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Best इच्छा Shayari, Status, Quotes, Stories

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Nurul Shabd

#आपकी #इच्छा #पर बातचीत होगी, लेकिन यह शर्त है कि यह आमने-सामने होगी।

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Nurul Shabd

#आपकी #इच्छा #पर बातचीत होगी

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Anand Dadhich

माता पिता की एक इच्छा में,
कितनी इच्छाएं छुपी होती है ?
तुम जानना कभी, समझना कभी !

इच्छा-सम्पतिओं में समानता की,
इच्छा-अनुरागों में अनुरूपता की,
इच्छा-उपासनाओं में समरूपता की,
इच्छा-परिधिओं में अनुकूलता की,
इच्छा-संबंधो में जागरूकता की
इच्छा-घनिष्ठताओं में योग्यता की,
इच्छा-विपत्तियों में उदारता की,
इच्छा-परिवारों में समरसता की,
इच्छा-संभावनाओं में सफलता की,
इच्छा- भावनाओं में सुंदरता की,
इच्छा-समुदायों में एकता की,
इच्छा-तनावों में तारतम्यता की,
इच्छा-प्राणों में सुगमता की,

माता पिता की एक इच्छा में,
कितनी इच्छाएं छुपी होती है ?
तुम जानना कभी, समझना कभी।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich #इच्छा #अभिलाषा #kavita #kaviananddadhich #poetananddadhich 

#Family

Vickram

कुछ तो है अपने दरमियां,, #हमसफर #मजाक #किस लिए #ऐसा क्यों है #यकीन #बाते #इच्छा #उलझनें #सवाल

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Himanshu Raj

अर्पिता

अच्छा समय गुजरने के बाद,
इंसान मरने की इच्छा ज्यादा रखता है...
ना कि
हर रोज़ मर मर के जिने की....

©अर्पिता #इच्छा

Yuvraj Singh

#इच्छा ki jaan

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Mukesh Agrawal

होना ये चाहिए कि
दुख रेत सा होना चाहिए 
बेफिक्री में आकर
मुठ्ठी से गिरा दे
और पैरो से उड़ा दे
सुख चट्टानो सा होना चाहिए 
मजबूत और स्थापित 
ना हिला सके कोई
ना गिरा सके कोई 
बस ज़िन्दगी में
ज़िन्दगी भर डटा रहे।
(19/05/15)

©Mukesh Agrawal #इच्छा#

Manjul

Sarita Shreyasi

कल फुर्सत थी,तो कुछ काम चाहिए था, आज काम है तो दो पल आराम ढूंढते हैं, कल उनके साथ माँ-बाप और सारे बच्चे थे, पर घर की जमीन और छत,दोनों ही कच्चे थे। चाहा सबने,थोड़े पैसे,और सुख-सुविधा थोड़ी, मनचाहा पाने के लिए अपनी-अपनी इच्छा जोड़ी,  एक पलड़े से समय और साथ उठाया,

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कल फुर्सत थी,तो कुछ काम चाहिए था,
आज काम है तो दो पल आराम ढूंढते हैं,
कल उनके साथ माँ-बाप और सारे बच्चे थे,
पर घर की जमीन और छत,दोनों ही कच्चे थे।

चाहा सबने,थोड़े पैसे,और सुख-सुविधा थोड़ी,
मनचाहा पाने के लिए अपनी-अपनी इच्छा जोड़ी,  
एक पलड़े से समय और साथ उठाया,
कुछ पैसे,थोड़ी सुख-सुविधा रख दी।

आज छोटे-मोटे काम से है आराम,
नर्म बिछावन पर अकेले नींद हराम,
माँ-बाप,बच्चे सब हो गए दूर,
भागता मन थककर हो गया है चूर।

प्रकृति के तराजू का अपना है संतुलन,
घटता है कहीं कुछ होता तभी संवर्धन,
जिसने कुछ खोया उसीने कुछ पाया,
चाहतों के हिसाब से सबने मूल्य चुकाया। कल फुर्सत थी,तो कुछ काम चाहिए था,
आज काम है तो दो पल आराम ढूंढते हैं,
कल उनके साथ माँ-बाप और सारे बच्चे थे,
पर घर की जमीन और छत,दोनों ही कच्चे थे।

चाहा सबने,थोड़े पैसे,और सुख-सुविधा थोड़ी,
मनचाहा पाने के लिए अपनी-अपनी इच्छा जोड़ी,  
एक पलड़े से समय और साथ उठाया,
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