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Rahul Raj Patel
White सामने वाला यदि आवेग में पशु हो गया हों तो विवेक के रहते इनकी प्रतीक्षा करे उन्हें पुनः मनुष्य हो की।। ©Rahul Raj Patel #Sad_Status सामने वाला यदि आवेग में पशु हो गया हों तो विवेक के रहते इनकी प्रतीक्षा करे ....
#Sad_Status सामने वाला यदि आवेग में पशु हो गया हों तो विवेक के रहते इनकी प्रतीक्षा करे .... #Life
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सफेद बोरी में भैंस का माँस 3 जिन्दा भैंस (पड़वा) तथा एक पिकप पुलिस ने किया बरामद पुलिस अधीक्षक बहराइच वृन्दा शुक्ला द्वारा अ #वीडियो
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White विधा :- वसनविशाला छन्द १११ १११ १२२ २२२ पशु सम बन नही आत्याचारी । नर जस रह सदा आज्ञाकारी ।। चल शरण गुरु तू हो जा ज्ञानी । फिर बन जगत में तू सम्मानी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा :- वसनविशाला छन्द १११ १११ १२२ २२२ पशु सम बन नही आत्याचारी । नर जस रह सदा आज्ञाकारी ।। चल शरण गुरु तू हो जा ज्ञानी । फिर बन ज
विधा :- वसनविशाला छन्द १११ १११ १२२ २२२ पशु सम बन नही आत्याचारी । नर जस रह सदा आज्ञाकारी ।। चल शरण गुरु तू हो जा ज्ञानी । फिर बन ज #कविता
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गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर, खून बेचकर उसे चुकाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ.... सरकारें करती मनमानी , पीने का भी छीने पानी । कैसे जीते हैं हम निर्धन , कैसे तुमको व्यथा सुनाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... मैं ही एक नहीं हूँ निर्धन , आटा दाल न होता ईर्धन । जन-जन का मैं हाल सुनाऊँ , आओ चल कर तुम्हें दिखाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... शिक्षा भी व्यापार हुई है , महँगी सब्जी दाल हुई है आमद हो गई है आज चव्न्नी, कैसे घर का खर्च चलाऊँ । आजादी का दिवस मनाऊँ... सभी स्वस्थ सेवाएं महँगी , जीवन की घटनाएं महँगी । आती मौत न जीवन को, फंदा अपने गले लगाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ... ज्यादा हुआ दूध उत्पादन, बिन पशु के आ जाता आँगन । किसको दर्पण आज दिखाऊँ दिल कहता शामिल हो जाऊँ ।। आजादी का दिवस मनाऊँ..... आजादी का दिवस मनाऊँ ,भूखा अपना लाल सुलाऊँ । महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ , भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर,
गीत :- आजादी का दिवस मनाऊँ , भूखा अपना लाल सुलाऊँ । कर्ज बैंक का सर के ऊपर, #कविता
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मैं कवि हूं मैं कवि हूं हां में कवि हूं जो इच्छाओं को अपनी दबाकर उसको कागज पर उतारकर अपनी पीड़ा कम करता हूं मैं कवि हूं जिंदगी बुल बुलों जैसी हो गई कभी उठती कभी गिरती गई एक अजीब कहानी हो गई कुछ समझ न आए ऐसी पहेली हो गई उन एहसासों को कागज पर उतारता हूं मैं कवि हूं जब बुरे बुरे भाव करते हैं मन पर घाव एक टीस उठ जाती है जो असफलता हुई दिखा जाती है उस असफलता को कागज पर उतारता हूं मैं कवि हूं दर्द जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है कष्ट का पारा बढ़ जाता है कब पंछी उड़ जाए पिंजरे से और पिंजरा खाली रह जाए पंछी से उस खालीपन को कागज पर उतारता हूं मैं कवि हूं ...................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #मैं_कवि_हूँ #nojotohindi #nojotohindipoetry मैं कवि हूंँ मैं कवि हूंँ हांँ में कवि हूंँ जो इच्छाओं को अपनी दबाकर उसको कागज पर उतारकर
#मैं_कवि_हूँ #nojotohindi #nojotohindipoetry मैं कवि हूंँ मैं कवि हूंँ हांँ में कवि हूंँ जो इच्छाओं को अपनी दबाकर उसको कागज पर उतारकर #Poetry #sandiprohila
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*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी .... पूर्ण हुई वह खुशियाँ सारी , जो थी मन में चाह । खूब कमाकर पैसा सोचा , करूँ सुता का ब्याह ।। आज उन्हीं बच्चों ने बोला , क्यों करते हो काँव । जिनकी खातिर ठुकरा आया, मातु-पिता की ठाँव । आओ लौट चलें अब साथी ..... स्वार्थ रहित जीवन जीने से , मरना उच्च उपाय । सुख की चाह लिए भागा मैं, और बढ़ाऊँ आय ।। यह जीवन मिथ्या कर डाला , पाया संग तनाव । देख मनुज से पशु बन बैठा , डालो गले गराँव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... भूल गया मिट्टी के घर को , किया नहीं परवाह । मिला प्रेम था मातु-पिता से , लगा न पाया थाह ।। अच्छा रहना अच्छा खाना , मन में था ठहराव । सारा जीवन लगा दिया मैं , इन बच्चों पर दाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ..... झुकी कमर कहती है हमसे , मिटी हाथ की रेख । गर्दन भी ये अब न न करती ,लोग रहे सब देख ।। वो सब हँसते हम पछताते, इतने हैं बदलाव । मूर्ख बना हूँ छोड़ गाँव को , बदली जीवन नाँव ।। आओ लौट चलें साथी अब ... कभी लोभ में पड़कर भैय्या , छोड़ न जाना गाँव । एक प्रकृति ही देती हमको , शीतल-शीतल छाँव ।। और न कोई सगा धरा पर , झूठा सभी लगाव । अब यह जीवन है सुन दरिया , जाऊँ जिधर बहाव ।। आओ लौट चलें अब साथी.... आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ...
*विधा सरसी छन्द आधारित गीत* आओ लौट चलें अब साथी , सुंदर अपने गाँव । वहीं मिलेगी बरगद की सुन , शीतल हमको छाँव ।। आओ लौट चलें अब साथी ... #कविता
read moreRavendra
मवेशी टीकाकरण अभियान का डीएम ने हरी झंडी दिखाकर किया शुभारम्भ बहराइच ।राष्ट्रीय रोग नियंत्रण कार्यक्रम अन्तर्गत खुरपका-मुहँपका रोग प्रतिरोध #वीडियो
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