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आनन्द कुमार
White दरवाजा बन्द ही कहां था? बस हमने खटखटाना छोड़ दिया। देख लोगों की बेरुखी, हमने भी अपना मुंह मोड़ लिया। लोग बुलाते थे हमे वें मन से, हमने उनकी महफिलों में जाना छोड़ दिया। रूबरू होते थे जो मतलब, हमने उनको बेमतलब बुलाना छोड़ दिया। दर्द थे कुछ अपने, हमने उनको बताना छोड़ दिया। ---------आनन्द ©आनन्द कुमार #आनन्द_गाजियाबादी #Anand_Ghaziabadi #दरवाजे #मैं #तुम हिंदी कविता
#आनन्द_गाजियाबादी #Anand_Ghaziabadi #दरवाजे #मैं #तुम हिंदी कविता
read moreRudradeep
White जहां कोई आपको समझने को तैयार नहीं हो तो सबको समझाने से अच्छा है गुमनाम रहना ©Rudradeep #हम #और #तुम
amar gupta
White मैं, वो और समाज... समाज - कितने मे बिका भाई , तेरी तो सरकारी नौकरी है ... मैं - बस उसकी एक मासूम भरी नजर , नजरिये और उसके कुछ विचारो मे.. समाज - पागल है क्या ! ऐसा भी क्या बोला उसने... " ना रंग देखा ,ना मेरा रूप , ना उमर का किया तकजा... इन्सान अच्छे हो बोल कर , अनमोल कर दिया उसने मुझको " ©amar gupta #मैं , वो और समाज...
Vijay Gupta
खुद ही से खुद को खुश रख लेती हूं, मुझे किसी अपने पराए की जरूरत नहीं ✍🏽M ©Vijay Gupta #खुशी#और#तुम
Jashvant
White हम घूम चुके बस्ती बन में इक आस की फाँस लिए मन में कोई साजन हो कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन रात अँधेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो जब सावन बादल छाए हों जब फागुन फूल खिलाए हों जब चंदा रूप लुटाता हो जब सूरज धूप नहाता हो या शाम ने बस्ती घेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो हाँ दिल का दामन फैला है क्यूँ गोरी का दिल मैला है हम कब तक पीत के धोके में तुम कब तक दूर झरोके में कब दीद से दिल को सेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो क्या झगड़ा सूद ख़सारे का ये काज नहीं बंजारे का सब सोना रूपा ले जाए सब दुनिया, दुनिया ले जाए तुम एक मुझे बहुतेरी हो इक बार कहो तुम मेरी हो ©Jashvant #एक बार कहो तुम
Jashvant
White मैं जिस्म ओ जाँ के तमाम रिश्तों से चाहता हूँ नहीं समझता कि ऐसा क्यूँ है न ख़ाल-ओ-ख़द का जमाल उस में न ज़िंदगी का कमाल कोई जो कोई उस में हुनर भी होगा तो मुझ को इस की ख़बर नहीं है न जाने फिर क्यूँ! मैं वक़्त के दाएरों से बाहर किसी तसव्वुर में उड़ रहा हूँ ख़याल में ख़्वाब ओ ख़ल्वत-ए-ज़ात ओ जल्वत-ए-बज़्म में शब ओ रोज़ मिरा लहू अपनी गर्दिशों में उसी की तस्बीह पढ़ रहा है जो मेरी चाहत से बे-ख़बर है कभी कभी वो नज़र चुरा कर क़रीब से मेरे यूँ भी गुज़रा कि जैसे वो बा-ख़बर है मेरी मोहब्बतों से दिल ओ नज़र की हिकायतें सुन रखी हैं उस ने मिरी ही सूरत वो वक़्त के दाएरों से बाहर किसी तसव्वुर में उड़ रहा है ख़याल में ख़्वाब ओ ख़ल्वत-ए-ज़ात ओ जल्वत-ए-बज़्म में शब ओ रोज़ वो जिस्म ओ जाँ के तमाम रिश्तों से चाहता है मगर नहीं जानता ये वो भी कि ऐसा क्यूँ है मैं सोचता हूँ वो सोचता है कभी मिले हम तो आईनों के तमाम बातिन अयाँ करेंगे हक़ीक़तों का सफ़र करेंगे ©Jashvant एक नज़्म और
एक नज़्म और #Life
read moreDr. Parwarish
White तुम वक्त लिखना... मैं तकदीर लिख दूंगा....!! मुहब्बत से बड़ा कोई जादू नहीं है जाना, तुम सांस लेना, हवा की तस्वीर लिख दूंगा।। ©Dr. Parwarish मैं और तुम
मैं और तुम #लव
read morepandey_prakash
अश्क़ बह गए , वक्त बीत गया, उम्र ढल गई , इश्क़ रह गया .. ©pandey_prakash वक्त इश्क़ और मैं...
वक्त इश्क़ और मैं... #लव
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