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Rakesh frnds4ever
White आ चल के ,,,,,,,,,,,,,,,,,हम चलें कहीं जहां नौरंगी गुलजार हो मौसम नजम ,,गजल गाता हो नदी नाले प्यार की बातें करते हो ये पर्वत पहाड़ झरने कुदरत की बेपनाह मोहब्बत को ताजगी ,सादगी, खूबसूरती से बड़े चाव से, प्यार से ,अपनेपन से प्रदर्शित कर रहे हो आ चल के ,,,,,,,,,,,,,,,,,हम चले यहीं यहां कुदरत हो ,,,,,,,,,,हम तुम हो मौसमें बहार हो दिल का करार हो प्रकृति ओर प्रकृति की रचनाओं से घिरा हमारा छोटा सा संसार हो जो इस दुनिया/इस जहान,,,,,,,,, से पार हो ,,... ©Rakesh frnds4ever #आ #चल के ,,,,,,,,,,,,,,,,,हम चलें कहीं जहां नौरंगी #गुलजार र हो #मौसम नजम ,,गजल गाता हो नदी नाले प्यार की बातें करते हो ये पर्वत पहाड़
ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी.
Formalty..🍂 लोग झूठे वादे निभाते क्यों हैं.... जब उनको आख़िर में रिश्ता तोड़ना होता है.... सब "Formalty" पूरी करते हैं..... लोगो की दिलो के साथ.. ©ʀᴏʏᴀʟ.यादववंशी. आज हमरे साथ करोगे. कल तुम्हारे साथ जरूर होगा यहीं सबक है थोड़ा संभल जाओ...🙂
आज हमरे साथ करोगे. कल तुम्हारे साथ जरूर होगा यहीं सबक है थोड़ा संभल जाओ...🙂
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
read moreDevesh Dixit
मोदीकेयर (दोहे) मोदीकेयर छा गया, बना यही आधार। जीवन भी सुखमय हुआ, कलयुग में अवतार।। हिय से सोचो जान लो, तुम इसके उपयोग। भ्रम में मत रहना कभी, वरना घेरें रोग।। मंजिल पानी है अगर, देना है श्रम दान। कहते कुछ विद्वान हैं, इसमें मिलता मान।। नासमझी में छोड़ते, कहते यह बेकार। दूजों को भी रोकते, समझ उसे उपकार।। मोदीकेयर ने दिया, हमको यह उपहार। रोग ग्रसित जो हैं अभी, उनका बेडापार।। धन वर्षा भी कर रहा, घुमा रहा परदेश। मोदीकेयर से मिला, हमको यह परिवेश।। उत्पादों की खासियत, पर हमको अभिमान। क्यों छोड़ें अब हम इसे, यहीं मिला वरदान।। मैं भी इसमें जुड़ गया, पाने को वरदान। सेहत भी इससे मिली, और जगे अरमान।। मोदीकेयर में बढ़ें, और कई उत्पाद। हम सबकी यह लालसा, रहे नहीं अवसाद।। मानूँ मैं देवेश हूँ, इसका ही आभार। मोदीकेयर प्राण हैं, हम सबका आधार।। ............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #मोदीकेयर #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry मोदीकेयर (दोहे) मोदीकेयर छा गया, बना यही आधार। जीवन भी सुखमय हुआ, कलयुग में अवतार।। हिय
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