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MiMi Flix
"राजा का अद्भुत खजाना – अनमोल धरोहर, गाँव की खुशियाँ, और अद्वितीय संपत्ति" - बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक राजा का शासन था, जो अपनी #वीडियो
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"ब्रीज़ी का बड़ा साहसिक अभियान – पांडा शावक पिपिन की खोज और जंगल की चुनौती" - हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र में बसा एक गाँव, जहाँ पांडा खुशहाल रहत #वीडियो
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"मीठी की सच्ची मित्रता, रहस्यमय घटना और दो नायकों की अनोखी यात्रा: Heartwarming and Inspiring Adventure" - गाँव में एक अजनबी शेरू की एंट्री #वीडियो
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गाँव का पुराना घर एक स्मृति का स्थल है, जहाँ बचपन की यादें बसती है। ©prem yadav गाँव सबसे प्यारा
गाँव सबसे प्यारा #भक्ति
read moreमहेन्द्र सिंह (माही)
White गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!! ©महेन्द्र सिंह (माही) #sad_shayari गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!!
#sad_shayari गाँव को कहा जरूरत हैं शहरो की तरह सजने की अगर खूबसूरती की बात करे तो यहां खेतो की हरियाली ही काफ़ी होती हैं....!! #विचार
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White तृप्ति की कलम से मुक्तक विषय-गाँव और शहर *************************************** गाँव को छोड़ शहर आया सुख की तलाश में। शहर में निजी घर बसाया सुख की तलाश में। रह गयी बस सुबह-शाम भागम-भाग जिंदगी- शान्ति,अपनापन गवाया सुख की तलाश में। ************************************* रह गयी अब बस सुखद यादें मेरे गांव की खो गयी ठंडी हवा उन पेड़ों की छांव की। शहर आकर क्या-क्या खोया हमने अब जाना- जब घिसी चप्पलों को देखा अपने पांव की। *************************************** स्वरचित तृप्ति अग्निहोत्री लखीमपुर खीरी(उ०प्र०) ©tripti agnihotri विषय -गाँव और शहर
विषय -गाँव और शहर #कविता
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...
*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता
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सहद रखो होंटों पर ज़हर रखो सीनों में ये नया करीना है प्यार के करीनो में अब हमें सपेरे भी देखते हैं हैरत से इतने नाग पाले है हमनें अपनी आस्तीनो में ©MoHiTRoCk F44 सहद रखो होंटों पर ज़हर रखो सीनों में ये नया करीना है प्यार के करीनो में अब हमें सपेरे भी देखते हैं हैरत से इतने नाग पाले है हमनें अपनी आस्ती
सहद रखो होंटों पर ज़हर रखो सीनों में ये नया करीना है प्यार के करीनो में अब हमें सपेरे भी देखते हैं हैरत से इतने नाग पाले है हमनें अपनी आस्ती #Shayari #MohitRockF44
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उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थोड़ा भी चोखा ।। खुला सुबह से आज है , ठेका सरकारी । जी भर पीकर देख लो , भूलो तरकारी ।। निशिदिन जैसे आज भी , सोयेंगे बच्चे । बनो नही अब आप भी , कलयुग में सच्चे ।। गाँव-गाँव यह रीति है , सब करते थैय्या । मेरे तो सरपंच जी , है बड़का भैय्या ।। दिये न ढेला नोन का , बनते है दानी । देते भाषण मंच पर , बन जाते ज्ञानी ।। करना आज विचार सब , पग धरना धीरे । बिछे राह में शूल है , हम सबके तीरे ।। जाग गये तो भोर है , जीवन में तेरे । वरना राई नोन के , लेते रह फेरे ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ
उपमान छन्द दिनभर करता काम है , वह तो मनरेगा । रहकर भूखे पेट भी , सुनता क्या लेगा ।। मजे करे सरपंच जी , करके अब धोखा । मिलता नही गरीब को , थ #कविता
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