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बेजुबान शायर shivkumar
औरत के जिस्म में चढ़ी हुई कामवासना की गर्मी... केवल संभोग से ही शांत होती हैं ©बेजुबान शायर shivkumar #औरत के #जिस्म में चढ़ी हुई #कामवासना की #गर्मी ... केवल #संभोग से ही #शांत होती हैं #Nojoto #बेजुबानशायर143 #शायरी #Sex लव स्टोरी शायरी लव रोमांटिक
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
🤔😳 बाल विवाह पर पुनर्विचार 😳🤔 आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो समझदार थे, और हिंदुस्तान के समझदार सौ साल से पिछलग्गू समझदार हैं। उनके पास कोई अपनी प्रतिभा नहीं है। जो पश्चिम में होता है, वे उसकी दुहाई यहां देने लगते हैं। लेकिन पश्चिम में जो होता है, पश्चिम के लोग तर्क का पूरा इंतजाम करते हैं। इन्होंने भी दुहाई दी कि बाल-विवाह बुरा है। फिर हमने भी #बाल_विवाह के खिलाफ कानून बनाए। व्यवस्था तोड़ी। अब अगर आज कोई बाल-विवाह करता भी होगा, तो अपराधी है! लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि विगत पंद्रह वर्षों... । अमेरिका के सौ बड़े मनोवैज्ञानिकों के एक आयोग ने रिपोर्ट दी है, और रिपोर्ट में कहा है कि अगर अमेरिका को पागल होने से बचाना है, तो बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए। अभी #हिंदुस्तान के समझदारों को पता नहीं चला। इनको पता भी पचास साल बाद चलता है! क्यों लौट जाना चाहिए बाल विवाह पर? पचास साल में ही अनुभव विपरीत हुए। सोचा था कुछ और, हुआ कुछ और। पहला अनुभव तो यह हुआ कि बाल-विवाह ही थिर हो सकता है। चौबीस साल के बाद किए गए विवाह थिर नहीं हो सकते। क्योंकि चौबीस साल की उम्र तक दोनों ही व्यक्ति, स्त्री और पुरुष, इतने सुनिश्चित हो जाते हैं कि फिर उन दो के बीच तालमेल नहीं हो सकता। वे दोनों अपने-अपने ढंग में इतने ठहर जाते हैं, फिक्स्ड हो जाते हैं, कि फिर समझौता नहीं हो सकता। इसलिए पश्चिम में #तलाक बढ़ते चले गए। आज अमेरिका में पैंतालीस प्रतिशत तलाक हैं। करीब-करीब आधे तलाक हैं। जितनी शादियां होती हैं हर साल, उससे आधी शादियां हर साल टूटती भी हैं। यह संख्या बढ़ती चली जाएगी। बाल-विवाह एक बहुत मनोवैज्ञानिक तथ्य था। तथ्य यह था कि छोटे बच्चे झुक सकते हैं; लोच है उनमें। एक युवक और एक युवती, जब पक गए, तब उनमें झुकना असंभव हो जाता है। तब वे लड़ ही सकते हैं, झुक नहीं सकते। टूट सकते हैं, झुक नहीं सकते। इसलिए आज पश्चिम में पुरुष और स्त्री दुश्मन की भांति खड़े हैं। पति और पत्नी, एक तरह का युद्ध है, एक तरह की लड़ाई है। एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ने किताब लिखी है, इंटीमेट वार। आंतरिक युद्ध, प्रेमपूर्ण युद्ध--ऐसा कुछ अर्थ करें। और प्रेमपूर्ण युद्ध, यानी विवाह। इंटीमेट वार जो है, विवाह के ऊपर किताब है; कि दो आदमी प्रेम का बहाना करके साथ-साथ लड़ते हैं, चौबीस घंटे! इसका कारण? इसका कारण कुल इतना है। कोई बेटा अपनी मां को बदलने का कभी नहीं सोचता कि दूसरी मां मिल जाती, तो अच्छा होता। कोई बेटा अपने बाप को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरा बाप मिल जाता, तो बहुत अच्छा होता। कोई भाई अपनी बहन को बदलने का नहीं सोचता कि दूसरी बहन मिल जाती, तो अच्छा होता। क्यों? क्या दूसरी बहनें अच्छी नहीं मिल सकतीं? क्या दूसरे बाप अच्छे नहीं मिल सकते? क्या दूसरी मां के अच्छे होने में कोई असुविधा है इतनी बड़ी पृथ्वी पर? नहीं; यह ख्याल नहीं आता। क्योंकि इतने बचपन में जब कि मन बहुत नाजुक और कोमल होता है, बच्चा मां से राजी हो जाता है। बाल-विवाह के पीछे एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया थी कि जिस तरह मां से बच्चा राजी हो जाता है, उसी तरह वह पत्नी से भी राजी हो जाता है। फिर वह सोचता ही नहीं कि दूसरी पत्नी भी हो। जैसे मां दूसरी हो, ऐसा नहीं सोचता; पिता दूसरा हो, ऐसा नहीं सोचता; ऐसे ही पत्नी भी, पत्नी भी उसके