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Vivek Varma

बिबेक भाई बर्मा #nojotophoto

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 बिबेक भाई बर्मा

भईया जी विवेक कुमार

🙏भइया जी बिबेक कुमार🙏

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भईया जी विवेक कुमार

🙏भैया जी बिबेक कुमार🙏

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भईया जी विवेक कुमार

🙏🚩श्री राधे🚩🙏 🙏भईया जी बिबेक कुमार🙏

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भईया जी विवेक कुमार

🙏🚩श्री राधे🚩🙏 🙏भईया जी बिबेक कुमार🙏

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Bhakti Kathayen

सुंदरकांड चौपाई: जदपि कही कपि अति हित बानी,भगति बिबेक बिरति नय सानी हनुमानजी 😌🙏🙏... #bhaktikathayen #Hanuman #Bhakti #nojotohindi #Stories #Trending #New #कविता #viral #status

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Vikas Sharma Shivaaya'

दशहरा के मंत्र  रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।  अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।।  रावण को रथ और श्रीराम #समाज

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दशहरा के मंत्र 



रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम को पैदल देखकर बिभीषन अधीर हो गए और प्रभु से स्नेह अधिक होने पर उनके मन में संदेह आ गया कि प्रभु कैसे रावण का मुकाबल करेंगे। श्रीराम के चरणों की वंदना कर वो कहने लगे।



नाथ न रथ नहि तन पद त्राना-केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥ सुनहु सखा कह कृपानिधाना-जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥ 

हे नाथ आपके पास न रथ है, न शरीर की रक्षा करने वाला कवच और पैरों में पादुकाएं हैं, इस तरह से रावण जैसे बलवान वीर पर जीत कैसे प्राप्त हो पाएगी? कृपानिधान प्रभु राम बोले- हे सखा सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ ये नहीं कोई दूसरा ही है॥



सौरज धीरज तेहि रथ चाका-सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका ॥ 

बल बिबेक दम परहित घोरे-छमा कृपा समता रजु जोरे ॥

इस चौपाई में श्रीराम ने उस रथ के बारे में बताया है जिससे जीत हासिल की जाती है। धैर्य और शौर्य उस रथ के पहिए हैं। सदाचार और सत्य उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। विवेक, बल, इंद्रियों को वश में करने की शक्ति और परोपकार ये चारों उसके अश्व हैं। ये क्षमा, दया और समता रूपी डोरी के जरिए रथ में जोड़े गए हैं।



ईस भजनु सारथी सुजाना-बिरति चर्म संतोष कृपाना ॥ 

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा-बर बिग्यान कठिन कोदंडा ॥  

इस चौपाई में प्रभु ने सारथी के बारे में बताया है। जो रथ को चलाता है। ईश्वर का भजन ही रथ का चतुर सारथी है । वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान धनुष है।



अमल अचल मन त्रोन समाना-सम जम नियम सिलीमुख नाना ॥ कवच अभेद बिप्र गुर पूजा-एहि सम बिजय उपाय न दूजा ॥ 

पाप से मुक्त और स्थिर मन तरकस के समान है। वश में किया हुआ मन, यम-नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है।



सखा धर्ममय अस रथ जाकें-जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें ॥ 

हे सखा (बिभीषन) यदि किसी योद्धा के पास ऐसा धर्ममय रथ हो तो उसके सामने शत्रु होता ही नहीं, वो हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है।



महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर

जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।। 

हे धीरबुद्धि वाले सखा सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मरण का चक्र) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है,फिर रावण को जीतना मुश्किल कैसे हो सकता है।



सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज

एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज ।। 

प्रभु श्रीराम के वचन सुनकर बिभीषन प्रफुल्लित हो गए और उन्होंने प्रभु के चरण पकड़कर कहा, हे प्रभु, आपने इस युद्ध के बहाने मुझे वो महान उपदेश दिया है जिससे जीवन के किसी भी क्षेत्र में विजय पाने का मार्ग मिल गया है। ये मंत्र पाकर मैं धन्य हो गया

🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' दशहरा के मंत्र 


रावनु रथी बिरथ रघुबीरा-देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। 

अधिक प्रीति मन भा संदेहा-बंदि चरन कह सहित सनेहा।। 

रावण को रथ और श्रीराम

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान #समाज

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🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥
हे रावण! मोह् का मूल कारण और
अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धि को छोड़ कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीर कुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥
(मोह ही जिनका मूल है ऐसे बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो)
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी के सच्चे वचन अहंकारी रावण की समझ में नहीं आते है
जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
यद्यपि हनुमान जी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान,धर्म और नीति से भरी वाणी कही,परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥इससे हँसकर बोला कि हे वानर!आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥

रावण हनुमानजी को डराता है
मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥
हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है.
सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥रावण के ये वचन सुन हनुमान्‌ ने कहा कि इससे उलटा ही होगा (अर्थात् मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नही)।हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम (मतिभ्रम) स्पष्ट रीति से जान लिया है॥

रावण हनुमानजी को मारने का हुक्म देता है
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥
हनुमान्‌ के वचन सुन कर रावण को बड़ा कोध आया,जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो!
इस मूर्ख के प्राण जल्दी ले लो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारने को दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥

विभीषण रावणको दुसरा दंड देने के लिए समझाता है
नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥
बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नही चाहिये  क्यों कि यह बात नीतिसे विरुद्ध है॥
हे स्वामी! इसे आप कोई दूसरा दंड दे दीजिये पर मारें मत।बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि
हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥

रावण हनुमानजी को दुसरा दंड देने का सोचता है
सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥
रावण इस बात को सुन कर बोला कि
जो इसको मारना ठीक नहीं है,तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥
विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 897 से 908 नाम  )
897 सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं
898 कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है
899 कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं
900 अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं
901 स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं
902 स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं
903 स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं
904 स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं
905 स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं
906 अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं
907 कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं
908 चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान
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