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शून्य(ब्राह्मण)
प्रेम प्राप्त नहीं किया जा सकता.. प्रेम कभी आश ,उम्मीद नहीं करता.. प्रेम पाबन्दियों को सामने नहीं रखता.. प्रेम शरीर से कोई स्वार्थ नहीं रखता.. प्रेम आत्मा को आत्मा से मिलाता है.. प्रेम तपस्या की भांति ही ईश्वर को मिलाता है! #Krishna#प्रेम #अर्थ#परिभाषा
Ek villain
हम सभी परम पिता परमात्मा के पुत्र हैं वह हम सभी पुत्रों को समान रूप से चाहते हैं पर वह जिन्हें योग्य विश्वसनीय और इमानदार समझते हैं उन्हें अपनी क्रश शक्ति का कुछ अंश इसलिए सौंप देते हैं कि वह उसके ईश्वर उद्देश्यों की पूर्ति में हाथ बढ़ाएं धन बुद्धि स्वास्थ्य शिल्प चतुरा मनोबल नृत्य आदि शक्ति आदि ने अधिक मात्रा में दी गई है वह अधिकारी नगर अधिकारी को देकर राजा कोई पक्षपात नहीं करता बल्कि अधिकार योग्य व्यक्ति से अधिक काम लेने की नीति बढ़ता है परमात्मा भी कुछ थोड़े से लोगों को अधिक संपन्न बनाकर अपने अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करता उस ने सभी को समान रूप से विकसित होने के अवसर दिए हैं वह पक्षपात करें तो फिर समदर्शी और दयालु कैसे कहा जा सकता है भोजन वस्त्र आवास तथा जीवन यापन की उचित आवश्यकताएं पूरी करने वाली वस्तुएं प्रभु प्रदाता प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेतन के समान है आलसी आकर मणि उल्टे सीधे काम करने वाले लोगों का वेतन कट जाता है और उन्हें किनी आशाओं में आभा ग्रस्त रहने को विश्वास होना पड़ता है जो परिश्रम पुरुषार्थी सीधे मार्ग पर चलने वाले हैं वह अपना उचित वेतन यथा समय पाते हैं रहते हैं इस वेतन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की शक्तियां लोगों को जन्मजात मिली होती है यह शक्तियां केवल इस उद्देश्य के लिए होती है कि इनमें उत संपन्न कोई व्यक्ति अपने से कमजोर लोगों को ऊपर उठने में लगाया था प्रत्येक समृद्धि मनुष्य को प्रभु ने यह कर्तव्य सौंपा है कि वह अपने जो कमजोर हैं उनकी मदद करने में इन शक्तियों को क्या व्यर्थ किया जाए जैसे कि यदि कोई सुशिक्षित है तो उसका फर्ज है कि आज शिक्षित लोगों को शिक्षक का प्रचार करें कोई शक्तिशाली है तो उसका कर्तव्य यह है कि निर्मल ओं को सताने वालों को रोके धनवान के निकट धन इसलिए आम नेता के रूप में रखा गया है कि वह इसके उपयोग से विद्या बुद्धि व्यवसाय संगठन सद ज्ञान आदि का इस प्रकार नियोजन करें कि उसमें जरूरतमंद लोगों को अपनी चतुर्मुखी उन्नति कर सकें ©Ek villain # ईश्वर का विधान
# ईश्वर का विधान
read moreMohan Sardarshahari
दोनों गौ वंश गायें खेत में हरा चरे बछड़े सड़क पर दिख जायें तो भी पीठ लाठी परै विधि का विधान ये देख मेरे नयन नित अश्रु ढरै।। ©Mohan Sardarshahari विधि का विधान
विधि का विधान #ज़िन्दगी
read moreSavita Nimesh
ज़मीन को चीर कर, छोटा सा जब एक पौधा बाहर आया तब मेरे मन में ये ख्याल आया जीवन लिखा है अगर किसी जीव का तो मौत कोई दे नहीं सकता जिसका आना लिखा है, इस दुनिया में वो आके रहेगा और जिसका जाना लिख दिया, ऊपर वाले ने, उसको जाना होगा कोई रोक नही पाता इस विधि के विधान को पैसे से न खरीद पाया कोई जीवन अपना ये ऊपर वाले की लाठी है जनाब कर्मा अच्छे रखना ©Savita Nimesh विधि का विधान #Flower
अद्वैतवेदान्तसमीक्षा
दृष्टांत सहित शास्त्रों के संकेत 1. पुण्य का अवसर खो देना ही पाप है भारतीय षड्दर्शनों के पूर्वमीमांसा दर्शन के अनुसार भी संध्या, नित्यअग्निहोत्र आदि नित्य कर्मों का पूण्य नहीं लगता परंतु संध्याकाल में संध्या आदि नहीं करने (ईश्वर का चिंतन छोड़कर प्रपंच का चिंतन करने)से पाप जरूर लगता है। यहूदी धर्म में तालमुद ग्रंथ अनुसार भी ईश्वर नहीं पूछेगा की पाप क्या क्या किया है अपितु पता करेगा कि पूण्य क्या क्या नहीं किया अर्थात पूण्य के कितने अवसर गवां दिए उनका ही दंड देगा। 2.स्वस्थता का लक्षण ("मैं शरीर हुँ "इस भ्रम की निवृत्ति ) आयुर्वेद के अनुसार भी तनाव रहित शरीर इतना हल्का होता है कि शरीर का पता ही नही चलता ,को ही स्वास्थ्य माना गया है क्योंकि पैर में काटा चुभने पर पैर का एवं शिरदर्द होने पर शिर का पता चलता है। एवं दार्शनिकों के अनुसार तो व्यक्ति को मोक्ष जो व्यक्ति की वास्तविक अवस्था मानी गई है उसमें शरीर के साथ तादात्म्य किसी के भी द्वारा माना ही नही गया है। और तो और चार्वाक् दर्शन में भी शरीर छूटने को ही मोक्ष मानने से उपरोक्त लक्षण उनके सिद्धान्त में भी घटता है । पाप एवं पूण्य की शास्त्रीय परिभाषा
पाप एवं पूण्य की शास्त्रीय परिभाषा
read moreअद्वैतवेदान्तसमीक्षा
समीप एवं सुदूर की शात्रोक्त परिभाषा
समीप एवं सुदूर की शात्रोक्त परिभाषा #nojotophoto
read moresarika thakur
प्रेम का कोई विधि विधान नहीं होता। ये ऐसा जहान जिसका कोई आसमां नहीं होता। ऐसा अहसास न लफ़्ज़ों न शब्दों से बयां होता ।कभी मुस्कुराहट कभी खुशी धड़कनों का कोई ठिकाना नहीं होता प्रेम का विधान नहीं होता
प्रेम का विधान नहीं होता
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