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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
"ये ऊंची-ऊंची इमारतें" ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें बता रही जनसंख्या के आंकड़े गर अब भी हम लोग न सम्भले बहुत जल्द होंगे बड़े-बड़े हादसे कम चीजों से ज्यादा की चाहते इससे हो रही,हादसों की आहटें बढ़ रहा,भूमि पर अतिरिक्त बोझ कत्ल हो रहे,नित ही,भू कालजे बिगड़ रहा,पारिस्थिकी संतुलन मनुष्य का बहुत बिगड़ गया,मन बहुत बढ़े,प्रकृति छेड़छाड़ मामले कुल्हाड़ी,पांवों पर खुद ही मार रहे ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें मिटा रही गांवों की मासूमियतें फूल दब रहे है,पत्थरो के तले बहुत बिगड़ गई,हमारी आदतें गर वक्त रहते हम लोग न सुधरे बढ़ी जनसंख्या,पार करेंगी हदें भुखमरी से बढ़ेगी,इतनी मौतें एक आम खाने,मरेंगे सो-सो जने प्रकृति से जो गर छोड़ेंगे जड़ें फिर तो हम सूखकर ऐसे मरेंगे, जैसे जेठ दुपहरी में बदन जले व्यर्थ की आधुनिकता छोड़ चले जो भी कार्य प्रकृति को हानि दे वो कार्य हम लोग कभी न करे जितना हम प्रकृति से जुड़ सके, वो कार्य हम लोग अवश्य ही करे प्रकृति मां की गोद मे सोने चले ओर अपने सारे ही गम भूल चले ये ज़माने की ऊंची-ऊंची इमारतें आज तक कोई संग लेकर न चले जिओ-जीने दो,सिद्धांत पर चले ओर निःस्वार्थ कर्म करते हुए चले जिसने जिंदादिली के जलाये दीये उस रोशनी से,तम जगमगाने लगे दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" ऊंची-ऊंची इमारते #City
Ravi S. Singh 'चंचल'(Hindian)
दिल में छिपा है जो तूफ़ान अभी बाक़ी है मत देखो कद आसमां का, ऊंची उड़ान अभी बाक़ी है। ✍️"चंचल" #ऊंची
Meenakshi Sharma
ऊंची इमारतों के भी बहुत घर हुआ करते हैं, फिर भी गरीब बच्चे फुटपाथ पर सोया करते हैं, ना जाने खुदा की बनाई इस दुनिया का यह कौन-सा खेल हुआ होगा जब गरीब के घर फुटपाथ पर सोने वाला यह बच्चा हुआ होगा और अमीर का बच्चा ऊची इमारतों वाले घर में सोया होगा। Meenakshi Sharma ऊंची इमारतें
ऊंची इमारतें #शायरी
read moreJ P Lodhi.
पहाड़ों की कठिन राहों से होकर, गुजरता जिंदगी का तन्हा सफर। गर सच्चे साथी का मिलता साथ, ऊंची चोटियां भी हो जाती फतह। #ऊंची चोटियां
#ऊंची चोटियां
read moreSatish Kumar Meena
White ऊंची इमारतें खड़ी हो गई, लगता हैं आज़ादी दफ़न हो गई। वक्त किसी को अब कहां,, इंसान को खुद घुटन हो गई।। प्रेम का बाजार लगता था, वो गलियां गुम सी हो गई। बचपन जवान बन बैठा है,, बुढ़ापे की लाठी खत्म हो गई। गुमसुम चेहरे मुस्कुरा देते थे,, वो चेहरे धूमिल हो गए। बाजार से रंगत निखारने वाले, वो दुकानदार ओझल हो गए। खुली खिड़कियां नजर नहीं आती, बंद मकानों में सांसे नम हो गई। ऊंची इमारतें खड़ी हो गई, लगता है आजादी दफ़न हो गई।। ©Satish Kumar Meena ऊंची इमारतें
ऊंची इमारतें #कविता
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