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seema patidar
White जब हम नहीं होंगे तो ,हमारी यादें होगी लबों पर सबके बस प्यारी हमारी बाते होगी किसी को याद नहीं रहेगी तब हमारी खामियां तब जाके हमारी अच्छाई की सबसे मुलाकाते होगी काश हम समय रहते सीख जाए एक दूसरे को कहना समझना क्यों की जाने के बाद हमें नहीं पता होगा तुम्हारे भाव और ,तुम्हारे पास जो हमारे लिए बाते होगी । ©seema patidar जब हम ......
जब हम ......
read moreSatish Kumar Meena
White घटा स्याह अंधेरा लेकर, बरसने को तैयार हैं। लगता है इस बार फसल मुस्कुरा रही है और किसान की आंखों में खुशी बरस रही है। ©Satish Kumar Meena फसल मुस्कुरा रही है
फसल मुस्कुरा रही है
read moreseema patidar
White शब्दों के श्रृंगार को सजाए रखना भावनाओ को अपनी बहाते रहना विचारो को स्वछंद आसमान में मुक्त रखना कलम की लिखावट को रुकने न देना हम सब जानते है जिंदगी आसान नहीं है न तुम्हारे लिए ,न मेरे लिए ,न सबके लिए फिर भी एकांत को छोड़ लोगो के साथ को चुनना कई नए आयेंगे पुराने खो जायेंगे पर दोस्तो की जगह दिल में महफूज रखना तुम जैसे भी थे ,हो,बेमिसाल रहे अपनो के लिए बहुत ज्यादा पाने की चाह में खुद को मत खो देना चलना जरूर समय की रफ्तार के साथ पर खुद को हमेशा संभाले रखना जैसे हो बस वैसे ही रहना । ©seema patidar रही जिंदगी तो .........
रही जिंदगी तो .........
read moreShashi Bhushan Mishra
रह गया दिल बेसहारा, रात साहिल का किनारा, टिमटिमाती लौ दिये की, कह रही अब सायोनारा, गिले-शिकवे सब भुलाकर, मिल न पाये अब दोबारा, रह-ए-उल्फ़त में मुसाफ़िर, कर लिया ख़ुद का ख़सारा, राह तकतीं हैं उम्मीदें, जब तलक नभ में सितारा, बुरा अच्छा जैसा भी था, वक़्त सबने ही गुजारा, मुक़द्दर वालों ने 'गुंजन', प्यार में ख़ुद को संवारा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #कह रही अब सायोनारा#
#कह रही अब सायोनारा#
read moreNilam Agarwalla
White अपने दायरों से अब हम निकलेंगे जहर पिया है अब जहर ही उगलेंगे क़दम क़दम पे बदले हैं दुनिया वाले अपनी भी तासीर अब हम बदलेंगे # गुमनाम ©Nilam Agarwalla #हम
malay_28
White कहीं किसी रोज़ ये भी होता न तुम ही रहते न मैं ही होता फ़क़त हमारा हम ही रहता जुदा भी होते तो ग़म न होता. ©malay_28 #हमारा हम
#हमारा हम
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही दीन ईमान वो बेच खाते रहे जिनके आगे मेरी बोलती चुप रही बोलियां जो बहुत बोलते थे यहाँ उन पे कोयल की जादूगरी चुप रही वो जो मरकर जियें या वो जीकर मरें देखकर यह बुरी त्रासदी चुप रही ।। बाढ़ में ढ़ह गये गाँव घर और पुल । और टेबल पे फ़ाइल पड़ी चुप रही ।। देखकर ख़ार को हम भी खामोश थे । जो मिली थी प्रखर वो खुशी चुप रही ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही
ग़ज़ल मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही
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