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Arora PR
अतीत के अलावा आखिर क्या रह गया है मेरी जिंदगी मे अब कैसे भी करके मुझे जिंदगी क़ो वर्तमान क़ी परिधि मे लाना ही पड़ेगा ©Arora PR वर्तमान क़ी परिधि
वर्तमान क़ी परिधि #कविता
read moreparitosh@run
अपनी सोच की परिधि से मेरी औक़ात नापते हैं... पागल हैं, ज़मीन पर खड़े-खड़े आसमान नापते है... _paritosh@run सोच की परिधि...
सोच की परिधि...
read moreAlok Vishwakarma "आर्ष"
श्वेत वस्त्र की परिसीमा में, गुलमोहर सी दमक रही है पढ़ते-पढ़ते हँसी अचानक, लव लोभित तन चमक रही है चञ्चल है थोड़ी, चंचलता को समेट मन बाँध रही है मुस्काती आँखों से, क्रंदन के सुर परिधि साध रही है #alokstates #परिधि #प्रेमगीत #prolove #yqdidi
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read moreLOL
घूम रहा हूँ उस परिधि केंद्र बिंदु जिसका तुम हो पुकार लो इक दफा गर तुम तो त्रिज्या हो जाऊं मैं तुमसे ही मिल जाऊं मैं.. ©KaushalAlmora #love #परिधि #yqquotes #lovequotes #youandme #life
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read moreSuman Kumavat
स्त्रियां कहाँ निकल पाती हैं चाँद सी गोल रोटी की परिधि से बाहर 😟😟 ©Suman Kumavat #moonbeauty #रोटी🍪#चाँद#परिधि#स्त्रियां#नोजोटो#NojotoPoems#Nojoto
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read moreChandan Sharma
haal-e-dil kuch is kadar bayan kar rahe hai... galtiya kar rahe fir bhi likhe jaa rahe hai... 😓😓 @शर्मा
@शर्मा
read moreMadanmohan Thakur (मैत्रेय)
परिधि जीवन के उन्मुक्त भाव का। सागर सी लहरे भी उठते जाते। पथिक पथ पर ही-है, होती है बातें। उन्मत सी फिर है संशय की रातें। अरी लुभावनी जीवन, तू संग तो आ। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।। माना कि हारे का हरि नाम नियम है। द्वंद्व का हृदय में तनिक भाव नहीं पालूं। तू थोड़ा आगे बढ ले, मैं तो गले लगा लूं। तू जीवन मेरा, तुमको मन मीत बना लूं। अरी मन भावन जीवन, तू थोड़ा मुसका। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।। है निशा काल अभी, होगी उषा काल की आहट। जीवन मैं टूटे छंदों का कर लूं थोड़ा सा मंथन। अंधियारी रात के आँचल में दूर-दूर है निर्जन। अभिलाषा के कोमल कपोल को करने दे तू सिंचन। अरी मन भावन जीवन, तू नहीं ऐसे बात बना। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा। अंतर मन का भाव यही, है खुद को जानना बाकी। आएगा नव प्रभात, सूर्य उदित होने को। फिर क्यों विकल बनूं, नयनों से रोने को। पथ पर यूं तो नहीं हूं, व्यर्थ के दुविधा ढोने को। अरी मन भावन जीवन, तू मन के चिन्ता नहीं बढा। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।। जीवन का उन्मुक्त भाव, कहूं तो वृत लिए है फैला। किंचित सुविधा की खातिर, जो है अधिक विषैला। मंजिल तक जाना ही तो है, है अभी रात की वेला। लालच के बांहूपाश से, क्यों करूं मैं मन को मैला? अरी मन भावन जीवन, तू नहीं व्यर्थ की छवि दिखा। मैं नव संगीत पिरोऊँ, तू प्रेम गीत तो गा।। ©Madanmohan Thakur (मैत्रेय) जीवन परिधि #writing sapno ki aawaz ✔️ Aarchi Advani Saini