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Sarfaraj idrishi
ज़िंदगी मे आपका असल मक़ाम वही है जिसका इज़हार लोग आपकी गैर मौजूदगी मे करते हैं ©Sarfaraj idrishi #Thoughts ज़िंदगी मे आपका असल मक़ाम वही है जिसका इज़हार लोग आपकी गैर मौजूदगी मे करते हैं Islam gudiya बाबा ब्राऊनबियर्ड Achman Chitranshi
Thoughts ज़िंदगी मे आपका असल मक़ाम वही है जिसका इज़हार लोग आपकी गैर मौजूदगी मे करते हैं Islam gudiya बाबा ब्राऊनबियर्ड Achman Chitranshi
read moreKamal bhansali
फिक्र.... " हाल बेहाल हुई जिंदगी अब समझा रही अपनों से ज्यादा गैरों को तेरी फिक्र रही " ✍️ कमल भंसाली ©Kamal bhansali # फिक्र # गैर # कमल भंसाली
# फिक्र # गैर # कमल भंसाली
read moreअदनासा-
अदनासा-
s गोल्डी
मैंने कब कहा...तू मुझे गुलाब दे.. या फिर अपनी... मोहब्बत से नवाज़ दे.... आज बहुत उदास है.... मन मेरा... गैर बनके ही सही... बस तू मुझे आवाज़ दे.... 🌙 ©s गोल्डी मैंने कब कहा...तू मुझे गुलाब दे.. या फिर अपनी... मोहब्बत से नवाज़ दे.... आज बहुत उदास है.... मन मेरा... गैर बनके ही सही... बस तू मुझे आवाज़ दे
मैंने कब कहा...तू मुझे गुलाब दे.. या फिर अपनी... मोहब्बत से नवाज़ दे.... आज बहुत उदास है.... मन मेरा... गैर बनके ही सही... बस तू मुझे आवाज़ दे
read moreRakesh frnds4ever
White कुछ गैरों से कहा तुमने कुछ गैरों से सुना तुमने काश ,, कुछ हमसे कहा होता कुछ हमसे सुना होता,,, कहना / सुनना जो भी था रहना सहना जो भी था हम दोनों के दरमयां था फिर और कोई गैर कोई क्यों शामिल हुआ हम दोनों के दरमयां,,,,, ©Rakesh frnds4ever #कुछ #गैरों से कहा तुमने कुछ गैरों से सुना तुमने #काश कुछ हमसे सुना होता,,, कहना / सुनना जो भी था रहना सहना जो भी था #हम_दोनों के दरमयां
अदनासा-
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी चीख रही है मानवता वेदनाओं से कराहती है गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी भुखमरी सताती है कुछ आकाओ के चंगुल में विश्व जकड़ा है तबाही तबाही जग में दिखाती है डॉलर की चमक फीकी ना पड़ जाये कई देशों की अर्थव्यवस्था चट कर जाती है डर भय और पेटेंट के बल पर जग को निगलती जाती है शांति का आवरण ओड़ कर विश्व में आतंक फैलाती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #International_Day_Of_Peace गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी
#International_Day_Of_Peace गैर बराबरी इतनी बढ़ गयी
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- बेटी पढ़ाकर भी नही , बचा न पाये प्राण । पुनः दिया है दुष्ट ने , फिर से आज प्रमाण ।। गिद्ध बना इंसान है , देता नित्य प्रमाण । हरता रहता नित्य है , बहू बहन के प्राण ।। मूक बधिर हम सब बने , देख रहे हैं कृत्य । गली-गली शैतान वह , हमें दिखाता नृत्य ।। सरल यही अब राह है , जला सभी लो मोम । याद भला कब तक रहे , तुम्हें नाथ का ओम ।। याद किसी को है नही , सत्य सनातन ओम । बुझे पड़े है कुंड सब , कही न होता होम ।। जला-जला के मोम को , देते रहो प्रमाण । हम निर्बल असहाय हैं , हर लो मेरे प्राण ।। पढ़ो पढ़ाओ बेटियाँ , बनकर सब इंसान । निर्मम हत्या के लिए , खड़े गली शैतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- बेटी पढ़ाकर भी नही , बचा न पाये प्राण । पुनः दिया है दुष्ट ने , फिर से आज प्रमाण ।। गिद्ध बना इंसान है , देता नित्य प्रमाण ।
दोहा :- बेटी पढ़ाकर भी नही , बचा न पाये प्राण । पुनः दिया है दुष्ट ने , फिर से आज प्रमाण ।। गिद्ध बना इंसान है , देता नित्य प्रमाण ।
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