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Divyanshu Pathak
नव निर्माण और उन्नति का माध्यम ( कोराकाग़ज़ ) ---- स्वामी दयानंद सरस्वती विरजानन्द जी के आश्रम में पहुंचे और उनसे अपना शिष्य बनाने की विनती की तब विरजानन्द जी ने उनसे पूछा कि बेटा तुम क्या जानते हो आज तक कुछ पढा है क्या? तब स्वामी जी ने कहा कि मैंने बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा है। यह सुनकर विरजानन्द जी बोले, ठीक है किताबें पढ़ीं हैं तो पर मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता इसलिए तुम जा सकते हो। जब स्वामी दयानंद जी ने ये बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे वे विनीत भाव में बोले गुरुजी मैं क्या करूँ जो आप का शिष्य हो सकूँ।तब विरजानन्द जी ने कहा कि अब तक जो कुछ भी तुमने अपने मन के काग़ज़ पे अंकित किया है उसे मिटा दे और इन किताबों की गठरी को यमुना जी में बहा दे तब मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँगा, तेरे मन में कुछ लिख पाऊँगा। कुछ स्पष्ट सुंदर और स्थाई लिखने के लिए "कोराकाग़ज़" होना बहुत जरूरी है। ( कैप्शन देखें ) कोराकाग़ज़ मानव जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा उपागम है,जो कालक्रम की हर एक गतिविधि का साक्षी बनता है। श्रष्टि के आरंभ में श्रुतियों का लिपिबद्ध होकर
कोराकाग़ज़ मानव जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा उपागम है,जो कालक्रम की हर एक गतिविधि का साक्षी बनता है। श्रष्टि के आरंभ में श्रुतियों का लिपिबद्ध होकर #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #KKजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #KKHBD2022 #KKजन्मदिन_5 #पाठकपुराण
read moreAprasil mishra
"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो