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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- रूठ गई हैं राधिका, कृष्ण करें मनुहार । लगा रहे हैं केश में , वो फूलों का हार ।। यमुना तट पर बैठकर , रचा रहे हैं रास । आ बैठी हैं राध #कविता

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दोहा :-
रूठ गई हैं राधिका, कृष्ण करें मनुहार ।
लगा रहे हैं केश में , वो फूलों का हार ।।
यमुना तट पर बैठकर , रचा रहे हैं रास ।
आ बैठी हैं राधिका , देखो उनके पास ।।
अब तक जिनके प्रेम का , प्रकृति देखती बाट ।
वे तो राधेश्याम हैं , उनकी ऊँची ठाट ।।
उस ग्वाले की प्रीति को , जान रहा संसार ।
जिसे पूजता है जगत, कहकर पालन हार ।।
ग्वाले जैसा फिर कहाँ, दिया किसी ने ज्ञान ।
जिसको सुनकर देख लो , हुए धन्य इंसान ।।
छोड़ द्वेष की भावना , करे मनुज भी रास ।
क्यों ऐसा दिखता नही , पूछ रहा यह दास ।।
रास रचाकर आप क्यों , करते उनसे आस ।
यही नेह मानव करे ,  बन कर तेरा  दास ।।
नाग पंचमी पर्व का , सुन लो बहुत महत्व ।
पढ़कर वेद पुराण को , जानो इसका तत्व ।।
मानों तो संसार में , पूज्य सभी हैं जीव ।
तभी सनातन धर्म में , हैं यह बहुत अतीव ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :-
रूठ गई हैं राधिका, कृष्ण करें मनुहार ।
लगा रहे हैं केश में , वो फूलों का हार ।।
यमुना तट पर बैठकर , रचा रहे हैं रास ।
आ बैठी हैं राध

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा :-गीत / लावणी छन्द विषय :- सावन आया बह मत जाये अब यह काज़ल , आँखों की बरसात लिखूँ । सावन आया प्रियतम आजा , दिल की अपने ब #कविता

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विधा         :-गीत / लावणी छन्द
विषय       :- सावन आया

बह मत जाये अब यह काज़ल , आँखों की बरसात लिखूँ ।
सावन आया प्रियतम आजा , दिल की अपने बात लिखूँ ।।
बह मत जाये अब यह काज़ल ...

तब डालूँ विरवा में झूला , संग तुम्हारे जब झूलूँ ।
पाकर पास तुम्हें प्रियतम जब ,गदगद होकर मैं फूलूँ ।।
अब करके याद तुम्हें निशिदिन, विरहन वाली रात लिखूँ ।
बह मत जाये अब यह काज़ल....

कितने सावन बीत गये हैं , तुम ही अब बतलाओ तो ।
रहा अधूरा गीत मिलन का , आकर कभी सुनाओ तो ।।
पाकर प्रेम अधूरा तेरा , मैं पगली सौगात लिखूँ ।
बह मत जाये अब यह काज़ल...

देहरी तुम्हारी बैठी मैं , तेरी बाट निहारूँ हूँ ।
घड़ी-घड़ी अब धड़के जियरा, रह रह तुझे पुकारूँ हूँ ।।
आज अधूरी प्रेम कहानी , की वही मुलाकात लिखूँ ।
बह मत जाये अब यह काज़ल ....

बह मत जाये अब यह काज़ल , आँखों की बरसात लिखूँ ।
सावन आया प्रियतम आजा , दिल की अपनी बात लिखूँ ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 
विधा         :-गीत / लावणी छन्द
विषय       :- सावन आया

बह मत जाये अब यह काज़ल , आँखों की बरसात लिखूँ ।
सावन आया प्रियतम आजा , दिल की अपने ब
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