नव बजे के बाद गेट बंद रहेगा ?मानो तिहाड़ जेल में बंद कोई कैदी के साथ बर्ताव किया जा रहा हो लेकिन कुछ कर पाने की जिज्ञासा और दृढ़ संकल्पित भावना कभी विचलित नहीं होती| इलाहाबाद ,कानपुर, मुखर्जी नगर ,लखनऊ ,वाराणसी तमाम जगहों पर प्रतियोगी छात्र छात्राओं का ये हुजूम देखने को मिलता है और उनकी पीड़ा यही होती है चाहे वह यूपीएससी की तैयारी करता हो या ग्रुप डी या लेखपाल ,पुलिस या यूपीटीईटी की सब एक सूत्र में बंधे नजर आते हैं सुबह चाय बना कर के पठन-पाठन उसके बाद दोपहर में खाना फिर शाम पठन-पाठन तथा रात्रि तक खाना यही दिनचर्या बनी रहती है , ___________________ मांझी तेरी कश्ती के तलबगार बहुत हैं ! इस पार कुछ मगर उस पार बहुत हैं!! जिस शहर में तू ने खोली है शीशे की दुकानें! उस शहर में पत्थर के खरीदार बहुत हैं!! _____________________ दर्द बयां करती यह पंक्तियां और साथ-साथ समाज से मिलने वाले तंज भी बखूबी बयां करती हैं इलाहाबाद में रहने वाला प्रतियोगी किस स्थिति में रहता है घर वाले उसको कैसे वहां पढा रहे हैं उसको पैसा मिलता है कि नहीं मिलता है वह अपने किस व्यवस्था से रहता है उसके पास किराया है कि नहीं है? रूम का भाड़ा है कि नहीं है दवा के लिए पैसा है कि नहीं है आने जाने का भाड़ा है! कि नहीं है यह समाज उससे कभी नहीं पूछता ?लेकिन फोन करके ज्ञान जरूर देता है कि पड़ोसी का बेटा तो सिपाही हो गया है! तुम अभी तक चपरासी भी नहीं बन सके ,शायद तुम वहां पढ़ाई नहीं मौज मस्ती और समय पास कर रहे हो शायद उस अबोध को इस बात की जानकारी ना हो कि उसका टारगेट दरोगा ,आईएएस , पीसीएस , मेडिकल हो इसलिए वह ग्रुप डी की तैयारी ना करता हो साथियों पूछने वाले केवल पूछते रहेंगे तंज कसते रहेंगे लेकिन यदि ............ जलेबी की तरह उलझ ही गई है जिंदगी तो क्यों ना चासनी में डूब कर उसका उसका मजा लिया जाए ........ अपने संघर्ष की तरफ बढ़ते रहें एक ना एक दिन वह मंजिल जरूर मिलेगी और वह मंजर भी आएगा प्यासे के साथ चलकर समंदर भी आएगा इस कठिन तपस्या का निर्वाहन अपने धैर्य और निष्ठा के साथ सभी प्रतियोगी करते रहे तो निश्चित तौर पर सफलता का अनूठा स्वाद चखने को जरूर मिलेगा !! ©Jankavi #MothersDay2021 Motivan मोतीवन
#MothersDay2021 Motivan मोतीवन
read moreJankavi
ओ और होगे जो शोहरत देखकर मंजिल बदलते होगे हमारी फितरत में धोखा नही है जनकवि ©Jankavi #seashore Motivan मोतीवन