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P K Mishra
#Questions: क्या #Corona से निपटने के लिए #भारत_सरकार का तरीका सही नहीं है? #Ans. 10 मार्च को देश के माननीय #प्रधानमंत्री जी ने #होली कार्यक्रम में शामिल न होने की बात #ट्वीटर के माध्यम से कही । अन्य देशों में #कोरोना के बढ़ते प्रकोपों से यह स्पष्ट था कि #भारत_सरकार को भी जल्द ही #लॉकडाउन का निर्णय लेना पड़ेगा । 10 मार्च से 24 मार्च कुल 15 दिन का #समय_था_सरकार_के_पास कि वह #मजदूर सहित सभी #नागरिकों को अपने #गृह_ग्राम/#जिला/#राज्य जाने की हिदायत दे देता जो जाना चाहते थे वो आराम से चले जाते ओर सरकार को #फ्री सेवा भी नहीं देना पड़ता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ओर आज का जो #स्थिति हे देश में, #मजदूर #गरीब_परिवार और तमाम #असहाय_लोगों का ये इस बात की #पुष्टि करता है की #भारत_सरकार ने बिना कोई समाधान किए, बिना किसी रणनीति के #lockdown. कर दिए ओर #गरीब लोगों को #सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया। सरकारी घोसना तो #अरबों_खारबों का किया गया हे लेकिन #गरीबों कि इस्थिती क्या है ये सभी लोग जानते हे। ओर #चमचे लोग तारीफों के पुल बांधने में लगे हे। #अतः इस बात की पुष्टि होती हे की भारत सरकार का कार्य सही नहीं हे। #Note. में #मोदी_विरोधी नहीं हूं। लेकिन सच लिखने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। #पुरुषोत्तम_मिश्रा एक भारतीय नागरिक रणनीति vs Bharat sarkar
रणनीति vs Bharat sarkar
read moreAkarsh Mishra
NDA सरकार ने वर्ष 2014 से लेकर 2019 तक विज्ञापन में कुल ₹5200 करोड खर्च किये । इसका मतलब लगभग 3 करोड़ रुपये प्रतिदिन। ये महज कागज के टुकडे नहीं थे,जो व्यर्थ ही बहा दिये गये। देश के नागरिकों, करदाताओं की कडी मेहनत का परिणाम थे। और राष्ट्र की प्रगति के लिए नागरिकों का समर्पण। 5 वर्ष कम नहीं थे आदरणीय ! कहाँ हैं आदर्श ग्राम, कहाँ हैं स्मार्ट सिटी, कहाँ हैं रोजगार, कहाँ ले जा रही है स्कूली शिक्षा, क्या हुआ नोटबंदी से, और पर्यावरण तो आज भी कोई मुद्दा ही नहीं है।
Akarsh Mishra
NDA सरकार ने वर्ष 2014 से लेकर 2019 तक विज्ञापन में कुल ₹5200 करोड खर्च किये । इसका मतलब लगभग 3 करोड़ रुपये प्रतिदिन। ये महज कागज के टुकडे नहीं थे,जो व्यर्थ ही बहा दिये गये। देश के नागरिकों, करदाताओं की कडी मेहनत का परिणाम थे। राष्ट्र की प्रगति के लिए नागरिकों का समर्पण थे। 5 वर्ष कम नहीं थे आदरणीय ! कहाँ हैं आदर्श ग्राम, कहाँ हैं स्मार्ट सिटी, कहाँ हैं रोजगार, कहाँ ले जा रही है स्कूली शिक्षा, क्या हुआ नोटबंदी से, और पर्यावरण तो आज भी कोई मुद्दा ही नहीं है।
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