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Uma Sailar
जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , उमा लिखती है ये जंग मेरी किसी से नहीं बस अपने आपसे है मैं इस नकाब पेशी से आज़ाद हो आईने सा साफ होना चाहती हूं मैं जो बात है सच बस वही रहना चाहती हूं मैं सिर के इस भारी बोझ को मर कर भी ये जाए तो मैं बस मरना चाहती हूं पर जब मैं ऐसा सोचती हूं तो वो हरकत कर जाती है जो खुद पागल मोही बनी बैठी है किसी के प्यार में वो मुझे कुछ और दिखा जाती है कभी हिम्मत कभी दिलासा कभी ढेर झूठ से पर्दा हटा वो प्यारा आनंद दिखा जाती है कुछ समय के लिए मैं उस गुमनाम पर खुबसूरत इलाके में घूमती हूं और फिर मैं वो हो जाती हूं जो मैं होना चाहती हूं जहां मैं बस कुछ नहीं चाहती हूं । - उमा सेलर ( Read Full Poem on Instagram ) ©Uma Sailar #Woman जहां मैं कुछ नहीं चाहती हूं _ कविता _ उमा सेलर , उमा लिखती है #umasailar #hindi_poetry #womenlife #uma_likhti_hai #umakipoems #hindi_poem #Life_experience
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का कारज मोहे रिझात क्यों बादल धरती पे आत क्यों ठंडी तू पवन लात क्यों बदरी तू जोर आत उपवन काहे तू खिलात चकोर काहे रोए गात डोलन को मनुज रातबिरात बौरात बेहरात और अकुलात तेरी कारी कारी बदरी देख जियरा हमार मोहित हेय जात उह बात इहई फिर याद आत काहे हाथों में तू ना समात लागे है के जैसे तू मोको समुझावत उमा मान बात काहे को तू मोहे सतात अंधियारे आत जात काहे ध्वनि फिर चेन खात काहे धीर ना बंधे बंधात काहे जियरा फिर लहे ग्रास इह घर्षण का खातिर होए जात देर दूर हम सोचे काल काहे इह कलम ना हाथ आत तुमसे कहने को लाख बात बतावें केसन बूझे ना बुझात लेके हमार इह दोई हाथ खुदको उमा धीरज बंधात आइयो कबहुं तुम फिर करन घात लखियों रागी को ये प्यारो साथ रहे देत है हमरी बात और बाकी दिन में कहें बात लेत विदाई अभी हम जात मिलहिं खातिर हमका से तुम्हई को परे आन तात ।। उमा सेलर : उमा लिखती है ©Uma Sailar का कारज #umasailar #a_likhti_hai #kakaraj
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किसलय पात मैं | भाग – एक | उमा लिखती है _ कविता उमा की देहरी से _ उमा सेलर __________________________ Uma Likhti Hai _ New Poem _ Kislay Paat Mai _ Uma ki Dehri Se | Part - 1 ___________________________ ༼ つ ◕‿◕ ༽つ “किसलय पात मैं ” ❥˙˙❥˙•‿• **▽ चल ना यार देख ना कोई नहीं है अब मान भी जा ना तुझे अच्छा लगेगा खुद को कई बार बहुत बार समझाना होता है कभी रोने पे चुप कराना होता है कभी मस्ती को लगाम लगाना होता है ढेर सारा गुस्सा करना कभी तो कभी फट से मान जाना होता है रूल्स की ना पूछो उनको तोड़ना वाजिब है अभी सहमे हुए कभी सब काट जाना होता है एक पल में जीना सदियां इक दिन थोड़ी सुहाना होता है वाजिब है मुस्कुराना मेरा खुद को खुश रखना जिम्मेदाराना होता है पंछियों की तादाद देख कभी डर जाना होता है तो देख कभी उनको मन भर जाना होता है तुमको देख शाम – सुबह में दिन भानू बन जाना होता है किसलय पात भांति बनके मैं विचरण को जाती जब इधर –उधर कभी फुदकती कभी ठहरी –सी कभी उड़ती –सी जाती जिधर देख – देख मुझको कैसे वो करतव करने लगते हैं बस इसीलिए शायद वो पल मेरा बन जाता है चुन – चुनकर कैसे तूने जो चाहा था मिलवाया किसलय ही कुछ आस है क्षणभंगुर – सा एहसास है लगता है मदिरा पान किए मैं खुदको कहीं तलाश रही भारी – भारी उर संग लिए खुदको संतुष्टि बांट रही पराकाष्ठा क्या कर लेगी सब कुछ देखन की चाह है बहुत दिनों से मिले नहीं मिलने की भी आस है वो भरती है देख मुझे कभी देख मुझे हंसने लगती है कभी टूटी – सी मैं, कभी वो टूटी टूटी – फूटी कौड़ी खिलने लगती है बिन धूप वो सुनहरी सोने – सी सपने लगती हैं मैं वो किसलय पात हुए अर्थ गूढ़ होता जाए निरंकुश बन थोड़ा मन इधर-उधर बहलाना चाहे खुदसे मिलने के लिए जाने कौन देश भ्रमण चाहे देख अतरंगी हाव – भाव आंखें टिम – टिमाती जाए कभी कजरिया आंखें करके अम्मा को लगे चिढ़ाए कहती हर बार रोशनी और इश्क अंधेरे से फरमाए विस्तार कर रही है कभी और जाने के लिए है मग्न वो अभी चाहत से मिल पाने के लिए ।।। ꪊꪑꪖ ᦓꪖﺃꪶꪖ᥅ उमा**** उमा लिखती है ©Uma Sailar किसलय पात मैं | भाग – एक | उमा लिखती है _ कविता उमा की देहरी से _ उमा सेलर #umasailar #uma_likhti_hai #poem #hindi_poetry #HindiPoem #hindi_poem
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