साथ-साथ इतनी निकटता से बड़ी होती है कि स्वभावतः, दूसरी पत्नी हो या दूसरा पति हो, यह ख्याल ही नहीं उठता। लेकिन चौबीस साल या पच्चीस साल या तीस साल की उम्र में शादी होगी, तो यह बात बिल्कुल असंभव है कि यह ख्याल न उठे। जिसमें न उठे, वह आदमी बीमार होगा, उसका दिमाग खराब होगा। तीस साल की उम्र तक जिस युवक ने हजार स्त्रियों को देखा-पहचाना, हजार बार सोचा कि इससे शादी करूं कि उससे करूं; इससे करूं कि उससे करूं! तीस साल के बाद शादी की, फिर #कलह और उपद्रव शुरू हुआ। उसे ख्याल नहीं आएगा कि पड़ोस की स्त्री से शादी हो जाती तो ज्यादा बेहतर होता? मैंने सुना है, एक पत्नी अपने पति को सुबह दफ्तर विदा करते वक्त कह रही है कि आपका व्यवहार ठीक नहीं है। सामने देखो; सामने की पोर्च में देखो। पति ने उस तरफ आंख उठाकर देखा। पत्नी ने कहा, देखते हैं! पति अपनी पत्नी से विदा ले रहा है, तो कितना गले लगकर चुंबन दे रहा है। ऐसा तुम कभी नहीं करते! उसके पति ने कहा, मेरी उस औरत से कोई पहचान ही नहीं है। वैसा करने का तो मेरा भी मन होता है, पर उस औरत से मेरी कोई पहचान ही नहीं है। यह अमेरिका में मजाक घट सकती है। कल भारत में भी घटेगी। लेकिन भारत ऐसा पहले कभी सोच नहीं सकता था; इसको मजाक भी नहीं सोच सकता था। यह सिर्फ बेहूदगी मालूम पड़ती। यह मजाक भी नहीं मालूम पड़ सकती थी। इसके कारण थे। कारण बहुत साइकोलाजिकल थे, बहुत गहरे थे। फिर एक और ध्यान लेने की बात है कि बाल-विवाह का मतलब है, दो बच्चों में #सेक्स का तो ख्याल नहीं उठता, सेक्स का कोई सवाल नहीं होता, कामवासना का कोई सवाल नहीं होता। दो छोटे बच्चों की शादी कर दी, तो उनके बीच कोई कामवासना नहीं होती। कामवासना आने के पहले उनके बीच मैत्री बन जाती है। लेकिन जब दो बच्चे बच्चे नहीं होते, जवान होते हैं; और उनकी हम शादी करते हैं, मैत्री नहीं बनती पहले, पहले कामवासना आती है। और जब कामवासना पहले आएगी, तो संबंध बहुत जल्दी विकृत और घृणित हो जाएंगे। उनमें कोई गहराई नहीं होगी; छिछले होंगे। और जब कामवासना चुक जाएगी, तो संबंध टूटने के करीब पहुंच जाएंगे। क्योंकि और तो कोई संबंध नहीं है। जिन दो बच्चों ने #कामवासना के जगने के पहले मित्रता स्थापित कर ली, कल कामवासना भी विदा हो जाएगी, तो भी मित्रता बचेगी। लेकिन जिन दो जवानों ने कामवासना के बाद मित्रता स्थापित की, उनकी मित्रता स्थापित होती नहीं, मित्रता सिर्फ कामवासना का बहाना होती है। जब कल कामवासना क्षीण हो जाएगी, तब मित्रता भी टूट जाएगी। आज अमेरिका में किन्से जैसा मनोवैज्ञानिक कहता है कि बाल-विवाह पर वापस लौट जाना चाहिए। अन्यथा पूरा समाज रोगग्रस्त हो जाएगा। – ओशो 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 ©Ankur Mishra 🤔😳 बाल विवाह पर पुनर्विचार 😳🤔 आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो समझदार थे, और हिंदुस्तान के समझदार सौ साल से पिछलग्गू समझदार हैं। उनके पास कोई अपनी प्रतिभा नहीं है। जो पश्चिम में होता है, वे उसकी दुहाई यहां देने लगते हैं। लेकिन पश्चिम में जो होता है, पश्चिम के लोग तर्क का पूरा इंतजाम करते हैं। इन्होंने भी दुहाई दी कि बाल-विवाह बुरा है। फिर हमने भी #बाल_विवाह के खिलाफ कानून बनाए। व्यवस्था तोड़ी। अब अगर आज कोई बाल-विवाह करता
🤔😳 बाल विवाह पर पुनर्विचार 😳🤔 आज से पचास साल पहले सारे यूरोप और अमेरिका ने बाल-विवाह की व्यवस्था तोड़ी। हिंदुस्तान में भी हिंदुस्तान के जो समझदार थे, और हिंदुस्तान के समझदार सौ साल से पिछलग्गू समझदार हैं। उनके पास कोई अपनी प्रतिभा नहीं है। जो पश्चिम में होता है, वे उसकी दुहाई यहां देने लगते हैं। लेकिन पश्चिम में जो होता है, पश्चिम के लोग तर्क का पूरा इंतजाम करते हैं। इन्होंने भी दुहाई दी कि बाल-विवाह बुरा है। फिर हमने भी #बाल_विवाह के खिलाफ कानून बनाए। व्यवस्था तोड़ी। अब अगर आज कोई बाल-विवाह करता
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