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अबोध_मन//फरीदा

मुझे सजा लेती है वो आँखों में सुरमे की तरह, मैं स्याह रंग भी फ़क़त उसके साथ सज से जाता हूँ। 💞 #अबोध_मन #अबोध_poetry #अबोध_love

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मुझे सजा लेती है वो आँखों में सुरमे की तरह,
मैं स्याह रंग भी ‘फ़क़त’ उसके साथ सज से जाता हूँ।
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©अबोध_मन//फरीदा मुझे सजा लेती है वो आँखों में सुरमे की तरह,
मैं स्याह रंग भी फ़क़त उसके साथ सज से जाता हूँ।
💞
#अबोध_मन  #अबोध_poetry 
#अबोध_love

अबोध_मन//फरीदा

देखो, तो ज़िंदगी ने.. जीने में क्या क्या रखा है, दो आँखें झुक गई हैं, पानी उनमें अभी बचा रखा है। रास्ते पर पड़ा पत्थर उठा लिया करो,

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अबोध_मन//फरीदा

ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ, धनक के रंग पहने खिल रहा ये आसमाँ। सभी फिराक में है अपनी वापसी को, जो गए भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ। उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल, गुज़र चुका इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

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ये शाम ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में  हैं अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

इश्क़ खुश्बू है जो महके इस करीने से,
पाक  हो  जाती हवा  गुज़रे जो छूकर अर्ग़वाँ।

शाम की दहलीज़ पर ज़र-फ़िशाँ यादें हैं,
इक चाँद रोएगा चाँद देख, हर सूं आब-ए-रवाँ।

“मदीहा” ग़ज़लों में लज़्ज़त तो होगी ही,
कि उनमें ज़िक्र उसका आ ही जाता जहाँ-तहाँ।

–अबोध_मन//“फरीदा”


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©अवरुद्ध मन ख़्वाब सी, ख्याल तेरे हमनवाँ,
धनक  के रंग  पहने खिल  रहा ये आसमाँ।

सभी फिराक में है अपनी वापसी को,
जो गए  भटक उनका कहाँ कोई ख़ैर-ख्वाँ।

उसे आना ही नहीं, उम्मीद ला-हासिल,
गुज़र  चुका  इसी राह से कारवाँ-दर-कारवाँ।

अबोध_मन//फरीदा

#अबोध_मन सबने समझा कि वो हैं सोयी आँखें न पहचाना कोई कि वो रोयी आँखें। रात का ओस पलकों से समेट कर, क़तरा– क़तरा उसने भिगोयी आँखें। देख उनकी आँखों की अजनबियत,

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सबने समझा  कि वो  हैं सोयी आँखें
न पहचाना कोई कि वो रोयी आँखें।

रात  का ओस पलकों से समेट कर,
क़तरा– क़तरा उसने भिगोयी आँखें।

देख  उनकी  आँखों की अजनबियत,
नमक के पानी से उसने धोयी आँखें।

देखी थी वो रात गए तक रोयी आँखें
कि कई सदियों से हैं न सोयी आँखें।

एक उमर बीत गयी उनको बिन देखे,
पुराने ख़त सी अबतक संजोयी आँखें।
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अबोध_मन//”फरीदा”


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©अवरुद्ध मन #अबोध_मन 
सबने समझा  कि वो  हैं सोयी आँखें
न पहचाना कोई कि वो रोयी आँखें।

रात  का ओस पलकों से समेट कर,
क़तरा– क़तरा उसने भिगोयी आँखें।

देख  उनकी  आँखों की अजनबियत,

अबोध_मन//फरीदा

सुनो प्रिय....! मुझसे बिछड़ने से पहले कुछ पल तुम मेरे अधरों पर अपने अधर रख छोड़ जाना उन पर अपना स्पर्श और स्वाद

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सुनो प्रिय....!
मुझसे बिछड़ने
से पहले कुछ पल
तुम मेरे अधरों
पर अपने अधर
रख छोड़ जाना
उन पर अपना
स्पर्श और स्वाद
कि...बिछड़ने के
बाद भी बना रहे
हमारे  बीच  का
ये ’मौन संवाद’।
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अबोध_मन//”फरीदा”







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©अवरुद्ध मन सुनो प्रिय....!
मुझसे बिछड़ने
से पहले कुछ पल
तुम मेरे अधरों
पर अपने अधर
रख छोड़ जाना
उन पर अपना
स्पर्श और स्वाद

अबोध_मन//फरीदा

सुनो, और भी प्यारी लगती हो तुम, जब ऐसे मेरा ज़ब्त आजमाती हो, हमसे ही मुंह फेर कर... हमको ही देखना चाहती हो... इश्क़ करने का ये तेरा सलीका मुझे बहुत भाता है... इश्क़ है मुझे तुमसे...पर अधिक

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सुनो, 
और भी प्यारी लगती हो तुम,
जब ऐसे मेरा ज़ब्त आजमाती हो,
हमसे ही मुंह फेर कर...
हमको ही देखना चाहती हो...
इश्क़ करने का ये तेरा 
सलीका मुझे बहुत भाता है...
इश्क़ है मुझे तुमसे...पर तुम्हारे
प्यार पर मुझे और प्यार आता है।

अबोध_मन//“फरीदा”

©अवरुद्ध मन सुनो, 
और भी प्यारी लगती हो तुम,
जब ऐसे मेरा ज़ब्त आजमाती हो,
हमसे ही मुंह फेर कर...
हमको ही देखना चाहती हो...
इश्क़ करने का ये तेरा 
सलीका मुझे बहुत भाता है...
इश्क़ है मुझे तुमसे...पर अधिक

अबोध_मन//फरीदा

उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद, उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद। साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा अपने ही इश्क़ के अफसाने दोहराता होगा चांद। बैरी बन; आवारा बादलों की ओट में छिप करके, नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

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उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

शब-ए-दैजूर में जब उनके मिलन की आस न जगी,
इश्क़ करने वालों की आँखों में मुस्काता होगा चाँद।

बचपन में मामा बन वो था साथ–साथ अपने चला,
उस दहलीज़ के पार; कई रिश्ते निभाता होगा चाँद।

सुना है ‘मदीहा’ सा ही वो भी घटता बढ़ता रहता है,
कि बिछड़ना अपनो का यूँ भूल न पाता होगा चाँद।

अबोध_मन//‘फरीदा’

©अवरुद्ध मन उनके दीदार की तलब में छत पे आता होगा चाँद,
उनके रुख़सार के तिल पे अटक जाता होगा चाँद।

साँझ के आते ही; पकड़ उसका हाथ, पास बिठा
अपने ही इश्क़ के अफसाने  दोहराता होगा चांद।

बैरी बन; आवारा  बादलों की ओट में छिप करके,
नटखट अठखेली कर इश्क़ को सताता होगा चाँद।

अबोध_मन//फरीदा

उन्होंने जो कहा 
वो
“उसने सुना नहीं”
...
और
...
उसने जो सुना
वो
”उन्होंने कहा नहीं”
.
.
.
.
And She Left Not Just with
Teary Eyes...But
“With Her Broken Spine too".


अबोध_मन//“फरीदा”

©अवरुद्ध मन #सुनो,
#अबोध_मन, है #शब्द_शब्द_जीवन.!!
#मैं_तुमऔरकुछ_रिक्तस्थान
#मेरा_क्या #न_मैं_नबची मैं
#अबोध_love

उन्होंने जो कहा 
वो


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