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AJAY PANDEY UJJWAL
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है । सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से, क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है । इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है, हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है । पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं, बात इतनी है कि कोई पुल बना है रक्त वर्षों से नसों में खौलता है, आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है । हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था, शौक से डूबे जिसे भी डूबना है । दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है, आजकल नेपथ्य में संभावना है । _दुष्यन्त_कुमार ©AJAY PANDEY UJJWAL दुष्यन्त कुमार
दुष्यन्त कुमार #शायरी
read morerj_rohit
कहां तो तय था प्यार हर एक दिल के लिए, कहां प्यार मयस्सर नहीं महफ़िल के लिए, यहां तो इश्क के साए में लोग जलते हैं, चलो यहां से चले हम उम्र भर के लिए।। --rj_rohit #LastDay #rj_series दुष्यन्त कुमार साहब की कविता पर आधारित है।।
#LastDay #rj_series दुष्यन्त कुमार साहब की कविता पर आधारित है।।
read moreSatendra Sharma
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है| एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है| एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है| एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है| निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है| दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है| .... दुष्यंत कुमार महान कवि दुष्यन्त कुमार की एक प्रासंगिक गज़ल......
महान कवि दुष्यन्त कुमार की एक प्रासंगिक गज़ल......
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