Find the Latest Status about poem of kavita tiwari from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, poem of kavita tiwari.
Shayra
White मृगतृष्णा की माया में, मन तृषित भ्रमित सा भागे। रेत के जल में डूबे प्यास, सच का कोई निशान न पाए। आस की इस अनंत डोर, अधूरी चाहतें सुलगाए। हर कदम पर छलावे हैं, सपनों के साए गहराए। प्यास भी बुझती नहीं, और सच भी कभी हाथ न आए। ©Shayra #Sad_Status #Hindi #poem #kavita #nojotohindi
#Sad_Status #Hindi #poem #kavita #nojotohindi #कविता
read moreAjita Bansal
White वो रास्ते भी क्या रास्ते थे, जो हमें मंज़िल तक ले जाते थे। कभी धूप में, कभी छाँव में, हम चलते रहे, सफ़र के साथ। हर मोड़ पर, हर इक ठहराव में, मिले हमसे कुछ किस्से नए। कभी हँसाए, कभी रुलाए, वो रास्ते भी हमें सिखाते गए। कभी ठोकरें खाईं, कभी गिरकर उठे, मंज़िल की ओर बढ़ते गए। वो रास्ते हमें समझाते रहे, कि संघर्ष ही है असली जीत का रास्ता। ©Ajita Bansal #Thinking poem of the day
Prakash Vidyarthi
White मेरा ईश्क सूर्पनखा ::::::::::::::::::::::::::::::::::::: अरे तनिक सुनो सुन्दरी सूर्पनखा। हे देवी रुपवती मोहिनी नवलखा।। आपने ये कैसा परिणय प्रस्ताव रखा । हम ठहरे तूक्ष साधारण मानव नर और आप हैं दशानन दुलारी सखा।। फिर क्यों लालायित हों देवी बिना समझे प्रेम परिभाषा कैसे होगा हमारा संगम कन्या हे देखो हमारी दुर्दशा। न डालो प्रेम की मायाजाल हमपर न करो कोई आशा।। नहीं दे पाएंगे हम स्वर्ग सा सूख आपको न राजा सा । झेलना पड़ेगा आपको कष्ट सदा मिलेगा बस निराशा।। समझने के काबिल नहीं हम आपकी स्नेह बंधन सी भाषा।। होंगे मिलन न सुनो साधिके न भटको आगा पच्छा। पिता वचन पालन करने को आए हैं जंगल झखा।। हम बालक छोटे कुमार वनवासी आप हैं पूर्ण परिपक्का।। इस निर्जन झाड़ जंगल वन में उपवन कुटिया में । फिर आपने कब कैसे और कौन सा स्वाद है चखा।। जो हमें पाने की खातिर आप इतनी बेताब हैं। प्रेम पिपासी सुकुमारी जैसे एक खुली किताब हैं । हृदय में बेचैन सी उठती लहर आपकी बेहिसाब हैं। कोई और राजकुमार तलासो राक्षसी कूल कन्या आप तो ख़ुद ही बहुत सुंदर लाजवाब हैं। किसी और राज्य की राजकुमार की हसीन खुशी ख्याब हैं।। आप महाज्ञानी महाप्रतापि लंकेश की बहिनी। हम तुक्ष वनवासी की फिर कैसे बनेंगी संगिनी ।। राम लखन को त्याग दो करो न कोई मोह दामिनी।। हों जायेंगे मोहित आपपर कितने योद्धा हे वीर योगिनी।। पाओ न बलपूर्बक करो न कोई क्रोध हे क्रोधिनी।। आपकी चाहत में बहुत महावीर होंगे आतूर। हे लंका की राजकुमारी विद्वान गुणी बड़ी चातुर।। माया तपस्या छल बल से बहुत ही होंगे भरपूर।। महापंडित या यथा रघुवंशी क्षत्रिय धनुधारी प्रक्रमी। चुनो कोई राजदरबारी शौहर b बली नायक ठाकुर।। भले बन जाती आप हमारी भीं कोई मित्र सखा। आपकी परिणय निवेदन से दुख रहा हैं माथा।। आप भीं बूझो हमारी कष्ट दुर्दिन कथा व्यथा।। मैं आजीवन वचनबद्ध धनुधारि प्यारी पति सच्चा। क्षमा करें देवी अब मैं कितना गावूं अपनी प्रेम गाथा।। मैं हूं राम दशरथ नन्दन पूर्व सूत्र सिया हूं । प्राणों के प्यारे आंखों के तारे सीता के पिया हूं।। छोटे अनुज लखन के पास जाओ प्रिए।। मैं तो आपके कछु योग्य नहीं बार बार न अब हमे सताओ प्रिए।। मैं अग्रज राम का भक्त सेवक दास हूं देवी। जाओ राम भईया के पास हुस्न वहीं दिखाओ प्रिय। मेरे प्रेम के बीच मे जो प्राणी आए