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✍..Parth Mishra
इश्क़ हो या दोस्ती बीच का फ़ासला रख़ा है नंबर उसने भी नहीं बदला मैंने भी वही नंबर रख़ा है ! اسحاق یا دوست ہے نہیں. اس نے اس نمبر کو بھی تبدیل نہیں کیا جس نے میں نے ایک ہی نمبر رکھی ہے.ی کے درمیان فرق इश्क़ हो या दोस्ती बीच का फ़ासला रख़ा है नंबर उसने भी नहीं बदला मैंने भी वही नंबर रख़ा है ! اسحاق یا دوستی کے درمیان فرق ہے نہیں. اس نے اس ن
इश्क़ हो या दोस्ती बीच का फ़ासला रख़ा है नंबर उसने भी नहीं बदला मैंने भी वही नंबर रख़ा है ! اسحاق یا دوستی کے درمیان فرق ہے نہیں. اس نے اس ن
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
मैं हार लिखता हूँ।। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ। कोई रोटी से हारा है, कोई गोटी से हारा है। भूखों मर रहा कोई, द्रौपदी हर रहा कोई। कहाँ कब धर्म बैठा था, दूषित ये कर्म बैठा था। कहाँ किसका रहा वंदन, तिलक माथे लगा चन्दन। लिखूं किसकी मैं बातों को, झुलसते दिन और रातों को। कहाँ कब आह निकली थी, मानवता जब ये फिसली थी। कोई था विद्व कोई ज्ञानी, भरा आंखों में बस पानी। हर उस आंख का मैं तो सरोकार लिखता हूँ। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। पूजा मैं करूँ किसकी, करूँ किसपे पुष्प अर्पण। मुंडाए सिर अपना मैं, करूँ बस सत्य का तर्पण। कभी जो ईश था मेरा, वही मुझसे रूठा है, क्यूँ उसने भी नहीं देखी, भरोसा मेरा टूटा है। भूखों वो जो मरता था, था भगवन तब कहाँ सोया। क्यूँ आगे वो नहीं आया, क्यूँ अपना हाथ था धोया। भगवन-दशा को आज मैं स्वीकार लिखता हूँ। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। रोटी या मुहब्बत हो, एक भूख हैं दोनों। दोनों की कमी खलती, सच दो टूक हैं दोनों। रोटी बिन कहाँ जीवन, चला किसका कहो कब है। भरा हो पेट रोटी से, उसका ही तो ये रब है। मुहब्बत एक झांसा है, कहानी भूख की सच्ची। जो आंखें आर्द्र ना होतीं, ज़ुबाँ ये मूक ही अच्छी। प्रेम और भूख की मैं तो टकरार लिखता हूँ। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। चलो कुछ तर्क भी कर लें, कुछ बातें कहता हूँ। मुहब्बत तो सही फिर भी, भूख लिखने से डरता हूँ। जननी है सफलता की, जिसे हम हार कहते हैं। सफल हो कर किया तुमने, उसे ही प्यार कहते हैं। जरा तुम हार कर देखो, मज़ा फिर जीत का कितना। जीत के बाद जो हो प्रीत, मज़ा फिर प्रीत का कितना। होकर आज नत मैं ये तर्क-सार लिखता हूँ। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मैं हार लिखता हूँ।। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ। कोई रोटी से हारा है, कोई गोटी से हारा
मैं हार लिखता हूँ।। तुम प्यार लिखते हो और मैं हार लिखता हूँ। मज़ा किसमे रहा कितना बारंबार लिखता हूँ। कोई रोटी से हारा है, कोई गोटी से हारा #Poetry #kavita #tourdelhi
read moreAnuj Ray
"ज़रा भी सोचा नहीं उसने" ज़रा भी सोचा नहीं उसने, दिल में लाया था क्या अरमान 'मैं'। कुचल के फेंक दिया, दिल मेरा पैरों से कूड़ेदान में। शीशा ए दिल टूटा है इतनी जोर से, पड़ी है खनक मेरे कान में। अब क्या सुनाऊं हाल दिल, मेरे साथ जो किया है इस नादान ने। ©Anuj Ray # ज़रा भी सोचा नहीं उसने
# ज़रा भी सोचा नहीं उसने
read moreKabir Befikra
उसने रौका ही नहीं हमें यारौ मैं रूककर भी क्या करता ।-2 मेरी मईयत पे नहीं रौना पड़ता उससे। अगर वौ मुझे रौक के रौ पड़ता। @KabirBefhikra #उसने रौका ही नहीं
#उसने रौका ही नहीं
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