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श्री कन्हैया शास्त्री जी
इस संसार में अनेक कलाएँ हैं, और इन कलाओं में सबसे अच्छी कला है ! दूसरों के हृदय को छू लेना। अच्छी कलाएं
अच्छी कलाएं
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भारत में मंथन का विषय राजनीतिक कारणों से चर्चित भले ही अब हो रहा है किंतु सामाजिक स्तर पर मनता आचरण भारत में सदियों से एक जन देवी सराय इस देश में मनता आदरणीय चर्च पर चिंता लगभग 800 वर्ष पूर्व फार्म हो गई थी समय की परिस्थितियों के अनुसार यह चिंता कभी मुकुल होती रही तो अधिकांश आकर अंतर अवश्य अत्याचार के दवे दवे कुछ अंशों रूप में अंदर ही अंदर और पीढ़ी पीढ़ी दर प्रभावित होती रही है वर्ष 1938 की पूर्णमासी के काशी में जन्मे संत रविदास को निसंदेह भारत निमंत्रण के विरोध में स्वर मुखर करने वाली स्वधर्म में घर वापस करने वाली पार्टियों के प्रतिनिधियों कह सकते हैं संत रविदास ने जब समाज में तत्कालीन अतिथि विदेश मुस्लिम शासक का आर्थिक दुखी हो गए वो दिन हिंदू स्थिति जनता को जनता गर्म कर दिया आज का हिंदू भारतीय परंपरा में अस्तित्व का वसूल करने और मुस्लिमों को छूट देने के पीछे एक मात्र था कि हिंदू इस्लाम स्वीकार कर ली उसने अपनी भक्ति भाव के माध्यम से देश में देशभक्ति का भाव जागृत किया और अदिति मुसलमान शासकों के विरुद्ध एक आंदोलन को जन्म दिया स्वामी रामानंद ने तत्कालीन परिस्थितियों को समझकर विभिन्न जातियों के प्रतिनिधि संतो को जोड़कर दुर्दशा भगवत शिष्य मंडली स्थापित की विभिन्न समाजों का प्रतिनिधित्व करने वाले कैसे दुर्दशा मंडली के सूत्रधार और प्रमुख संत रविदास जी के संत रविदास ने हिंदू संस्कारों के प्लान में मुस्लिम शासकों द्वारा लिए जाने वाले जजिया कर की अपनी मंडली के विरोध किया और इससे हेतु जागरण अभियान चलाया ©Ek villain #भारत ने मनता आचरण के पारंपरिक विरोधी #Nojoto
Ek villain
भारतीय प्राच्य विद्या और परंपरा के लेखन विश्लेषण और अभिलेखीकरण ने जिन प्रमुख संसाधनों की गणना होती उनमें गोविंद चंद्र पांडे का बड़ा मुकाम है वह उस परंपरा के वाहक है जहां वेदिक दिव्य खानों को तुलनात्मक मृतक विज्ञान की तरह ही नहीं बल्कि तत्व एक जिज्ञासा की दृष्टि से भी परखा गया है ऐसे में उनकी उपस्थिति पंडित क्षेत्र संघ चौपाटी पीवी गण वासुदेव अग्रवाल भगवतशरण उपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज विश्वविद्यालय वास मंत्री शास्त्री यादव सर जैसे देशों के बीच बनती है स्वाधीनता की वर्षगांठ के अवसर पर गोविंद चंद्र पांडे की वैदिक संस्कृति का प्रश्न बन जाता है जिसमें अपने प्रकाशन के बाद भारतीय आध्यात्मिक और सनातन चेतन के अध्यायों को सार्थक के साथ किया जाता है हमें मालूम है कि भारतीय परंपरा में वेतन आदि माने जाते हैं तब से लेकर शहर तक उनके बहुत सारा होने के कारण भी इतनी बहु रेल में संभव हुई है उनके कई बार सही समय होता है ऐसा शास्त्रों को पंडित जी किताब प्रतिपादित करते हैं देखने वाली बात यह है कि ऐतिहासिक और इसके साथ ही आदि की व्याख्या पर विचार किया गया ऐसे में दयानंद सरस्वती श्री अरविंद मसूद और झा आदि की सकेत बराक व्यक्तियों में भी सम्यक दृष्टि डाली गई 1 रन तक के सबसे महत्वपूर्ण योजना योजना आती है कि वैदिक संस्कृति की परिभाषा करने वाले शरद सत्यात्मा सूत्रों की विवेचना किस प्रकार से भारतीय सभ्यता के इतिहास में प्रकट हुई इस पर भी समग्रता में चिंतन हुआ है ©Ek villain पारंपरिक और आधुनिक दृष्टि से वेदों की व्याख्या #proposeday
पारंपरिक और आधुनिक दृष्टि से वेदों की व्याख्या #proposeday #Society
read moreअदनासा-
Ravendra
शादी ब्याह की पारंपरिक गीत सदियों से चली आ रही व्यवस्था बदलती जा रही है अब पारंपरिक गीतों के अलावा लोग ज्यादातर डीजे को महत्व देते हैं #न्यूज़
read moreAnamika Jha
है संस्कृति ही पहचान हमारी, अपनी संस्कृति की एक गौरव हमारी लोक कलाएं भी हैं #folk_art#Madhubani_painting#My_art #NojotoPhoto
है संस्कृति ही पहचान हमारी, अपनी संस्कृति की एक गौरव हमारी लोक कलाएं भी हैं #folk_art#Madhubani_painting#my_art Photo #nojotophoto
read moreजनकवि शंकर पाल( बुन्देली)
भारतीय पारंपरिक कृषि॔ ,जो आत्मनिर्भर ता की राह सुझाती है,जो मूकजीवों के कष्टमय जीवन को सुगम बनाती है! #समाज
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