उसे मैं खा जाउंगी। दैत्य कुल की नारी वारी मैं कच्चे ही चाबा जाऊंगी।। देखो वीर वात्स्व उठो लक्ष्मण भाभी के प्राण संकट में हैं। रुको प्यारी झुको सुरपनाखा लक्ष्मण रेखा न पार करो हैं विनती विनय विवश में सीता मां पे अत्याचार न करो। वरना आपको अपना सुन्दरतम रूप गंवाना होगा। टेढ़ी चाल चलो न सुनो नाक सबसे छुपाना होगा।। प्यार में कपट छल होता नहीं पाना हैं तो पुकार करो। किसी दिलवर आशिक का सच्चे मन से दीदार करो ।। न किसी का तिरस्कार करो प्यार करो बस प्यार करो।। चाहें सोलह श्रृंगार करो इंतजार करो ऐतवार करो।। विद्यार्थी रूप मनुहार करो प्रकाश प्रेम आंखें चार करो।। स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी भोजपुर बिहार ©Prakash Vidyarthi #Tulips #kavita #poem✍🧡🧡💛 #Poet #गीत
Prakash Vidyarthi
White "कपटी मानव अबला नारी" :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: ए मूर्ख मानव तेरा कितना हैं बल। क्या सीखा हैं तूने बस करना छल।। जानवर से भीं बद्तर हैं तेरी अकल। बनकर दुशासन करता हैं जुल्म कतल।। ये क्या हों गया है दुनियां को आजकल। चेहरे पे अमृत का मुखौटा मन में भरा गरल।। लुटते हों मासूमों की इज़्ज़त आबरू ज़ालिम। बेरहम कातिल दुष्ट निर्लज कैसी है तेरी तालीम।। समझते हों स्त्री को तुम सिर्फ खिलौना। उसकी मासूमियत को असहाय बौना।। कैसे मसल दिया तू एक खिलती कली फूल को। कैसे कुचल दिया तूने मानवता के सिद्धांत रूल को।। तनिक लज्जा नहीं आई तुझे उसकी चीख पर। पाव नहीं डगमाए तेरे उस अबला के भीख पर।। कहते हैं लोग की जमाना गया हैं बदल।। हैं आजाद हिंद स्वतंत्र भारत देश सफल।। फिर कैसा हैं ये राक्षसो का कपटी शकल। कहां करते हैं ये नियत के खोट नकल।। कैसे पहचानें कोई किसी दुरात्मा पापी को। मुख मे राम बगल में छूरी वाले अपराधी को।। बिनकसूर तड़पकर दम तोड़ी होंगी। अख़बार की सुर्खियां शर्मसार हो गई।। मां की दुलारी पापा की प्यारी परी। बेरहम हैवानियत की शिकार हों गईं।। कहते हैं डॉक्टर होता हैं भगवान का रूप। फिर कैसे कोई लिया अपने भगवान को ही लूट।। अरे ओ दानव पुरूष कहां गईं तेरी पुरुषार्थ। निरर्थक साबित हैं तेरी भ्रष्ट बुद्धि पार्थ कृतार्थ।। काश बनकर स्त्री कभी स्त्री का दुःख दर्द तुम भी तन मन में महसूस करते। तो ऐसी घिनौनी दुसाहस हरकत कभी तुम दुष्ट प्रवृत्ति मनहूस मनुष्य न करते।। सदियों से बहु बहन बेटियां रही हैं सीधी चुप। अरे अब तो देखने दो उसे जुल्मी जग कुरूप।। लेने दो उसे खुली सांसे सूरज की उर्जवान धूप। यहीं तो हैं सृष्टि प्रकृति ब्रह्मांड सुंदरी स्वरूप।। स्वरचित:- प्रकाश विद्यार्थी भोजपुर बिहार ©Prakash Vidyarthi #happy_independence_day #poem #kavita
#happy_independence_day #poem #kavita #Poetry
read moreDeepa Ruwali
तुम्हारे इंतजार में बैठे रहे। सावन की ये रिमझिम झड़ियां अनवरत बरसती रहीं, ये आंखें तुम्हें देखने के लिए न जाने कब तक तरसती रहीं । न तुम आए, और न तुम्हारे आने की आस रही, तुम जान नहीं सकते कि ये तन्हाइयां हमें किस क़दर खटकती रहीं। हम पहाड़ी पर उतरे हुए उन बादलों को देखे रहे, और साथ–साथ तुम्हारे इंतजार में बैठे रहे। झरने की भांति आंखों से झर–झर पानी झरता रहा, मिलन का एक ख़्वाब भी मन ही मन में तिरता रहा। हम झमाझम बारिश में खेत की मेढ़ में बैठे भीगते रहे, न जाने क्यों इन मोतियों सी बूंदों को देखकर भी भीतर से कुछ–कुछ खीझते रहे।। तुम्हारे आने की आस न होने पर भी हम क्रोध में वहीं पर ऐंठे रहे, बदन ठंड से ठिठुरने लगा फिर भी हम यूं ही बैठे रहे। न तुम आए और न तुम्हारे आने की आस रही, कुछ न रहा हमारे पास, बस तन्हाइयां ही साथ रहीं। कैसे बताएं कि हम उस हाल में कैसे रहे, ख़ुद को अपनी ही बाहों में पकड़े बैठे रहे। हम उस पार पहाड़ी से गिरते सफ़ेद झरने को देखे रहे, और साथ–साथ तुम्हारे इंतजार में बैठे रहे।। नदियों का कोलाहल न जाने क्यों शोर मचाता रहा, मेघों की गर्जन सुनते ही ये मन भी तुमसे मिलने के लिए जोर लगाता रहा। बैठे–बैठे इंतजार के सिवा और क्या हमारे हाथ में था? बारिश, एकांत, नदियों का कोलाहल, मेघों का गर्जन,सब हमारे साथ में था, बस एक तू ही था जो हमारे पास में न था। न जाने क्यों हम एकांत में भी वहीं पर ऐंठे रहे, हम पहाड़ी पर से बादलों को ऊपर उड़ते देखे रहे, और साथ साथ तुम्हारे इंतजार में बैठे रहे।। ©Deepa Ruwali #Life #SAD #treanding #poem #kavita #kavya #motivatation #vichar
Life #SAD #treanding #poem #kavita #kavya #motivatation #vichar #कविता
read moreSuvichar
White उड़ान: सपनों की ओर चलो आगे बढ़ें, हिम्मत ना हारें, सपनों को पंखों पर उड़ाएं। जीवन की राहों में अड़े रहें साथ, बिना होकर मेहनत से खुद को पाएं। हर सुबह उठकर नई चुनौतियों को गले लगाएं, उन्नति की ओर बढ़ने का नारा लगाएं। चाहे रास्ते में हों जितनी भी बाधाएं, इरादे बुलंद रखें, अपने सपनों को चाएं। उद्यम, उमंग, और विश्वास से भरपूर, हर कठिनाई को हम पार करें सुरूर। सपनों की उड़ान को जीवन में बसाएं, खुद को सबूत दें, और मंजिल तक पहुँचाएं। जीवन के सफर में रखें उच्च मानक, सपनों के साथ सफलता का जानकार बने। हौंसला न हारे, आगे बढ़े हर दिन, बस यही है मोटिवेशन, जीवन की यही वजह। ©Suvichar #poem #motivatation #kavita #motivatational #motivate #poeatry
Anagha Ukaskar
भविष्य त्याच्या हाती, तो निर्माता बालकांचा म्हणूनच त्याला दिला आपण दर्जा पालकांचा आठवतो तो दिवस जेव्हा त्याला "आई" म्हटले काहीतरी होते ज्यामुळे आम्हाला सुरक्षित वाटले घरापेक्षा जास्त वेळ शाळेतच तर असायचो कधी कधी तर चक्क त्याच्या मांडीवरही बसायचो! लाडका-दोडका नाही, सगळी त्याचीच मुले होती त्यानेच गिरवायला शिकवली आम्हा पाटी समानतेची सण सारे, नवे निराळे, केले नेहमी साजरे त्याच्यामुळे सजवले आपल्या संस्कृतीचे नजारे मनोभावे आठवू त्याला, नको कशाची सक्ती हृदयी माझ्या सदा वसावी त्या गुरूचीच मूर्ती ©Anagha Ukaskar #Teachersday #poem #guru #marathi #kavita #nojotomarathi
#Teachersday #poem #guru #marathi #kavita #nojotomarathi #Poetry
read moreAnagha Ukaskar
White खरं सांगू? शाळेचे ते दिवसच छान होते, "आज काय घालू?" असले विचार मनी नव्हते! एकच गणवेश सर्वांना, वर्ग परिवार होता जणू आता लक्षात येतं, जेव्हा मागे वळून पाहते... आठवतं खेळाचं मैदान, मैदानावरचा गोंधळ, पकडापकडी खेळताना हातात हात होते, चिंता नव्हती घड्याळाची, ना पाऊस पाण्याची झळ, आता खुद्द वेळच हात धरुन मागे लागते! शाळेचा एकही दिवस चुकवला नाही कधी, आता कुठे दिवसभर बाहेर पडावेसे वाटते? मोठे झालो तसे सारे भरकटत गेलो, 'आज' नाही, पाऊल उद्यात गुरफटत राहते! ©Anagha Ukaskar #love_shayari #poem #Poetry #Nojoto #nojotomarathi #kavita
#love_shayari #poem #Poetry #nojotomarathi #kavita
read more