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BABAPATHAKPURIYA
#शिक्षापत्री# स्थानेषु लोकशास्त्राभ्यां निषिद्धेषु कदाचन । मलमूत्रोत्सर्जनं च न कार्यष्टीवनं तथा ॥३२॥ लोक तथा शास्त्रों के द्वारा मलमूत्र करने के लिए वर्जित जीर्ण देवालय, नदी तालाब के घाट, मार्ग, बोए हुए खेत, वृक्ष की छाया, फूलबारी बगीचे इत्यादि स्थानोंमें कदापि मलमूत्र न करें तथा थूके भी नहीं ॥३२॥ ©BABAPATHAKPURIYA #walkingalone नये अच्छे विचार शुभ विचार अनमोल विचार अच्छे विचार शायरी
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White #शिक्षापत्री# भक्तिं वा ज्ञानमालम्ब्य स्त्रीद्रव्यरसलोलुभाः । पापे प्रवर्तमानाः स्युः कार्यस्तेषां न संगमः ॥२८॥ जो मनुष्य भक्ति का अथवा ज्ञान का आलंबन लेकर स्त्री, द्रव्य तथा रसास्वाद में अत्यंत लोलुप होकर पाप कर्म में प्रवृत्त हों, ऐसे मनुष्यों का समागम न करें ॥२८॥ ©BABAPATHAKPURIYA #sad_shayari भक्ति संगीत भक्ति गीत हनुमान चालीसा जय हनुमान
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White #शिक्षापत्री# स्वपरद्रोहजननं सत्यं भाव्यं न कर्हिचित् । कृतघ्नसङ्गस्त्यक्तव्यो लुञ्चा ग्राह्या न कस्यचित् ।।२६।। जिस सत्य वचन बोलने से अपना तथा अन्य का द्रोह हो; ऐसा सत्यवचन कदापि न बोलें और कृतघ्नीके संग का त्याग करें तथा व्यवहारकार्य में किसी से घूस-रिश्वत न लें ॥२६॥ ©BABAPATHAKPURIYA #love_shayari 'अच्छे विचार' बेस्ट सुविचार
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White #शिक्षापत्री# अग्राह्यान्नेन पक्वं यदन्नं तदुदकं च न । जगन्नाथपुरं हित्वा ग्राह्यं कृष्णप्रसाद्यपि ।।१९।। और जिसके हाथ से पकाया गया अन्न तथा जिसके पात्र का जल अग्राह्य हो उसका पकाया हुआ अन्न तथा उसके पात्र का जल श्री कृष्ण भगवान की प्रसादी या चरणामृत के महात्म्य से भी जगन्नाथपुरी के अलावा अन्य स्थान पर ग्रहण न करें ; जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ जी का प्रसाद लेने में कोई दोष नहीं है ।।१९।। ©BABAPATHAKPURIYA #love_shayari अच्छे विचारों 'अच्छे विचार' नये अच्छे विचार सुविचार इन हिंदी
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#शिक्षापत्री# स्तेनकर्म न कर्तव्यं धर्मार्थमपि केनचित् । सस्वामिकाष्ठपुष्पादि न ग्राह्यं तदनाज्ञया ।।१७।। हमारे सत्संगी धार्मिक कार्य के लिए भी कभी चोर का कर्म न करें, तथा दूसरों की मालिकी के काष्ठ पुष्प आदि चीजें भी उनकी (मालिक की) आज्ञा के बिना न लें ।॥१७॥ ©BABAPATHAKPURIYA #kitaab
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