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Mansha Sharma
White 🍁मन के भाव 🍁 No_3422 तन्हाई तन्हाई से हाथ मिला लो चुपचाप अपने ह्रदय के ज़ख्मो को छुपा लो जिसने ज़ख्म दिये उसे ही भूला लो तन्हाई मे सबसे छुपा कर अपने ही आसूं पी लो मन की मनशा को मार तन्हाई मे जी भर कर रो लो # स्वरचित_सुरमन_✍️ 19/10/24 ©Mansha Sharma #सांवरे की मनशा #मन के भाव #सुरमन_✍️ #तन्हाई #Sad_Status #nojohindi
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read moreAurangzeb Khan
एक मैं ही नहीं जो तन्हा सफर करता हूं ऐ औरंगज़ेब मैंने उसे पपीहे को भी खुश देखा है जिसका कोई हमसफ़र ही नहीं ©Aurangzeb Khan #तन्हाई#मेरी
Veer Tiwari
पूस की रात - मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो एक गरीब किसान हल्कू की जिंदगी के संघर्ष और उसकी विवशता को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कहानी ग्रामीण भारत की गरीबी, शोषण, और मनोस्थिति को दर्शाती है, जो आज भी कई रूपों में प्रासंगिक है। कहानी का सारांश कहानी का मुख्य पात्र हल्कू एक छोटा किसान है, जो अपनी जमीन पर फसल उगाता है। उसकी जिंदगी गरीबी से जूझती रहती है, और कर्ज चुकाने की मजबूरी में उसे हमेशा समझौते करने पड़ते हैं। एक बार फिर से उसे कर्ज चुकाने के लिए अपनी कमाई से कंबल खरीदने का सपना छोड़ना पड़ता है, और ठिठुरती ठंड में रात के खेत की रखवाली के लिए जाना पड़ता है। पूस की ठंडी रात में वह अपने कंबल की कमी से ठिठुरता है, लेकिन उसकी हालत ऐसी है कि वह कुछ नहीं कर सकता। ठंड से बचने के लिए वह अपने कुत्ते झबरा के पास सटकर सोने की कोशिश करता है, और अंत में ठंड से हारकर वह अपनी हालत पर हंसने लगता है। कहानी का अंत यह दिखाता है कि हल्कू अगले दिन की चिंता किए बिना, उस क्षण की ठंड से राहत पाने के लिए सब कुछ छोड़कर झबरा के साथ खेत छोड़कर चला जाता है। विशेषताएं और आज के समय की तुलना 1. ग़रीबी और विवशता: हल्कू की हालत उस किसान की है, जो कर्ज, शोषण, और आर्थिक तंगी से जूझता है। यह स्थिति आज भी कई गरीब किसानों और मजदूरों की सच्चाई है, जो अपने मूलभूत ज़रूरतों को भी पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। चाहे आज की दुनिया में कितनी भी तरक्की क्यों न हो जाए, परंतु इस वर्ग के लोग अब भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। 2. मानसिक पीड़ा और उम्मीद की झलक: हल्कू का ठंड में ठिठुरना और खुद को सांत्वना देना यह दिखाता है कि इंसान कैसे विषम परिस्थितियों में भी अपने मनोबल को बनाए रखने की कोशिश करता है। आज भी लोग कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने मानसिक संतुलन और उम्मीदों को बरकरार रखने का प्रयास करते हैं। 