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नवनीत ठाकुर
जिसे कोई छू न पाया, उसी आकाश को नीले और सफेद के संग रंग डाला, ये कौन चित्रकार है।। कांटों को हर फूल के संग बगिया में जिसने बसाया, वो किसका विचार है।। मछलियों को जिसने गहरे सागर में खेलना सिखाया, हर लहर में जीने का नया अंदाज़ दिखाया, ये किसका चमत्कार है।। जमीन को काट कर जिसने पहाड़ों को ऊंचा बनाया, ये कैसा अद्भुत शिल्पकार है।। नदी छल-छल कर कानों में संगीत जो सुनाए, हर बहाव में छुपा कोई तो अनदेखा गीतकार है।। चांद जो रात भर सबको अपनी निगरानी में रखता, खामोश रात का वो मौन पहरेदार है।। अनगिनत तारे भी दिन में आने की हिम्मत नहीं कर पाते, सूरज को अकेले जिसने आकाश में जलना सिखाया, वो ही तो प्रकृति का महान आधार है।। वो अदृश्य है, पर हर जगह है रचा-बसा, हर सांस में, हर धड़कन में उसी का उपकार है।। कुदरत के हर कण , हर रंग, हर रूप में बस उसी का अधिकार है।। ©Navneet Thakur #ये कौन चित्रकार है हिंदी कविता
#ये कौन चित्रकार है हिंदी कविता
read moreAnil Sapkal
थका हारा जब जब तू दफ्तर से घर आता है मुश्किलोमे, संकटोमें जब जब तू घिर जाता हैं । ऐसे में क्या करे तब कुछ समझ नहीं आता है आंख से आसू बहता हैं और पापा याद आता है।। जिम्मेदारियों का बोझ जब जब सरपें आता हैं कोशिशोंके बावजूद भी तू संभाल नहीं पाता है। अकेलेपनका अहसास जब जब तुझे सताता है आंख से आसू बहता है और पापा याद आता है।। अनिल ©Anil Sapkal #foryoupapa पिता जीवन का संगीत है, पिता हैं तो जित है ll # कविता कोश# प्यार पर कविता# हिंदी कविता# कविताएं# प्रेरणादायी कविता हिंदी
#foryoupapa पिता जीवन का संगीत है, पिता हैं तो जित है ll # कविता कोश# प्यार पर कविता# हिंदी कविता# कविताएं# प्रेरणादायी कविता हिंदी
read moreShashi Bhushan Mishra
मन है एक हवा का झोंका, उड़ने से किसने है रोका, आसमान है ख़ुद के भीतर, दुनिया तो केवल है धोखा, होती है जब प्रिय कल्पना, बिना खर्च रंग हो चोखा, हुई आज हैरत अपनो पर, जबसे छुरी पीठ में भोंका, करते फिरते सब मनमानी, बोलो किसने किस्को टोका, बढ़ी आज रफ़्तार सड़क पे, दुर्घटना में ठोकम ठोंका, हुआ उजाला जब तो देखा, पाँव पड़ा है जख़्मी फोंका, शांति नहीं है मन में 'गुंजन', फिर समझो सारे हैं बोका, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra #मन है एक हवा का झोंका#
#मन है एक हवा का झोंका#
read morekavitri vibha prabhuraj singh
Shashi Bhushan Mishra
White बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है, घण्टा नहीं फ़र्क पड़ता है, बेमतलब की बातों पर भी, मूरख सदा तर्क करता है, अपनी ही करतूतों से वह, जन्नत जहाँ नर्क करता है, सच्चा वैद्य हरे दुःख पीड़ा, जड़ी पीस अर्क करता है, सूरज की गर्मी से मतलब, नाहक मकर कर्क करता है, अंतर्घट की प्यास बुझा लो, गुरुवाणी सतर्क करता है, 'गुंजन' विला जरूरत के भी, बस दिन-रात वर्क करता है, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है#
#बेड़ा स्वयं ग़र्क़ करता है#
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