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Stories related to खिड़कियों के

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बागी विनय

किसी की खिड़कियों के परदे भी मख़मल के होते हैं

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किसी के जिस्म को  चिथड़ा तक नहीं हासिल
किसी की खिड़कियों के परदे भी मख़मल के होते हैं, किसी की खिड़कियों के परदे भी मख़मल के होते हैं

Dalip Kumar 'Deep'

😔🍁🍁🍂 खिड़कियों के तुम्हारी अब पर्दे नही हिलते🥀🥀 #शायरी

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Shayer tera

©Dalip Kumar Deep 😔🍁🍁🍂 खिड़कियों के तुम्हारी अब पर्दे नही हिलते🥀🥀

देवल कुमार

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो इन खिड़कियों के पार तमाशा कोई तो हो #Moon #Photography #Nojoto #shayri #caption

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 वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो 
इन खिड़कियों के पार तमाशा कोई तो हो 

 #moon #photography #nojoto #shayri #caption

सुसि ग़ाफ़िल

सफर में देखता रहा खिड़कियों से बाहर मैं अंधेरा होने तक जब अंधेरा हुआ बाहर तो मैं अपने अंदर देखने लगा

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बाहर के अंदर मैं था 
मेरे अंदर नजारा बाहर का .....  सफर में 
देखता रहा 
खिड़कियों से बाहर 
मैं अंधेरा होने तक 

जब अंधेरा हुआ बाहर 
तो मैं अपने अंदर देखने लगा

Nisheeth pandey

तुम्हारी आवाज गूँजता कानों में है, तुम्हारी कुहू कुहू का शोर सुनने को दिल बेचैन है... तुम्हारी आवाज के बगैर, लगता है यूँ जैसे हुआ न #lovequotes #कविता #lonelynight #streak #amirkhan #निशीथ #Nightlight #aliabhatt #humaurtum #NojotoStreak

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Shree

SEJA only for you!! 🤗❤️❤️❤️ एक पल को बस जरा खिड़कियों के पार देखो, वही चाॅंद ढ़ल गया है तेरे इंतजार में, आज फिर सूरज आया लेकर नया दिन एक और, #Coffee #yqbaba #YourQuoteAndMine #aestheticthoughts #yqaestheticthoughts #a_journey_of_thoughts #ATcoffeecup #unboundeddesires

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एक पल को बस जरा खिड़कियों के पार देखो,
वही चाॅंद ढ़ल गया है तेरे इंतजार में, आज
फिर सूरज आया लेकर नया दिन एक और,
वही ओस ठिठक कर पत्तों से गिर रही, देखो!!

ये सब तुम्हारे हैं, बांहें फैला आगोश में धर लो,
अब फिर से मुस्कुरा दो, ताजी हवा की हलचल है,
तितलियाॅं रंग लाईं, तुम मन की शीशी में भर लो।
अब ऑंसूओं को दरकिनार करो, चलो मुस्कुराओ! SEJA only for you!! 🤗❤️❤️❤️
एक पल को बस जरा खिड़कियों के पार देखो,
वही चाॅंद ढ़ल गया है तेरे इंतजार में, आज
फिर सूरज आया लेकर नया दिन एक और,

सुसि ग़ाफ़िल

जान के हवाले से मेरी जान लेने वाले आंखों में आंखें डाल मेरी आंख लेने वाले सजदे के दिन तुम ध्यान से जाना मेरे शहर से वक्त है खराब मेरी पहचा

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यात्राएं होती है 
कभी कबार लंबी-लंबी भी

खिड़कियों के सहारे बैठिये 
ओ हवा से बतियाने वाले जान के हवाले से मेरी जान लेने वाले 
आंखों में आंखें डाल मेरी आंख लेने वाले

सजदे के दिन तुम ध्यान से जाना मेरे शहर से
वक्त है खराब मेरी पहचा

Dheeraj Garg

दूर बसी तन्हाई जो धूप ओढ़कर बैठी है खेतों में लेटी है या पैर पे पैर मोड़कर बैठी है मैं भी सोच में बैठा हूं कुछ ताने बाने लेकर खिड़की से झां #Poetry

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 नजर के उस छोर पर
आसमान की दीवार खड़ी है दूर बसी तन्हाई 
जो धूप ओढ़कर बैठी है
खेतों में लेटी है या
पैर पे पैर मोड़कर बैठी है
मैं भी सोच में बैठा हूं
कुछ ताने बाने लेकर
खिड़की से झां

||स्वयं लेखन||

मुस्कुराएगा मेरा भारत और फ़िर वही सुबह होगी! एक बार फ़िर से वही बाजारों में रोनक होगी, वही चहल - पहल होगी, वही ढकेल पे फ़िर से गोलगप्पे और

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मुस्कुराएगा मेरा भारत और फ़िर वही सुबह होगी!

एक बार फ़िर से वही बाजारों में रोनक होगी, 
वही चहल - पहल होगी, 
वही ढकेल पे फ़िर से गोलगप्पे और चांट की महक होगी,
 वही फ़िर से समोसों और कचौड़ियों की दुकानों पे लोगों की भीड़ होगी।

और वो सुबह भी होगी जब मां अपने बच्चों को स्कूल के लिए 
एक बार फ़िर से तैयार करेगी और बैग लिए बच्चे स्कूल की बस
 का इंतज़ार करेंगे,

और शाम होते ही गलियों में बच्चे हाथ में बैट लिए एक बार फ़िर से 
वही अपने चौके- छक्कों से पड़ोसियों के खिड़कियों के कांच तोड़ेंगे।

वही मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारा, चर्च एक बार फ़िर से सजे होंगे,
एक बार फ़िर भक्तों की लम्बी कतार होगी।

ना कोई सांसों पे पहरा होगा और ना कोई मास्क का चेहरा होगा,
एक बार फ़िर से ज़िन्दगी की गूंजती हसीं होगी, 

मुस्कुराएगा मेरा भारत और फ़िर वही सुबह होगी!

©Gunjan Rajput मुस्कुराएगा मेरा भारत और फ़िर वही सुबह होगी!

एक बार फ़िर से वही बाजारों में रोनक होगी, वही चहल - पहल होगी, वही ढकेल पे फ़िर से गोलगप्पे और

सुसि ग़ाफ़िल

मैं और तुम आदर्शवादी रहें जब मैं गाँव के जोहड़ पर भेंसों को पानी पिलाता खेतों में काम करता एक ही कुर्ते को तीन दिन तक घसीटे रहता गरीबी मे

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तुम्हें पता है हम 
अश्लील थे उस वक़्त
समाज की नजरों सारणी में सबसे 
निचले पायदान पर....  मैं और तुम आदर्शवादी रहें
जब मैं गाँव के जोहड़ पर 
भेंसों को पानी पिलाता 
खेतों में काम करता
एक ही कुर्ते को 
तीन दिन तक घसीटे रहता
गरीबी मे
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