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Stories related to देशाच्या आधारित गाणे

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Vs Nagerkoti

#Aasmaan सोच,, जिंदगी जो आपकी सोच पर आधारित है । #कविता

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कोई क्या जाने की आपको चाहिए क्या 
हर किसी को तुम अपनी तरह लगते हो 
बहुत विचित्र होती हैं सोच हर किसी की
हर कोई औरों की तरह भी नही सोचता 
सब का एक सा तजुर्बा हो ये जरूरी नहीं 
इम्तिहान जिंदगी का कभी एक सा नहीं होता
किसी की सरल किसी की मुस्किल हैं राहें
सभी का किस्सा भी तो एक सा नहीं होता 
ये लिखा जा चुका है जो तुम जी रहे हो 
उसे क्या फर्क पड़ता हैं कि तुम्हें क्या लगा








जिंदगी,,, एक सोच का समुन्दर

©Vs Nagerkoti #Aasmaan सोच,, जिंदगी जो आपकी 
सोच पर आधारित है ।

Sandeep L Guru

यहाँ ट्यूलिप्स पर आधारित एक अनोखी कविता प्रस्तुत है। #sandeeplguru #viral #Poetry #Tulips poetry in hindi deep poetry in Life h

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White ट्यूलिप का संदेश


बर्फ की चादर ओढ़े हुए,धरती के आँचल में छिपे,
ट्यूलिप के फूल ने ये कहा,संघर्ष में भी खिलना है सदा।

 हर रंग में छिपी है बात,प्रकृति की प्यारी सौगात,
जैसे ट्यूलिप मुस्कराए,वैसे ही जीवन में रंग भर जाएं।

नाज़ुक पंखुड़ियों में छिपा है,एक हौसला, एक नया सवेरा,
ट्यूलिप का हर फूल कहता है,अंधेरों में भी उजाला होता है।

तो सीखो इन फूलों से जीना,हर मुश्किल में खुद को पाना,
क्योंकि ट्यूलिप के गुलदस्ते में,छिपा है जिंदगी का फ़साना।

©Lucky Latest यहाँ ट्यूलिप्स पर आधारित एक अनोखी कविता प्रस्तुत है।
#sandeeplguru #viral  #Nojoto
#Poetry #Tulips  poetry in hindi
 deep poetry in Life 
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता

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*विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ....

पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह ।
खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।।
आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव ।
जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव ।
आओ लौट चलें अब साथी .....

स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय ।
सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।।
यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव ।
देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह ।
मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।।
अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव ।
सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी .....

झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख ।
गर्दन भी ये अब न न  करती ,लोग रहे सब देख ।।
वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव ।
मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।।
आओ लौट चलें साथी अब ...

कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव ।
एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।।
और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव ।
अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।।
आओ लौट चलें अब साथी....

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा     सरसी छन्द आधारित गीत*

आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव ।
वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।।
आओ लौट चलें अब साथी ...

Bharat Pawar

सच्ची घटना पर आधारित हिंदी दिवस पर कविता

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