3. प्राकृतिक कठिनाइयाँ: कहानी में ठंड और सर्दी का ज़िक्र उन प्राकृतिक चुनौतियों का प्रतीक है, जिनसे किसान हर दिन जूझते हैं। आज भी बदलते मौसम और प्राकृतिक आपदाएं किसानों की जीविका पर गहरा असर डालती हैं, और यह समस्या आज की वास्तविकता के साथ भी मेल खाती है। सीख और संदेश संघर्ष की हकीकत: कहानी यह सिखाती है कि जीवन में असली संघर्ष बाहरी समस्याओं से नहीं, बल्कि भीतर की मजबूरियों और हालातों से होता है। हल्कू का संघर्ष उसकी गरीबी के खिलाफ नहीं, बल्कि ठंड से राहत पाने के लिए खुद से किया गया संघर्ष है। वास्तविकता का सामना: कहानी यह भी दिखाती है कि गरीबी और जरूरत के सामने इंसान की इच्छाएं और सपने कैसे बेमानी हो जाते हैं। हल्कू का अपनी हालत पर हंसना यह दर्शाता है कि वह खुद की हालत को स्वीकार कर चुका है। पूस की रात अपने छोटे कलेवर में बड़े सामाजिक मुद्दों को उठाती है और यह दिखाती है कि कठिनाइयों के सामने भी इंसान अपने मन को समझाने के तरीके ढूंढ लेता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के जरिए वास्तविकता को बेहद मार्मिक ढंग से उकेरा है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस समय थी। ✍️Veer Tiwari ©Veer Tiwari पूस की रात
पूस की रात
read moreFAKIR SAAB(ek fakir)
तन्हाई है वीराना है खामोशी है सन्नाटा है ये बस्ती उजड़ चुकी है अब यहां कौन आता जाता है ©FAKIR SAAB(ek fakir) #Couple तन्हाई
#Couple तन्हाई
read moreBrsolanki
White दरमियान तो हरदम रहे करीब रहे ना सके। सैलाब था दिल में लब्ज़ कुछ कहे ना सके। आज भी रूहमें मौजूदगी चांद सी रोशन है, हासिल रहे हर लम्हा,तुम हमे ढूंढ ना सके । अंदर ही अंदर जलाती रही तन्हाई की आग, आए गए बारिशोंके कई मौसम बुज ना सके। ©Brsolanki #तन्हाई
Shiv Narayan Saxena
White ना अमां का समां और ये आसमां तारे झलमल करें देखता आसमां मुस्कुराते हैं अब सब दीये प्यार में मिल तो ले सनम वस्ल की रात में ©Shiv Narayan Saxena #good_night वस्ल की रात में.....
#good_night वस्ल की रात में.....
read moreबदनाम
White तू साथ है, पर तुझे पा भी न सका, तेरे पास होते हुए भी, मैं खुद से दूर हूँ। "वो बोली, "कभी मुझसे नफ़रत की?" मैंने कहा, "नफ़रत? नहीं, वो भी कहाँ होती है, तू मेरी नफरत में भी मोहब्बत है, तेरे बिना ये जख़्म बेमानी है, और तेरे साथ ये ज़िन्दगी अधूरी है। "वो चुप हुई, आँखों में एक खामोश सवाल, मैंने कहा, "तू मदीरा है, पर मैं भी एक शायर हूँ, हम दोनों अधूरे हैं, पर एक-दूसरे से पूरे, तू मेरे अशआर की खुशबू है, और मैं तेरे नशे की तन्हाई।" ©बदनाम मैं तेरे नशे की तन्हाई
मैं तेरे नशे की तन्हाई
read moreParasram Arora
White वियोग की इस रात मे मेरे. आसुओ. का हर कतरा तुमसे बतियाना चाहता हैँ तुम्हारे बगैर इस तन्हाई का हर क्षण ऐसे बीता हैँ जैसे एक पूरा युग बीता हैँ ©Parasram Arora वियोग की रात
वियोग की रात
read moreShashi Bhushan Mishra
White महफ़िल में भी मिली अकेली तन्हाई, गम के पन्ने पलट रही थी रुस्वाई, गिरा ताड़ से अटका किसी खजूरे पर, बेचारे ने कैसी है किस्मत पाई, बैठ गया खालीपन उसके जाने से, कभी नहीं हो सकती जिसकी भरपाई, बिन बरसे ही सावन घर को लौट गया, मन के अंदर ख़्वाहिश लेती अंगड़ाई, दिन ढ़लने को आतुर मेरे आंगन का, लगी छुड़ाने पीछा अपनी परछाई, आम आदमी की थाली से गायब है, कोर-कसर पूरा कर देती महंगाई, पैसों से तक़दीर की टोपी मिल जाती, दूर सिसकती बैठी मिलती तरुणाई, दिल की बात सुनाऊँ मैं किससे गुंजन, आहत करती मन को यादें दुखदाई, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra #मिली अकेली तन्हाई#
#मिली अकेली तन्हाई#
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