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Stories related to टूटी फूटी

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ਸੀਰਿਯਸ jatt

bhai आज कल सील टूटी हुई मिलती हैं! boldo तो इनको लगती हैं बुरी! #Videos

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Rakesh frnds4ever

#हाल_बेहाल अ:- #क्या हाल है!??!! मैं:- ,,,,,,,,,ठीक,,,, (हाल बेहाल हैं, सवाल ही सवाल है, #जिंदगी भी जी का #जंजाल है,बवाल ही बवाल हैं, शरी #मन #धरती #थम #हवाएं #कंकाल #कोट्स #rakeshyadav

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Rakesh frnds4ever

#फूटिआंखनसुहायकिसिको #बरसों से खटकता रहा हूं जिन #आंखों में,, अब मैं उनमें रगड़ने लगा हूं फूटी आंख ना सुहाया किसी को,#चुभता रहा ना भाया कि #बंजर #तिनका #तलहटी #परतों #कोट्स #दिलकादरिया♥ #rakeshyadav

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White बरसों से खटकता रहा हूं जिन आंखों में,,
अब मैं उनमें रगड़ने लगा हूं 

फूटी आंख ना सुहाया किसी को,
चुभता रहा ना भाया किसी को,
 आज उनमें और भी ज्यादा चुभने लगा हूं मैं 


दिल के दरिया का जो पानी
 सालों से 
आंखो से बह बह कर सूख चुका,
 जिसकी तलहटी को खुंद खूंद कर
 उसकी परतों से खून तक चूस डाला, 

जो अब बंजर सुनसान परतों की पपड़ी
 खाक बन कर उड़ती है तो 

उस धूल से उनकी आंखों में जो हल्की सी परेशानी है ,, 
वैसा एक कचरा/ तिनका बना हुआ हूं मैं ,,....

©Rakesh frnds4ever #फूटिआंखनसुहायकिसिको

#बरसों से खटकता रहा हूं जिन #आंखों में,,
अब मैं उनमें रगड़ने लगा हूं 
फूटी आंख ना सुहाया किसी को,#चुभता रहा ना भाया कि

Odysseus

Rap टूटी चप्पल, सस्ते कपड़े बटुआ अपना ख़ाली है हर मौसम में साथ निभाती अपनी ये कंगाली है कोई ताने देता है तो #Hindi #कॉमेडी #SeptemberCreator

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Niaz (Harf)

गरीबी फटे हुए कपड़ों में लिपटी ज़िन्दगी की कहानी, हर सांस में बसी है दर्द की निशानी। पेट की आग बुझाने को दिन रात जूझते हैं, ख्वाब तो हैं म #कविता #Niaz

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Poet Kuldeep Singh Ruhela

#Happiness मेरे सारे दोस्त मेरी दिल की जान है धड़कनों में चलती हुई मेरी ये सांस है दूर कभी न होना मुझसे मेरे दोस्तो तुमको मेरी कसम जिस द #शायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ #कविता

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White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभ
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