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तुम दिन बा दिन किसी और के हो रहे हो बस फर्क इतना है कि उसके आगे नहीं उससे छिपके मेरे हो रहे हो #Shikha Mishra उससे छिपके
उससे छिपके #shikha
read moreMr Rasiya
चुपके-चुपके हाँ छिपके देखती थी मुझे रसिया ~ (पुरी ग़ज़ल अनुशीर्षक में पढ़े ) #NojotoQuote चुपके चुपके ( गज़ल ) By Mr Rasiya चुपके-चुपके हाँ छिपके देखती थी मुझे
चुपके चुपके ( गज़ल ) By Mr Rasiya चुपके-चुपके हाँ छिपके देखती थी मुझे
read moreKaushik Sinha
हिंदी कविता कृपया कैप्शन में पढ़ें। वर्तनी की आसुधियों के लिए हमे खेद है। वर्षों बाद प्रयाश किया है। धन्यवाद् कौशिक सिन्हा वक़्त की साजिश कहो या कहो दोस्तों का बेबक दोहराना या फिर उन आँखों का यूँ नजरों में आना, जो हमे महसूस करना सिखा गया। उसके गुजरने का इन्तेजार
✍️ लिकेश ठाकुर
तेरे साथ होने की ख़ुशी, ये मदहोश शमा, फिर ये पल लौट आये, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ग़ैर होकर भी तेरी आँखों से, मुझसे बिछड़ने के लिये, आँसुओं की धार बहे, ऐसा लगता तो नहीं हैं। किसी मोड़ पर आ मिले, इक पल थोड़ा मैं ठहरू, तुम भी वहाँ ठहरो, ऐसा लगता तो नहीं हैं। कोई बात जो तुमने न कहीं, फिर वहीं दोहरा सको, हक से लगा लो तुम गले, ऐसा लगता तो नहीं हैं। किसी कोने में रोते छिपके , किसी बाहों में झुल्फ़ तले, गम के आँसू बहाते होगें, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ढ़लती रातों के साये में, पुरानी यादों को ताजा कर, इश्क़ की फुहारों में भीगते होगें, ऐसा लगता तो नहीं हैं। चलो!सफर इतना ही सही, लम्हें कुछ यादगार रहे, तुम भी उन्हें याद करो, ऐसा लगता तो नहीं हैं। लिकेश ठाकुर तेरे साथ होने की ख़ुशी, ये मदहोश शमा, फिर ये पल लौट आये, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ग़ैर होकर भी तेरी आँखों से, मुझसे बिछड़ने के लिये, आँसुओं की धा
तेरे साथ होने की ख़ुशी, ये मदहोश शमा, फिर ये पल लौट आये, ऐसा लगता तो नहीं हैं। ग़ैर होकर भी तेरी आँखों से, मुझसे बिछड़ने के लिये, आँसुओं की धा #कविता #Break_up_day
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