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Stories related to करू देत शृंगार

Jayesh gulati

*सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा

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सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati *सोलह शृंगार*

मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को ।
वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।।

पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका ।
जैसे बा

Rakesh frnds4ever

द;- कोई #काम नहीं है/ कोई काम क्यों नहीं देखते/ करते/ ऐसे कैसे #गुजारा होगा// चलेगा !!??!!! मैं:- #तलाश रहा हूं ,, कहीं कोई मिल जाय तो,,

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बादल सिंह 'कलमगार'

तेरी पूजा करू तेरा नाम पुकारू... #badalsinghkalamgar #maa Poetry #Hindi #Bhakti हिंदी कविता vimlesh Gautamhttps://youtube.com/@jin

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kavitri vibha prabhuraj singh

#मन के भाव #करू मैं प्रेम मीरा सा #विभा सिंह बघेल परिवार #अपनी कविता

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Sarfaraj idrishi

#alone सुरत तेरी ना देख कर कब तक सब्र करू. आंखे तो बंद कर लू पर इस दिल का क्या करू Extraterrestrial life happy life quotes Kartik Aaryan lif

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सुरत तेरी ना देख कर कब तक सब्र करू
 आंखे तो बंद कर लू पर 
इस दिल का क्या करू

©Sarfaraj idrishi #alone सुरत तेरी ना देख कर कब तक सब्र करू. आंखे तो बंद कर लू पर इस दिल का क्या करू Extraterrestrial life happy life quotes Kartik Aaryan lif

Heer

#Fire #लो को शांत करू

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आत्मा की लो को मैं तुम्हारे नाम से शीतल करूं,
उत्कंठ श्वास को मैं तुम्हारे दरस से शांत करूं।

©Heer #Fire #लो को शांत करू

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष

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गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार ।
निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।।
बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार ।
चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।।
मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार ।
तुम जननी हो इस जग की .....

छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार ।
बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।।
बन चंडी अब पहन गले में ,  इनको मुंडों का तू हार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार ।
ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।।
जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार ।
खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।।
मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार ।
तुम जननी हो इस जग की ....

तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-
तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार ।
क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।।
तुम जननी हो इस जग की ....

पुरुष
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