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gaurav ji
*अंतिम ऋण चिता की लकड़ी...* क्या आप जानते हैं मृत्यु के बाद भी कुछ ऋण होते हैं जो मनुष्य का पीछा करते रहते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों में पांच प्रकार के ऋण बताए गए हैं देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और लोक ऋण। इनमें से प्रथम चार ऋण तो मनुष्य के इस जन्म के कर्म के आधार पर अगले जन्म में पीछा करते हैं। इनमें से पांचवां ऋण यानी लोक ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रथम चारों ऋण तो मनुष्य पर जीवित अवस्था में चढ़ते हैं, जबकि लोक ऋण मृत्यु के पश्चात चढ़ता है। जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके दाह संस्कार में जो लकड़ियां उपयोग की जाती हैं दरअसल वही उस पर सबसे अंतिम ऋण होता है। यह ऋण लेकर जब मनुष्य नए जन्म में पहुंचता है तो उसे प्रकृति से जुड़े अनेक प्रकार के कष्टों का भोग करना पड़ता है। उसे प्रकृति से पर्याप्त पोषण और संरक्षण नहीं मिलने से वह गंभीर रोगों का शिकार होता है। मनुष्य की मृत्यु के बाद सुनाए जाने वाले गरूड़ पुराण में भी स्पष्ट कहा गया है कि जिस मनुष्य पर लोक ऋण बाकी रहता है उसकी अगले जन्म में मृत्यु भी प्रकृति जनित रोगों और प्राकृतिक आपदाओं, वाहन दुर्घटना में होती है। ऐसा मनुष्य जहरीले जीव-जंतुओं के काटे जाने से मारा जाता है। कैसे उतारें 'लोक-ऋण' शास्त्रों में कहा गया है कि लोक ऋण उतारने का एकमात्र साधन है प्रकृति का संरक्षण। चूंकि मनुष्य पर अंतिम ऋण चिता की लकड़ी का होता है, इसलिए अपने जीवनकाल में प्रत्येक मनुष्य को अपनी आयु की दशांश मात्रा में वृक्ष अनिवार्य रूप से लगाना चाहिए। कलयुग में मनुष्य की आयु सौ वर्ष मानी गई है। *इसका दशांश यानी 10 छायादार, फलदार पेड़ प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवनकाल में लगाना ही चाहिए।* ©gaurav ji #Trip #आओसीखें
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