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Ek villain
देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य में चुनाव की रणभेरी बज चुकी है अब यह महज कुछ ही दिन में राज्य के अंदर मतदान परम हो जाएंगे लिहाज देश को राजनीतिक दिशा देने वाले राज्य में नेताओं का सियार पार किया हुआ बढ़ा हुआ है ऐसे में नेता के मन में जनता के विकास का मुद्दा कम नजर आ रहा है एक दूसरे के ऐतिहासिक कारनामे ज्यादा सामने निकल कर आ रहे हैं चाहे वह धर्म को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में सियासी दांव आसान हो या जिन्ना और गन्ना का मुद्दा हो चाहे वह हिंदू तत्व राम का मुद्दा हो चाहे चुनाव के सियासी सरगामी प्रदेश और देश में कई नहीं है इस परंपरा का निर्वाह लंबे समय से चला आ रहा है इस चक्कर में असल मुद्दे गायब हो जाते हैं ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या यह नेता प्रदेश के अंदर धर्म की बात कर कर एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर इतिहास के पन्नों को निरंतर विकास के असली मुद्दे से जनता को गुमराह करना चाहते हैं क्या इन बातों से जनता का इतिहास शिक्षा देना चाहिए यह सिर्फ सिर्फ जंत के कमर आकर जैसे ही अपने राज्य के तमाम लोगों के पूछे जाने पर सवाल एक नेताओं तक ना आए दूसरी ओर जब यूपी जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य में जहां पर नेताओं के बोले से दंगे तक हुए हैं तो इन लोगों के बयान बाजी पर रोक क्यों नहीं लगती ©Ek villain #बे पटरी हुआ विकास का मुद्दा #roseday
Anu Verma
मंज़िल कुछ भी नहीं है साहब ये वहम है अपना सोचो आप कुछ भी लेकिन हकीकत यही है मिट्टी में है मिलना.. ©Anu Verma vairagi #बे
Yadgar Rahi
हर बे सहारे का वो सहारा नजर आता है, ऐ नादिर मुझे अब गुंबद ए खजरा नजर आता है। -यादगार राही ©Yadgar Rahi #cycle बे सहारे का वो सहारा। -यादगार राही
Lata Sharma सखी
*बे* यूँ ही बैठी थी, मेरी दोस्त आई और बोली, *अबे!* का कर रही *बे*.. सच अजब लगा.. उसका ये *बे* कर करे बोलना.. और दिमाग सोचने लगा.. कितना बकवास होता है न ये *बे* शब्द भी.. जहां भी लगता है वहीं या तो दर्द देता है या बेड़ा गर्क कर देता है.. परवाह में लगे तो *बेपरवाह* बना देता है, ख्याल में लगे तो किसी को *बेख्याल* कर देता है दखल में लगे तो *बेदखल* कर देता है फिक्र में जो लगे तो *बेफ़िक्र* कर दर्द से दिल भर देता है.. मुरव्वत में लगे तो *बेमुरव्वत* बनाये, वफ़ा में लगे तो *बेवफा* बना दे.. शर्म में लगे तो *बेशर्म* बना लाज ही छीन ले.. गैरत में लगे तो *बेगैरत* बना दे.. और नाम में लगे तो *बेनाम* बना दे, पहचान ही छीन ले.. और तो और अपनी जान में ही लगे तो, सांस छीन *बेजान* बना देता है.. सच ही है ये *बे* शब्द बेड़ा गर्क कर देता है, मन को दर्द से भर देता है... ©Lata Sharma सखी #बे