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Stories related to हज़ार

theABHAYSINGH_BIPIN

#love_shayari उतार शराफत का मुखौटा कभी, सच्चाई से भी सामना कर। बारिश हो या आँधियाँ रास्ते में, बस मंज़िल की बात किया कर। मानता हूँ, लोग कर

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White उतार शराफत का मुखौटा कभी,
सच्चाई से भी सामना कर।
बारिश हो या आँधियाँ रास्ते में,
बस मंज़िल की बात किया कर।

मानता हूँ, लोग करते हैं बातें हज़ार,
बस अपने सफर का इरादा कर।
मुश्किलें बहुत हैं, पर हार न मान,
मायूसियों को हंसकर दूर किया कर।

थाम ले एक बार फिर से हाथ,
यूँ बार-बार ना हाथ छुड़ाया कर।
उकेर दे आसमान में अपनी तस्वीर,
अपने महबूब पर ऐतबार किया कर।

होने दे चर्चे अपने इश्क़ के यार,
ऐसी बातों से तू ना घबराया कर।
नकार दे दुनियादारी की बातों को,
इश्क़ की धुन यूँ ही गुनगुनाया कर।

©theABHAYSINGH_BIPIN #love_shayari 
उतार शराफत का मुखौटा कभी,
सच्चाई से भी सामना कर।
बारिश हो या आँधियाँ रास्ते में,
बस मंज़िल की बात किया कर।

मानता हूँ, लोग कर

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी

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Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं।

इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से,
मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं।

वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ,
अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं।

जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में,
वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं।

जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल,
वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी

Jayesh gulati

*गुलाटी जी* मेरी मोहब्बत की तुमसे, आस गुलाटी जी । करती हूँ मैं, तुमसे प्यार गुलाटी जी ।। दर-दर भटकूँ, फिरू बंजारन सी मैं । मेरे लिए करो बस

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White गुलाटी जी
(read full in caption)

©Jayesh gulati *गुलाटी जी*

मेरी मोहब्बत की तुमसे, आस गुलाटी जी ।
करती हूँ मैं, तुमसे प्यार गुलाटी जी ।।

दर-दर भटकूँ, फिरू बंजारन सी मैं ।
मेरे लिए करो बस

Bhanu Priya

जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया , मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं , फिर किनारे बैठ गई हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं , कभी अश्रु , कभी

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जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी मुस्कान 
मैं तुमको याद करती रही ,
मैं तुमको याद करती रही ।

©Bhanu Priya जब नाम उन पन्नों पर तुम्हारा आया ,
मुस्कुराऊं -चिल्लाऊं , झुमू या गाउं ,
फिर किनारे बैठ गई 
हज़ार बार पंक्ति को पढ़ती रहीं ,
कभी अश्रु ,
कभी
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