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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
White तु मिरि कुर्बत मे होकर मिरी *कुर्बत मे नहीं है,अब ऐसे साथ मे तिरि वो पहली सी उल्फत भी नहीं है//१ मै गम ए शनास तेरे अदब मे*अज़ीयत सहती रही अब मुझमे तेरी*ताजीम की कोई *नीयत भी नहीं है//२ मुझे दर _बदर करने के तुने कई मन्सुबे घड़ तो लिए, के अब इसमे बची तिरि कुछ हकीकत भी नहीं है//३ तर्के ताल्लुक से मिरी बर्बादी तो तिरे सरपे होगी,तूने हैरान किया इतना,अब मिल्लत की जरूरत भी नहीं है//४ गर चुप रही तेरे तशद्दूद पे तो मुझे मिरि अना मार देगी, अब अदल करने मे रत्तीभर तिरि हिम्मत भी नहीं है//५ मेरे एह्बाब् ने विरसे का करके किस्सा तमाम,अब् मुझे कहते है विरासत मे तिरी कोई शिर्कत भी नहीं है//६ आदत बदल लेगा तु बदसलुकी की,इस आस मे उम्र तमाम की, तुझमे दिखती *हुस्नेसलूक की वो पहली सी झलक भी नहीं है//७ "शमा"साथ रह्ते हुए,जब हो जाए खत्म,एहसासे कुर्बत, तो अब मान ही लो के ऐसी कुर्बत मे उल्फत भी नहीं है//८ #shamawritesbebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #love_shayari तु मिरि कुर्बत मे होकर मिरी *कुर्बत मे नहीं है,अब ऐसे साथ मे तिरि वो पहली सी उल्फत भी नहीं है//१*पास मै गम ए शनास तेरे अदब म
#love_shayari तु मिरि कुर्बत मे होकर मिरी *कुर्बत मे नहीं है,अब ऐसे साथ मे तिरि वो पहली सी उल्फत भी नहीं है//१*पास मै गम ए शनास तेरे अदब म
read moreManya Parmar
नाम भले ही गांव का लिया हो लेकिन हर शहर हर गांव के हर अनुभवी माता पिता, उनके कमाने और जमाना जानने वाली मॉडर्न जमाने के भाईयो ने खाया बच्चियो
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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