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Ravi_bhagat11

बस 🚞 वाले सिंक डिजाइन #ट्रिंग

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राघव रमण

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फ़ोन साथी हमसफर 
जिगर 
साथ चले संग
दुनियां की लेकर खबर
अदृश्य ध्वनि विस्तार
संवादों का प्रचारक 
आभा शब्द वाणी 
करता जो विस्तारक 
यंत्र है आज की दुनियां
युवा का जीवन 
जन जन की आत्मा 
ट्रिंग ट्रिंग की आवाज
फिर मधुर ध्वनि - हलो
वार्तालाप .....

Ankit Mishra

#लघु #कथा #शीर्षक शर्मा जी का lunch box ---------------------------------------------------- शर्मा जी को नीद नही आ रही थी।और रात काफी हो चुकी थी। बगल मे लेटी उनकी पत्नी कुछ बड़बड़ा रही थी। जो अपने पॉच साल के बेटे को गोद में किसी कम्बल कि तरह लपेटे थी। कि अचानक से बहस सुरू हो गयी। शर्मा जी और उनकी पत्नी एक दूसरे कि और पीठ कर के लेटे थे। और बड़ी ही मन्द आवाज में बहस चल रही थी। कि अगर राजू को अगर अच्छी पढाई करानी है तो घर की आय बढानी होगी। पत्नी के इस विचार के साथ

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 #लघु #कथा #शीर्षक शर्मा जी का lunch box
----------------------------------------------------
शर्मा जी को नीद नही आ रही थी।और रात काफी हो चुकी थी। बगल मे लेटी उनकी पत्नी कुछ बड़बड़ा रही थी। जो अपने पॉच साल के बेटे को गोद में किसी कम्बल कि तरह लपेटे थी। 
       कि अचानक से बहस सुरू हो गयी।
        शर्मा जी और उनकी पत्नी एक दूसरे कि और पीठ कर के लेटे थे। 
        और बड़ी ही मन्द आवाज में बहस चल रही थी। कि अगर राजू को अगर अच्छी पढाई करानी है तो घर की आय बढानी होगी।
          पत्नी के इस विचार के साथ

Prakashvaani پرکاشوانی

शीर्षक- छोटे शहर से हूँ हां, तो मैं छोटे शहर से हूँ, वहाँ अभी भी ढंग का कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है लैंडलाइन है, जो आज भी बजता है तो भाइयों में दौड़ लग जाती है उसे पहले उठा कर स्टाइल में हेलो बोल कर मुँह पर हाथ रख मुस्कुराने की.... माँ किचन से हाथ पोछती हुई निकलती है

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शीर्षक- छोटे शहर से हूँ
हां, तो मैं छोटे शहर से हूँ,
वहाँ अभी भी ढंग का कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है
लैंडलाइन है, जो आज भी बजता है तो
भाइयों में दौड़ लग जाती है उसे पहले उठा कर
स्टाइल में हेलो बोल कर 
मुँह पर हाथ रख मुस्कुराने की....
माँ किचन से हाथ पोछती हुई निकलती है

ikadashi tripathi

घर आजा परदेसी".....  "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"...  यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

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घर आजा परदेसी"..... 
"कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी"
"तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... 

यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे..
इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है??
इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ??
अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

ikadashi tripathi

घर आजा परदेसी".....  "कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी" "तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"...  यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे.. इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है?? इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ?? अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..

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 घर आजा परदेसी"..... 
"कभी जो बे मौसम बरसात आ गई होगी"
"तुझे याद ना मेरी आई किसी से अब क्या कहना"... 

यह स्वर भीने भीने कानों में पड़ रहे थे..
इतनी धीमी आवाज कहां से आ रही है??
इतनी भयंकर रात में आखिर गांव में किसको दीवानगी छाई है ??
अक्सर यह आवाजें पिछले पांच छह महीनों से आ ही रही थी..


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