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इमरान मिर्ज़ापुरी

समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

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शून्य(ब्राह्मण)

प्रेम प्राप्त नहीं किया जा सकता..
प्रेम कभी आश ,उम्मीद नहीं करता..
प्रेम पाबन्दियों को सामने नहीं रखता..
प्रेम शरीर से कोई स्वार्थ नहीं रखता..
प्रेम आत्मा को आत्मा से मिलाता है..
प्रेम तपस्या की भांति ही ईश्वर को मिलाता है! #Krishna#प्रेम #अर्थ#परिभाषा

Ek villain

# ईश्वर का विधान

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हम सभी परम पिता परमात्मा के पुत्र हैं वह हम सभी पुत्रों को समान रूप से चाहते हैं पर वह जिन्हें योग्य विश्वसनीय और इमानदार समझते हैं उन्हें अपनी क्रश शक्ति का कुछ अंश इसलिए सौंप देते हैं कि वह उसके ईश्वर उद्देश्यों की पूर्ति में हाथ बढ़ाएं धन बुद्धि स्वास्थ्य शिल्प चतुरा मनोबल नृत्य आदि शक्ति आदि ने अधिक मात्रा में दी गई है वह अधिकारी नगर अधिकारी को देकर राजा कोई पक्षपात नहीं करता बल्कि अधिकार योग्य व्यक्ति से अधिक काम लेने की नीति बढ़ता है परमात्मा भी कुछ थोड़े से लोगों को अधिक संपन्न बनाकर अपने अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करता उस ने सभी को समान रूप से विकसित होने के अवसर दिए हैं वह पक्षपात करें तो फिर समदर्शी और दयालु कैसे कहा जा सकता है भोजन वस्त्र आवास तथा जीवन यापन की उचित आवश्यकताएं पूरी करने वाली वस्तुएं प्रभु प्रदाता प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेतन के समान है आलसी आकर मणि उल्टे सीधे काम करने वाले लोगों का वेतन कट जाता है और उन्हें किनी आशाओं में आभा ग्रस्त रहने को विश्वास होना पड़ता है जो परिश्रम पुरुषार्थी सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं वह अपना उचित वेतन यथा समय पाते हैं रहते हैं इस वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां लोगों को जन्मजात मिली होती है यह शक्तियां केवल इस उद्देश्य के लिए होती है कि इनमें उत संपन्न कोई व्यक्ति अपने से कमजोर लोगों को ऊपर उठने में लगाया था प्रत्येक समृद्धि मनुष्य को प्रभु ने यह कर्तव्य सौंपा है कि वह अपने जो कमजोर हैं उनकी मदद करने में इन शक्तियों को क्या व्यर्थ किया जाए जैसे कि यदि कोई सुशिक्षित है तो उसका फर्ज है कि आज शिक्षित लोगों को शिक्षक का प्रचार करें कोई शक्तिशाली है तो उसका कर्तव्य यह है कि निर्मल ओं को सताने वालों को रोके धनवान के निकट धन इसलिए आम नेता के रूप में रखा गया है कि वह इसके उपयोग से विद्या बुद्धि व्यवसाय संगठन सद ज्ञान आदि का इस प्रकार नियोजन करें कि उसमें जरूरतमंद लोगों को अपनी चतुर्मुखी उन्नति कर सकें

©Ek villain # ईश्वर का विधान

Hasanand Chhatwani

विधी का विधान ##

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 #विधी का विधान ##

Mohan Sardarshahari

विधि का विधान #ज़िन्दगी

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दोनों गौ वंश
गायें खेत में हरा चरे
बछड़े सड़क पर दिख जायें
तो भी पीठ लाठी परै
विधि का विधान‌ ये देख
मेरे नयन नित अश्रु ढरै।।

©Mohan Sardarshahari विधि का विधान

Aawaz Zindagi Ki

विधि का विधान...| #Reels #शायरी

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Savita Nimesh

विधि का विधान #Flower #कविता

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ज़मीन को चीर कर, छोटा सा
जब एक पौधा बाहर आया
तब मेरे मन में ये ख्याल आया
जीवन लिखा है अगर किसी जीव का
 तो मौत कोई दे नहीं सकता
जिसका आना लिखा है,
 इस दुनिया में वो आके रहेगा
और जिसका जाना लिख दिया,
 ऊपर वाले ने, उसको जाना होगा
कोई रोक नही पाता इस विधि के विधान को
पैसे से न  खरीद पाया कोई जीवन अपना
ये ऊपर वाले की लाठी है जनाब 
कर्मा अच्छे रखना

©Savita Nimesh विधि का विधान

#Flower

अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

पाप एवं पूण्य की शास्त्रीय परिभाषा

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दृष्टांत सहित शास्त्रों के संकेत

1. पुण्य का अवसर खो देना ही पाप है 

भारतीय षड्दर्शनों के पूर्वमीमांसा दर्शन के अनुसार भी संध्या, नित्यअग्निहोत्र आदि नित्य कर्मों का पूण्य नहीं लगता  परंतु संध्याकाल में संध्या आदि नहीं करने (ईश्वर का चिंतन छोड़कर प्रपंच का चिंतन करने)से पाप जरूर लगता है।
यहूदी धर्म में तालमुद ग्रंथ अनुसार भी  ईश्वर नहीं पूछेगा की  पाप क्या क्या किया है अपितु पता करेगा कि पूण्य क्या क्या नहीं किया अर्थात पूण्य के कितने अवसर गवां दिए उनका ही दंड देगा।

2.स्वस्थता का लक्षण ("मैं शरीर हुँ "इस भ्रम की निवृत्ति )

आयुर्वेद के अनुसार भी तनाव रहित शरीर इतना हल्का होता है कि शरीर का पता ही नही चलता ,को ही स्वास्थ्य माना गया है क्योंकि पैर में काटा चुभने पर पैर का एवं शिरदर्द होने पर शिर का पता चलता है। एवं दार्शनिकों के अनुसार तो व्यक्ति को मोक्ष जो व्यक्ति की वास्तविक अवस्था मानी गई है उसमें शरीर के साथ तादात्म्य  किसी के भी द्वारा माना ही नही  गया है। और तो और चार्वाक् दर्शन में भी शरीर छूटने को ही मोक्ष मानने से उपरोक्त लक्षण उनके सिद्धान्त में भी घटता है । पाप एवं पूण्य की शास्त्रीय परिभाषा

अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

समीप एवं सुदूर की शात्रोक्त परिभाषा #nojotophoto

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 समीप एवं सुदूर की शात्रोक्त परिभाषा

sarika thakur

प्रेम का विधान नहीं होता

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प्रेम का कोई विधि विधान नहीं होता। ये ऐसा जहान जिसका कोई आसमां नहीं होता। ऐसा अहसास न लफ़्ज़ों न शब्दों से  
 बयां होता ।कभी मुस्कुराहट कभी खुशी धड़कनों का कोई ठिकाना नहीं होता प्रेम का विधान नहीं होता
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