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Yakshita Jain
बढ़ रही है दहेज़ की प्रथा रूढ़िवादी सोच की है ये कथा जलाया जा रहा है लड़कियों को ऐसे लोगो को ज़रा पकड़िये तो कंगाल हो गए लड़की के माँ -बाप फिर भी खत्म नहीं हुई दहेज़ की आग रुपये ,गहने ,गाड़ियां देकर क्या पाये लड़की के माँ-बाप उन्होंने भेज दी लड़की की लाश जीवन से हो गए हताश बढ़ता जा रहा है दहेज़ का लोभ एक से नहीं मिला ,तो दूसरे से ले रहे भोग डालो ऐसे लोगो को जेल मे जो रहे दहेज़ के महल मे तभी कहलायेगा भारत सोने की चिड़ियाँ जिसमे बसती थी खुशिया ही खुशिया my 8 class poem on dowry
my 8 class poem on dowry #कविता
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एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वर्षा ऋतु आई जब उसपे पानी बरस गया। पानी पाकर अंकुरित हुआ, धीरे धीरे जड़ें बढ़ाई धीरे धीरे चढ़ी ऊंचाई. फिर नन्हा हरा पौधा बनके धरती पे उभर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। वायुमंडल से हवाएं सोखकर, मिट्टी से थोड़ी नमी चुराकर। धीरे धीरे बढ़ता रहा अपना पोषण करता रहा। कभी आई तेज हवाएं उसके उसको बहुत झकझोरा, उसके आसमान छूने की उम्मीदों को आंधी पानी ने भी रोका। मौसम का मार सहता गया, और मजबूत बनता गया। कभी अनचाहे में इंसानों ने भी क्षति किया कभी मवेशी उसके पत्ते खाते रहें। सब कुछ झेलकर वो एक दिन एक विशाल पेड़ बन गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। आज वह इंसानों को लकड़ियां और फल देता है, आज वह मवेशियों को छाया और चिड़ियों को घर देता है। आज वह इस वातावरण का हिस्सा बन गया है, आज वह सबके लिए अच्छा बन गया है। कठिनाइयों में डटे रहने से जीवन उसका संवर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। सुनो भाईयो! सहते रहना,डटे रहना और आगे बढ़ते रहना सफलता का मंत्र यही है और ऊंचे चढ़ते रहना। आज तुम छोटे हो तो नजर नहीं आते हो, कल जब बड़े हो जाओगे,हर कोई नजर उठा के देखेगा, जब काम आने लगेगा दूसरों के तब तुम्हारी पूछ बढ़ेगी ,हर कोई सर आंखों पे रखेगा। जब एक अवचेतन बीज अस्तित्व पा सकता है, तुम्हारे पास तो चेतना है,सोचो तुम क्या कर सकते हो, अगर तुम्हे इंतजार है कोई मसीहा आएगा, जो तुम्हारे अंदर बैठा है,क्यों उसे तुम बाहर ढूंढ़ते हो? एक एक सेकंड,एक एक मिनट कर के कितना साल गुजर गया। एक उड़कर बीज आया धरती पे ऐसे ही बिखर गया। poem on tree #6
poem on tree 6 #कविता
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घर के आंगन की तुलसी सी कुम्हार के मिट्टी की कलशी सी जो बनती है,पकती है कहीं और, और किसी और को सौंपी जाती हैं. धान के नाजुक छोटे छोटे पौधों सी जो जमती है,खिलती है कहीं और और कहीं और को रोपी जाती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. बचपन में चव्वनियों में खुश रहने वाली, सिंपल ड्रेस में भी परियों सी दिखने वाली रस्मों को निबाह कर दूर चली जाती है खुद तो रोती ही है,हमें भी रुलाती है. वो एक बेटी है जो हर रुप में,हर किरदार में पूरी तरह ढल जाती हैं. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. एक बेटी के जन्मने से एक पिता जन्मता है, बेटी के लिए पिता का स्नेह और मां की ममता है. कुदरत से मिलने वाली उपहार है बेटियां, संसार इनसे है,खुद में संसार है बेटियां. वो एक बेटी है जो अपने दुआओं में दो परिवारों की खुशी चाहती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. उड़ती तितलियों के रंग-बिरंगी पंखों सी, पवित्र ध्वनि जैसे किसी यज्ञ के शंखों की. बेटी होती है जैसी वैसा कोई नहीं, बेटियों के जैसे यहां बेटा कोई नहीं. वो एक बेटी है जो अपने साथ पूरा बागवान महकाती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. जिसके पसंद की चीजें मेज पे लगी है, जिसके सामानों से आलमारी भरी पड़ी है बाप की बूढ़ी आंखों का सहारा अब बेटी है, मां बाप के जीवन का उजियारा अब बेटी है, वो एक बेटी है जो बेटों से ज्यादा सुख दुख में साथ निभाती है. वो एक बेटी है जो एक जन्म में दो जन्म को जी जाती है, वो एक बेटी है जो "ठीक हूं" कह के एक एक आंसू को पी जाती हैं. www aapkisafalta.com poem on daughter #6
poem on daughter 6 #कविता
read moreNojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)
Father Poem in Hindi at CGC| Emotional Poem on Papa in Hindi- Heart Touching Hindi Poem #nojotovideo #Nojoto #nojotohindi
read moreKirti Pandey
वो शाम का यूं ढल जाना , नई दुल्हन के शर्माने सा लगता है, कभी इठलाती है, कभी लहरों संग बलखाती है, प्रकृति कितनी खूबसूरत अल्हड़ सी मुस्काती है, उस चत्रकार के जादू का कोई हिसाब कहां, सागर अंबर मिल रहे , ऐसे मधुर मिलन का जवाब कहां। प्रेम ऐसे ही अवसर पर एक दूजे की आंखों में बस जाता है।। नए नए नगमे बनते हैं, हर दिल कवि बन जाता है, कुछ यूं ही बैठे बैठे शाम भी ढल जाती है, नए सुबह की आस लिए, रात हमें सुलाती है, प्रकृति , एक पहेली है, प्रेमचक्षु से स्पर्श करो तो , यही पक्की सहेली है।। जीने की आस जगती है, खुद को खोके,नई खुशी दे जाती है प्रकृति की कीर्ति ज़र्रे ज़र्रे में अपनी छवि दिखाती है, हां ये सुंदर श्रृष्टि हमें हर पल अपना दीवाना बनाती है।। ©Kirti Pandey #kinaara #ShamBhiKoi #Sundar #prakriti #Nature #Original #poem #Hindi #Trending #New