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pravin Barawkar
कोणाला किती जीव लावा पण त्याला आपल्यापेक्षा बेटर ऑप्शन मिळाला तर तो आपल्याला सोडून जातोच #प्रविण सुतार
#प्रविण सुतार
read moreNirankar Trivedi
White खुशियों की ये बेला आई है, सफलता की राह पर तू सजीव छाया है। मेहनत की बुनाई ने रंग जमाया, तुझे इस जीत की ढेर सारी बधाई है। ©Nirankar Trivedi खुशियों की ये बेला आई है, सफलता की राह पर तू सजीव छाया है। मेहनत की बुनाई ने रंग जमाया, तुझे इस जीत की ढेर सारी बधाई है।#Paris_Olympics_2024
खुशियों की ये बेला आई है, सफलता की राह पर तू सजीव छाया है। मेहनत की बुनाई ने रंग जमाया, तुझे इस जीत की ढेर सारी बधाई है।#Paris_Olympics_2024
read moreपरवाज़ हाज़िर ........
hashamat ki bunai me zaruri he ke tum khudadar ban jao.. lakhire khichti jani he ke tum galib ki gazal me kahi bus shabd naa rah jao... ©G0V!ND DHAkAD #dailymessage #the #book हशमत की बुनाई में ज़रूरी हे के तुम खुददार बन जाओ.. लखीरे खिचती जनि हे.. के तुम ग़ालिब की ग़ज़ल में बस शब्द ना रह जाओ
#DailyMessage the #Book हशमत की बुनाई में ज़रूरी हे के तुम खुददार बन जाओ.. लखीरे खिचती जनि हे.. के तुम ग़ालिब की ग़ज़ल में बस शब्द ना रह जाओ
read moreअनिता कुमावत
स्त्रियाँ टांके लगा लेती है अपनी ख्वाहिशों को बुन लेती है कुछ नये ख्वाब रंग देती है अपने प्रेम- स्नेह से रिश्तों के कच्चे धागे को और पक्का कर लेती उन्हें उम्र भर के लिए ...!!!! स्त्रियाँ बुनाई सिलाई कढ़ाई में निपुण होती हैं ना 😊😊 #स्त्री #ख्वाहिशें #निपुण #yqdidi #yqhindi #pinterest
स्त्रियाँ बुनाई सिलाई कढ़ाई में निपुण होती हैं ना 😊😊 #स्त्री #ख्वाहिशें #निपुण #yqdidi #yqhindi #Pinterest
read moreAniket sagar
🤔कधी बापाचं दुसरं रूप पाहिलंय?🤔 कधी बापाचं दुसरं रूप पाहिलंय? चिडतो, ओरडतो, चिडचिड करतो मुलांचं लवकर कौतुक ही नाही करत पण कधी त्यांच्या मनात काय चाललंय हे कधी कुणी जाणून घेतलंय? कधी बापाचं दुसरं रूप पाहिलंय? स्वतः नाही खाणार पण मुलांना खाऊ घालतो स्वतःला काही नाही घेणार पण मुलांना आणतो बालपणी बोट पकडून चालायला शिकवतो खांद्यावर बसवून अख्खं जग तो दाखवतो मुलांना हसवण्याचा सतत प्रयत्न करतो कधी त्याला मनात रडतांना पाहिलंय? नाही ना! मुलांना कधीच तो आपलं दुःख सांगत नाही सुख देतो सदा कधी दुःख त्याचं मांडत नाही किती हळवा आहे आतून हे कधी जाणवतंय कधी हळव्या बापाचं दुसरं रूप पाहिलंय? एकदा बसा बोला जाणून घ्या किती प्रेम आहे त्याच्या काळजात प्रेम करत नाही तो नका असं समजू खूप काही दडलेलं असतं त्याच्या मनात... ©कवी अनिकेत मशिदकर #MarathiKavita #premkavita #lovepoetry #Sunrise Pandit Nimbalkàr यश सोनार Harishchandra R. Dhiwar कवी-श्रीशैल सुतार DISHAASHIRWAD officia
#MarathiKavita #premkavita #lovepoetry #Sunrise Pandit Nimbalkàr यश सोनार Harishchandra R. Dhiwar कवी-श्रीशैल सुतार DISHAASHIRWAD officia #poem
read moreNandita Tanuja
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
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