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Ifham mujahid
एक शाम थी ढली, रोशन थी गली... फिर एक दिन वो मुझे मिलीं वो मनचली मुझे अपने संग ले चली मानो खिल उठी जैसे कोई कली-कली बातों-बातों में सारी रात टली अचानक ही मेरी आँख खुली तो मालूम हुआ बस मेरे ख्यालों की वो एक परी निकली....... kali kali shayri
kali kali shayri
read moreManorama Shaw
फूलो की कली थी घर की, फूलो की कली थी घर की, अब काटा बन कर सबको चुभ रही हैं।  अब वो किससे क्या कहे, सायद रब ही नराज है उससे, अब मत पुछ कि क्या बीत रही है उस दिल पे, ये खुदा तू तो सब जानता ही होगा ज्यादा उससे। जो सपने देखा करती थी, वो अपने को बिखरती देखीं हैं, फिर भी थी वैसी, पर अब खूद को टुटती- बिखेरती देखीं हैं। फूलों की कली थी घर की फूलों की कली थी घर की अब काटा बनकर सबको चुभ रही हैं । अब तोह उसे लगता है ;कुछ कर जाये, अपनो से बहुत दूर चली जाये, अपने ही जब न रहे अपने, तब ये जिन्दगी किसके नाम पे। उसने तोह खुद को जीतती देखी, अब खुद को ही टूटती, बिखरी, हारती देख रही हैं। अब उसे इस ज़िन्दगी से कुछ मोह नहीं, समझाने की उसे चाह नहीं, अपनो से उसे नाराजगी नहीं, फूलों सी अब वो लगती नहीं। किसी पे क्या हक हैं उसे नाराज होने का, अब तो खुद को ही मरते देखी हैं, ये खुदा अब क्या चाहे वो तुझसे अब तोह तू भी उससे नाराज हैं। फूलो की कली थी घर की, फूलो की कली थी घर की, अब काटा बनकर सबको चुभ रही हैं। phool ki kali
phool ki kali
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