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Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी दिन के भी उजाले, कम है तरक्की के लिये नींद और चैन अपने गवाते गवाते रातो को भी बाजार रोशन होने लगे है जरूरतों जो कभी कम ना हुयी जीवन रोज खपाते खपाते दौड़ और होड़ की लगी है बाजी मौत के आगोश में जाते जाते प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #good_night दौड़ और होड़ की लगी है बाजी
#good_night दौड़ और होड़ की लगी है बाजी
read moreVinod Mishra
Bhupendra Rawat
White जब से, तू मुझ से दूर होने लगी है राह-ए-सफ़र भी अंज़ान होने लगी है दुनिया की भीड़ मे तन्हा छोड़ मुझे मानो मंजिले भी अब खोने लगी है ©Bhupendra Rawat #Sad_Status जब से, तू मुझ से दूर होने लगी है राह-ए-सफ़र भी अंज़ान होने लगी है दुनिया की भीड़ मे तन्हा छोड़ मुझे मानो मंजिले भी अब खोने लगी
#Sad_Status जब से, तू मुझ से दूर होने लगी है राह-ए-सफ़र भी अंज़ान होने लगी है दुनिया की भीड़ मे तन्हा छोड़ मुझे मानो मंजिले भी अब खोने लगी
read moreडॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)
#लगी है आग सीने में...
read moreHeer
हर शक्श से परेशान होने लगी हूं, ये मैं कैसी इंसान होने लगी हूं। अब सबसे दूर रहने के बहाने ढूंढने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। पहले वक्त गुजरता था दोस्तो की महफिलों में, अब वक्त तनहा गुजारने लगी हूं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। कभी ठहाके लगाते नही थकती थी मैं, अब अकेले में भी मुस्कुराती नही मैं, ये मैं कैसी होने लगी हूं। ©Heer ये मैं कैसी होने लगी हूं..!!😔
ये मैं कैसी होने लगी हूं..!!😔
read moreअखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन' #रक्षाबंधन #सावन #शिवजी