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IG @kavi_neetesh
White आज का प्रभात शुभ हो आपको "मूर्ख को उपदेश सखे, व्यर्थ सदा हो जाय। जैसे सर्प को दूध का, देना काम न आय।" ------राधे-राधे सुप्रभात ------- ©IG @kavi_neetesh आज का प्रभात शुभ हो आपको "मूर्ख को उपदेश सखे, व्यर्थ सदा हो जाय। जैसे सर्प को दूध का, देना काम न आय।" ------राधे-र
Himachal MC
Parasram Arora
White क्योंकि मुझे ज़ब पता लगा कि दोस्तों की महफिल मे सबको मेरी कमी आखर रहीं थी और सब मेरी ही चर्चा कर रहे थे तो ये जान कर मुझे बेहद ख़ुशी हुई और इसीलिए खुदको मैं फरिश्ता समझने लगा था ©Parasram Arora फरिश्ता
फरिश्ता #कविता
read moreBhupendra Rawat
White मेरी ज़िंदगी का एक जज़्बा हो तुम मेरे तवलख़ का एक किस्सा हो तुम नाकस है अस्तित्व मेरा तेरे बिना खुदा से माँगा हुआ,एक फरिश्ता हो तुम तवलख़ (सूनापन) नाकस (मूल्यहीन) ©Bhupendra Rawat #Sad_Status hindi shayari shayari on life shayari status shayari on love zindagi sad shayariमेरी ज़िंदगी का एक जज़्बा हो तुम मेरे तवलख़ का
#Sad_Status hindi shayari shayari on life shayari status shayari on love zindagi sad shayariमेरी ज़िंदगी का एक जज़्बा हो तुम मेरे तवलख़ का
read morePoet Kuldeep Singh Ruhela
अब हौसला हारना नहीं मंजिल को पाना है मुझको आय कोई भी अड़चन राह में यूं ही बस मुस्कुराना है मुझको ये वादा तुम सबसे है मेरा अब जिंदगी से हार माननी नही ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #kd _Poetry अब हौसला हारना नहीं मंजिल को पाना है मुझको आय कोई भी अड़चन राह में यूं ही बस मुस्कुराना है मुझको ये वादा तुम सबसे है मेरा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...
*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता
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